बिहार में सियासी बदलाव के बाद से ही राजनीतिक तपिश थमने का नाम नहीं ले रही है। भाजपा का साथ छोड़ महागठबंधन में वापसी करने के बाद से जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी एक्टिव नजर आ रहें हैं वहीं उनकी ही पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा बगावत की राह पकड़े हुए हैं । कहा जा रहा है कि कुशवाहा ने जिस तरह से नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और जेडीयू के साथ -साथ आरजेडी को भी निशाने पर ले रहे हैं ,उससे लग रहा है कि जल्द ही उपेंद्र कुशवाहा का जेडीयू से नाता टूट सकता है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि उनके पास क्या सियासी विकल्प बचता है।
दरअसल,बिहार के राजनीति में पिछले कुछ दिनों से नेताओं के बीच शह-मात का खेल चल रहा है। उपेंद्र कुशवाहा के भविष्य के कदमों को लेकर लगातार अटकलें लग रही हैं। ये चर्चाएं उस वक्त बढ़ गई थीं,जब भाजपा के तीन नेताओं ने दिल्ली एम्स अस्पताल में कुशवाहा से मुलाकात की थी। हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने इसे सिर्फ शिष्टाचार मुलाकात बताया , लेकिन उसके बाद से जिस तरह के कुशवाह बयान दे रहे हैं उससे लग रहा है कि जेडीयू के साथ जितने दिनों का सफर तय करना था वो कर चुके हैं। वे अब फिर से जुदा होने की तैयारी में है। इसलिए राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा अगर जेडीयू छोड़ते हैं तो फिर उनका सियासी ठिकाना भाजपा के सिवा और कोई नहीं । इस बात को बल तब मिला जब दिल्ली एम्स में कुशवाहा भर्ती थे। इस दौरान भाजपा के तीन नेता रंजन पटेल, संजय टाइगर और योगेंद्र पासवान ने मुलाकात की थी और बिहार के भाजपा नेता भी उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में लेने की इच्छा जता चुके हैं। जेडीयू और आरजेडी के बीच गठबंधन होने के चलते कुशवाहा के पास सिर्फ भाजपा ही पार्टी बचती है, जिसके साथ उनके जाने की आशंका जताई जा रही है। इसका एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि भाजपा के नीतीश के साथ रिश्ते टूटने के बाद से भाजपा ओबीसी नेता की तलाश है। इस तरह से उपेंद्र कुशवाहा के भाजपा में जाने की तमाम उम्मीदें दिख रही हैं । इसके अलावा कुशवाहा समुदाय से सम्राट चौधरी को भाजपा आगे बढ़ा रही है। भाजपा के दूसरे ओबीसी नेता भी कुशवाहा को पार्टी में लाने के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। हालांकि, राजनीति में ये सारे समीकरण समय के साथ बदलते रहते हैं। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि कुशवाहा और भाजपा के बीच किस तरह से रिश्ते बनते हैं।
दूसरी तरफ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा के पास इसके अलावा भी कई विकल्प हैं ,क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय कर दिया था। जिसे वे फिर से खड़ी कर सकते हैं । कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के जरिए साल 2014 के चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर नीतीश कुमार का सफाया कर दिया था। तब उन्हें तीन लोकसभा सीटें जीतने में सफलता मिली थी । ऐसे में कहा जा रहा है कि राज्य में एक बार फिर से उसी तरह से राजनीतिक हालत बन गए हैं, जिसके चलते माना जा रहा है कि कुशवाहा किसी दूसरे की पार्टी में जाने के बजाय खुद की पार्टी को दोबारा से जिंदा करें,हालांकि, आरएलएसपी को लेकर अरुण कुमार के साथ कानूनी लड़ाई चल रही है। इतना ही नहीं कुशवाहा के साथ जुड़े रहे तमाम नेता भी साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में कुशवाहा के लिए अपनी पार्टी को खड़ी करना इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि सियासी समीकरण काफी बदल गए हैं।
इसीलिए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की फिलहाल ऐसी नहीं है कि उपेंद्र कुशवाहा उसे को दोबारा से खड़ी करें। विशेषज्ञों का कहना है कि वो कानूनी दांवपेच में उलझने के बजाय अपनी नई पार्टी लांच करने का दांव चल सकते हैं। कुशवाहा ओबीसी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं और उनके समुदाय का अच्छा खासा वोट है, जो भाजपा और महागठबंधन के बीच बंटता रहा है। कुशवाहा समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के मुद्दे पर वो दांव चल सकते हैं। बिहार में ओबीसी नेताओं की एक लॉबी ऐसी है, जो नीतीश और भाजपा दोनों के साथ नहीं जाना चाहती है। ऐसे में लोगों के लिए वो विकल्प दे सकते हैं। हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा के लिए नई पार्टी बनाना और फिर से खड़ा करना आसान नहीं है। कुशवाहा खुद इतने बार सियासी पल्टी मार चुके हैं कि उनके साथ राजनीतिक भरोसे की भी दिक्कत है। बिहार में भाजपा , जेडीयू और आरजेडी जैसी मजबूत पार्टियां हैं, जिनके रहते हुए लोग उनके साथ क्यों जाना चाहेंगे। कुशवाहा 2020 के चुनाव में बसपा, ओवैसी, राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन कर भी कोई असर नहीं दिखा सकते है। ऐसे में जब अब जीतन राम मांझी से लेकर आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां तक जेडीयू के साथ हैं तो भाजपा,पासवान की पार्टी को फिर से एक करने में लगी है। ऐसे में कुशवाहा क्या सियासी कदम उठाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा।