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निजी विद्यालय से कम नहीं ‘महर्षि दयानंद पाठशाला’

शिक्षा देने के पेशे को बहुत ही महान माना जाता है, क्योंकि यह काम करने वाला शिक्षक न सिर्फ अभ्यर्थी को ज्ञान और समझ देता है, बल्कि उन्हें इस काम में बड़ी मदद करता है कि वे अपने भीतर की प्रतिभा और गुणों को पहचान सकें। भारत का इतिहास भी इसलिए महान रहा है कि यहां अलग-अलग समय में कई महान हस्तियां सामने आईं जिन्होंने अपने ज्ञान व समर्पण द्वारा तमाम लोगों को बेहतरीन काम करने की प्रेरणा दी। इन्हीं में से एक थे आधुनिक भारत के चिन्तक तथा आर्य समाज के संस्थापक दयानन्द सरस्वती। महर्षि दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर कुछ लोग पिछले 25-30 वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में ‘महर्षि दयानंद पाठशाला’ नाम से विद्यालय चला रहे हैं। हालांकि यह विद्यालय सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन यह किसी निजी विद्यालय से कमतर भी नहीं है। यह लोगों द्वारा दिए गए दान से चलता है और जब दान की कमी होने लगती है तो इस विद्यालय की शिक्षिकाएं इसमें अपना आर्थिक योगदान देती हैं। यहां की शिक्षिकाएं न तो वेतन लेती हैं और न ही आने-जाने का किराया। यहां बच्चों को मुफ्त में लेखन सामग्री, ड्रेस, खाना भी दिया जाता है। पढ़ाने के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत एवं मंत्र भी सिखाए जाते हैं। पेश है ‘महर्षि दयानंद पाठशाला’ में शिक्षिकाएं सुमन अरोड़ा और कोमल सैगर संग हुई ‘दि संडे पोस्ट’ के प्रशिक्षु संवाददाता विजय साहनी की बातचीत के मुख्य अंश :

सुमन अरोड़ा, शिक्षिका

इस विद्यालय की शुरुआत कैसे हुई और इसमें बच्चों को क्या-क्या सिखाया जाता है?
यह आर्य समाज है, यहां पर हमने एक पाठशाला खोली है। इस पाठशाला का नाम ‘महर्षि दयानंद पाठशाला’ है। आज से 25-30 साल पहले इसे आशा बत्रा ने 4-5 बच्चों के साथ शुरू किया था। बत्रा जी को सामाजिक कार्य करने का बहुत शौक था जो बच्चे इधर-उधर पार्कों में खेलते थे, जिन्हें पढ़ने का शौक नहीं था ऐसे बच्चों को वह यहां लाकर उन्हें खुद पढ़ाती थीं, नहलाती-धुलाती थीं। ऐसे करते-करते हम सब संस्था के साथ जुड़ गए हैं। हमारे पास पहले 29 टीचर्स थीं और सवा सौ बच्चे थे। हम उन बच्चों को प्रशिक्षित करते थे। जो नसर्री के बच्चे होते थे उनको हम प्रशिक्षित करके सरकारी स्कूल में दाखिला कराते थे। हम सभी बच्चों को मंत्र सिखाते हैं और बच्चे भी अर्थ सहित मंत्र सीखते हैं। पहले हम हर महीने के पहले सोमवार को बच्चों को हवन कराने के लिए ले जाते थे। बच्चे खुद भी सीखते थे और सदैव सीखने के इच्छुक रहते थे। पढ़ाई के साथ-साथ हम उन्हें पिकनिक भी ले जाते थे, खेल, म्यूजिक सिखाते थे, स्पोर्ट्स डे, वार्षिक दिवस मनाते थे।

आपके इस पाठशाला में बच्चों को क्या-क्या सुविधाएं दी जाती हैं?
शिक्षा के साथ-साथ स्कूल ड्रेस, प्रत्येक दिन हम उन्हें सुबह में दूध, फल, बिस्किट देते हैं। गर्मी में दूध में रुहआफजा डालकर देते हैं ताकि गर्मी न लगे। ठंड में दूध में बोर्नवीटा डालकर देते हैं। बच्चों को गर्मी व ठंडी की ड्रेस और स्टेशनरी भी फ्री देते हैं।

