यूपी की 80 सीटों के साथ ही पूरे देश में भाजपा के खिलाफ जंग के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुकी सपा-बसपा अपनी पहली संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करने जा रहे हैं। ये प्रेस वार्ता कल यानी 12 जनवरी को राजधानी लखनऊ के ताज होटल में आयोजित होनी है। स्पष्ट है कि इस प्रेस वार्ता में यूपी की 80 लोकसभा सीटों के साथ ही देश की समस्त लोकसभा सीटों पर बंटवारे की तस्वीर स्पष्ट हो जायेगी। बात यदि यूपी की 80 लोकसभा सीटों की करें तो सपा-बसपा ने अनौपचारिक रूप से 37-37 सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमति जता दी थी। स्पष्ट है कि यदि कोई अन्य दल भाजपा के खिलाफ इस कथित महागठबन्धन में शामिल होता है तो उसे कितनी सीटें मिल पायेंगी? यह संशय अभी तक बना हुआ है लेकिन उम्मीद जतायी जा रही है कि यह संशय भी कल की प्रेस वार्ता में दूर हो जायेगा।
इस प्रेस वार्ता का आयोजन सपा-बसपा ने अपने-अपने पार्टी कार्यालय में करने के बजाए होटल में किए जाने को लेकर कहा जा रहा है कि दोनों दलों के बीच हुई सहमति इतनी मजबूत है कि दोनों ही दल किसी प्रकार का विवाद न तो अपनी पार्टी के भीतर देखना चाहते हैं और न ही विरोधी दलों को कोई ऐसा मौका देना चाहते हैं जिसका लाभ वे पार्टी पदाधिकारियों को बरगलाने के लिए कर सकें। ऐसा इसलिए भी ताकि दोनों की दल का कोई भी कार्यकर्ता अथवा पदाधिकारी यह न कह सके कि फलां पार्टी ने अपनी अहमियत जताने की गरज सके प्रेस वार्ता का आयोजन अपने कार्यालय में किया।
कल होने वाली इस प्रेस वार्ता में यह भी साफ हो जायेगा कि भाजपा के विरुद्ध बने इस महागठबन्धन मंे कौन-कौन दल शामिल हैं और किन शर्तों पर। इस महागठबन्धन में शामिल होने वाले राष्ट्रीय लोकदल को इस प्रेस वार्ता से काफी उम्मीदे हैं।
आज एक पत्रकार वार्ता के दौरान राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के मुखिया अजित सिंह ने कहा है कि ‘हम महागठबंधन के हिस्सा हैं लेकिन उन्हें कितनी सीटें दी जायेंगी अभी तक महागठबन्धन के दोनों प्रमुख दलों की तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया है।’ कहा जा रहा है कि भाजपा के खिलाफ महागठबन्धन की अगुवाई करने वाले दोनों दल (सपा-बसपा) कल की प्रेस वार्ता में कांग्रेस की भूमिका पर भी कोई न कोई फैसला ले सकते हैं। बताते चलें कि सपा-बसपा गठबन्धन की यह संयुक्त प्रेस वार्ता लगभग 24 वर्षों बाद पुनः होने जा रही है इससे पूर्व दोनों दलों की यह प्रेस वार्ता पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती के साथ हो चुकी है। बताते चलें कि सपा-बसपा गठबंधन 2 जून 1995 में टूटा था। वही वह समय था जब सपा नेताओं द्वारा स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती पर जानलेवा हमला किया गया था। इसके बाद दोनों दल कभी एक साथ नजर नहीं आए लेकिन अब यूपी में दोनों दल एक होते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसका ज्यादातर श्रेय सपा प्रमुख अखिलेश यादव को दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि पार्टी की कमान संभालने के बाद से अखिलेश के समक्ष पार्टी को खड़ा करने की चुनौती थी, यही वजह है कि अखिलेश यादव बिना किसी झिझक के बसपा प्रमुख मायावती से लगातार तब तक मुलाकात करते रहे जब तक उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती को मना नहीं लिया। गौरतलब है कि लोकसभा के उपचुनाव में ये दोनों दलों गठबन्धन का कमाल दिखा चुके हैं। उम्मीद जतायी जा रही है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भी यह गठबन्धन खासतौर से यूपी में अपनी अहमियत से परिचय करवा देगा। इतना ही नहीं यदि यह महागठबन्धन बिना किसी बाधा के लोकसभा चुनाव-2019 की दहलीज पार कर जाता है और कोई कमाल दिखा जाता है तो निश्चित तौर पर नयी सरकार के गठन में इस महागठबन्धन की विशेष भूमिका होगी।