पाठशाला चलाने में आपको कौन-कौन सी समस्याओं का सामना करना पड़ा?
जब से कोविड हुआ तो हमारे सीएम केजरीवाल साहब ने दोपहर के बच्चों की शिफ्ट सुबह की कर दी है। जिसकी वजह से बड़े बच्चे सुबह की शिफ्ट में चले गए तो हमारे पास बच्चे बहुत कम हो गए हैं। एक समय तो ऐसा लग रहा था स्कूल शायद बंद हो जाएगा। लेकिन इस समय फिलहाल दाखिला हो रहे हैं। वर्तमान में 25 छोटे बच्चे हैं उनको हम प्रशिक्षित कर रहे हैं।

इस संस्था को सरकार या किसी एनजीओ का योगदान प्राप्त है?


कोमल सैगर, शिक्षिका

नहीं, यह संस्था पूरी तरह समाज के लोगों के योगदान पर निर्भर करती है। हम लोग किसी एनजीओ के साथ नहीं हैं और न ही हमें सरकार की तरफ से योगदान मिलता है। यह विद्यालय रिकोग्नाईज्ड नहीं है इसलिए इसे हम एक कोचिंग के तौर पर चलाते हैं और जो लोग हमारी कॉलोनियों में रहते हैं उनमें से कुछ लोग कई बार हमें डोनेशन दे देते हैं। कई बार जब लगता है कि फंड कम है तो टीचर्स ही अपने-अपने जन्मदिवस के मौके पर कुछ रकम डोनेट कर देते हैं। हमें लगता है कि बाहर खर्च करने के बजाए अपने ही संस्था में डोनेट करें ताकि इन बच्चों का स्कूल चलता रहे।

जो टीचर्स यहां हैं क्या वे कुछ मानदेय लेते हैं?
बिल्कुल भी नहीं लेते हैं। सभी टीचर्स फ्री में पढ़ाते हैं, एक भी पैसा नहीं लेते हैं और आना-जाना भी अपने ही पैसों से करते हैं।

यहां पर जितने भी शिक्षक हैं, क्या वे पेशेवर शिक्षक हैं?
जो सीनियर टीचर्स हैं, वे बहुत ही उच्च क्लासेज को पढ़ा चुके हैं और वे अपने पद से सेवानिवृत्त हैं इसलिए यहां पढ़ाते हैं। बाकी जो हैं वे अपने जीवन में सेटल हो चुके हैं, फ्री हैं तो वे यहां आकर पढ़ाते हैं।

इस पाठशाला की दिनचर्या क्या है?
दिनचर्या इसका यह है कि सवेरे 8 बजे बच्चे यहां आते हैं, हमारी म्यूजिक टीचर आती हैं। बच्चों को भजन और मंत्र करवाते हैं। हम पाठशाला में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस दोनों मनाते हैं इस लिहाज से बच्चों को देश भक्ति गीत, राष्ट्र गान भी सिखाते हैं। उसके बाद जब हमारी असेंबली खत्म हो जाती है तो 8ः30-8ः45 बजे बच्चों को दूध दिया जाता है फिर सभी टीचर्स बच्चों को लेकर अपने-अपने कक्षा में पढ़ने के लिए बैठ जाते हैं। 8 से 11 बजे तक हमारा स्कूल है पर जो छोटे बच्चे होते हैं उन्हें 10ः30-10ः45 के बीच छुट्टी दे दी जाती है।
वर्तमान में आपकी पाठशाला में कितने बच्चे और कितने शिक्षक हैं?

देखिए, अभी बच्चे कम हैं तो इसलिए यहां पर 14-15 शिक्षिकाएं ही हैं। बच्चों का दाखिला भी अभी हो ही रहा है। जो पूर्व में बच्चे पढ़ चुके हैं वे भी हमारे पास आते थे लेकिन अब जो है कि अन्य जगहों पर जैसे कि गुरुद्वारों में भी 1-2 स्कूल खुल चुके हैं तो बच्चे अपनी सहूलियत के हिसाब से वहां भी शिफ्ट हो जाते हैं। लेकिन जहां हमारे 4 बच्चे थे अब 25 बच्चे हो चुके हैं और धीरे-धीरे बच्चे एक-दूसरे की देखा-देखी से बढ़ते जा रहे हैं। क्योंकि बच्चों को हम सारी सुविधा फ्री दे रहे हैं तो जो पैरेंट्स अफोर्ड नहीं कर सकते वे भी अपने बच्चों को भेज रहे हैं। तो इस प्रकार से बच्चों की तादाद बढ़ रही है।

क्या यह पाठशाला कक्षा के प्रकार से है। यदि है तो कहां तक है?
पहले तो हमारी यह पाठशाला बारहवीं कक्षा तक थी पर बच्चों की कमी होने के चलते वर्तमान में 8वीं कक्षा ही हमारी सबसे सीनियर क्लास है। आठवीं में अभी सिर्फ 3 बच्चे हैं। 1 बच्ची चौथी कक्षा की है, बाकी बच्चे दूसरी व पहली कक्षा के हैं। छोटे-छोटे बच्चे हमारे यहां 16-17 हैं जिनके पास दो शिक्षिकाएं रहती हैं।

क्या यहां से पढ़े हुए बच्चे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और उच्च पदों तक पहुंचे हैं?

जी बिल्कुल। हमारे बहुत से पूर्व छात्र हैं जो अपनी काबिलियत के बलबूते काफी उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं, आईसीआईसीआई बैंक में चले गए हैं। मुझे याद है आज से छह साल पहले जब मैं बच्चों को पढ़ा रही थी, एक बच्चा आया उसने मेरे पैर छुए मैं पहचान नहीं पाई, फिर उसने अपना नाम सरफराज बताया तब मैं पहचानी। उसने कहा मैम आज मैं बिजनेस कर रहा हूं। तो मैंने बोला क्या कर रहे हो तो उसने बोला मैम आज जब मैं क्लाईंट के पास ऑर्डर लेने जाता हूं तो जो मेरे बॉस और क्लाईंट हैं वे कहते हैं कि तुम इतने छोटे हो और इतना अच्छा कैसे बोल लेते हो, तो कहता है मैम मैंने उन सर से बोला-मेरी 22 माएं हैं जिनकी बदौलत आज यहां पर पहुंचा हूं। उस समय आर्य समाज में 22 टिचर्स थीं। ऐसे ही अनेकों बच्चे हैं जो प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों तक पहुंच कर स्नातक, परास्नातक कर चुके हैं और अपनी कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं। अगर ऐसे बच्चों की जिंदगी बन जाए तो हमें और क्या चाहिए, इसीलिए तो हम यहां बैठे हैं।

कहीं न कहीं समाज में आप लोग बहुत ही बेहतरीन योगदान दे रहे हैं लेकिन इस पाठशाला का उद्देश्य क्या है?
उद्देश्य यही है कि जो गरीब बच्चे हैं, जो खर्च वहन नहीं कर सकते हैं तो उनको हम यहां अपनी पाठशाला में पढ़ाते हैं। हम टीचर्स उनको आगे की पढ़ाई के लिए सपोर्ट भी करते हैं। हम बच्चों को ज्ञान देने के अलावा उन्हें आर्थिक स्थिति को मजबूत कैसे करना है, यह मार्ग भी बताते हैं। आपको पता ही होगा कि मुस्लिम समाज में लड़कियों को ज्यादा बढ़ावा नहीं दिया जाता है, आज से 12-13 साल पहले की बात बता रही हूं। रूबी नाम की एक लड़की को उसके घरवालों ने यहां दाखिला तो करा दिया पर पढ़ने के लिए भेजते नहीं थे जबकि उस लड़की के मन में पढ़ने की इच्छा थी, तो हमने उसके घरवालों को समझाया कि जितना जरूरी लड़कों का पढ़ना है उतना ही जरूरी लड़कियों को भी है ताकि कोई मुसीबत आने पर अपने पैरों पर खड़ी हो सके, जिम्मेदारी समझे और खुद को सपोर्ट कर सके। रूबी के साथ-साथ सभी लड़कियों को हमने पढ़ाया, सिलाई भी सिखाई और ब्यूटिशिएन का कोर्स करना चाहा तो वह भी करवाया।

 

 

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