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‘लम्पी’ से पशुपालकों में हड़कम

पिछले कुछ समय से देश के कई राज्यों में मवेशियों में लम्पी त्वचा रोग दिन-प्रतिदिन फैलता जा रहा है, जिसने पशुपालकों की कमर तोड़ कर रख दी है। पांच दिन पहले कांगड़ा जिला में लम्पी त्चवा रोग के केवल 450 के करीब मामले थे और दो मौतें दर्ज की गई थीं, लेकिन पांच दिन के भीतर ही ये मामले बढक़र 2 हजार 872 हो गए हैं। यही हाल राजस्थान , हरियाणा और गुजरात सहित अन्य राज्यों का भी है।

 

यह रोग गोवंश अर्थात गाय और भैंस को ही होता है, जिसमें 104 से 106 डिग्री तक बुखार आता है, त्वचा में सूजन और मोटी-मोटी गांठें पड़ जाती हैं और कमजोरी से दूध उत्पादन में कमी हो जाती है। सबसे बड़ी परेशानी की बात यह है कि यह रोग संक्रामक है और आसानी से एक पशु से दूसरे पशु में फैल जाता है। यह एक विषाणु जनित स्किन रोग है। इस रोग का विषाणु मच्छरों, मक्खियों, चिचड़ी और कीटों से आसानी से फैल जाता है। गंदे पानी, लार और चारे से भी यह रोग आसानी से फैल जाता है। जो काम होने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है। इस वजह से पशुपालकों में इस रोग को लेकर हडक़ंप मचा हुआ है।

इसे रोकने का प्रयास करते हुए हरियाणा के कुछ जिलों में मवेशियों के लिए धरा 144 लागू है. जिसके तहत मवेशिओं की आवाजाही पर रोक लगा दी है। साथ ही गुरुग्राम में होने वाले पशु प्रदर्शन व पशु मेलों पर भी कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे इस वाइरल को बढ़ने से रोका जा सके। हाल ही में पंजाब से आये आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में लम्पी स्किन डिजीज से पंजाब में लगभग 74 हजार 325 मवेशी, गुजरात में लगभग 58 हजार 546, राजस्थान में करीब 43हजार 962, जम्मू-कश्मीर में लगभग 6 हजार 385, उत्तराखण्ड में लगभग 1 हजार 300, हिमाचल प्रदेश में लगभग 532 व अंडमान निकोबार में 260 मवेशी संक्रमित हैं।

 

मवेशियों की होगी जाँच

 

स्वस्थ मवेशियों को संक्रमित मवेशियों के संपर्क में आने से बचने के लिए मवेशियों के आवाजाही पर जांच होगी। जांच करने वाले अधिकारियों ने बताया कि ” लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) रोग के प्रसार की जांच करने के लिए संक्रमित जानवरों को आइसोलेट किया जा रहा है। साथ ही, जानवरों के शवों को खुले में फेंकना और उनके शवों से खाल निकालना आदि प्रतिबंध कर दिया गया है। पशु शवों का निस्तारण प्रोटोकॉल के अनुसार पशुपालन विभाग के अधिकारियों की देखरेख में किया जा रहा है।”

 

कहाँ से हुई लम्पी की शुरुआत

 

लम्पी स्किन डिजीज एक वायरल रोग है। यह वायरस पॉक्स परिवार का है। लम्पी स्किन बीमारी अफ्रीका से फैली बीमारी है जो ज्यादातर अफ्रीकी देशों में है। कहा जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश से हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। ये बीमारी अफ्रीका में लगभग वर्ष 1929 से है जो साल 2012 के बाद से तेजी से फैलने लगी। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार लम्पी डिजीज मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन , भूटान, नेपाल में फ़ैल चुके हैं। भारत में इसका पहला केस अगस्त 2021 में राजस्थान के कुछ जिलों में सबसे पहले सामने आया था।

इस बीमारी के फैलने का दूसरा कारण यह भी बताया जा रहा है कि यह बीमारी गंदगी में रहने के कारण फैलती है और अधिकतर गौशालाएं ऐसी हैं जहां मवेशियों को गंदगी में रखा जाता है और मच्छर मक्खियों के कारण यह बीमारी गायों में फैल जाती है। हालांकि लम्पी से पीड़ित मवेशियों को स्वस्थ मवेशियों से दूर रखा जा रहा है।

 

लम्पी के रोकथाम

 

लम्पी की बढ़ती बीमारी को देखते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पशुपालन विभाग के डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज गाय – भैंस में चमड़ी का रोग है जो लम्पी स्किन डिजीज वायरस के कारण होता है। उन्होंने बताया कि पशु पालकों को लम्पी बीमारी से घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि सावधानी बरतने की जरूरत है। शासन-प्रशासन व पशुपालन विभाग की ओर से इस बीमारी की रोकथाम के लिए प्रयास किया जा रहा हैं। पशुपालकों से अपील करते हुए उन्होंने कहा पशुपालक रोग प्रभावित क्षेत्र से पशु ना खरीदें। यह गोवंश और भैंसों को प्रभावित करने वाली एक संक्रामक, छूत और आर्थिक महत्व की बीमारी है। यह चमड़ी और शरीर के अन्य भागों में गांठ बनने के उपरान्त फटने से बने घावों के कारण कभी-कभी घातक भी हो सकती है।

गौरतलब है कि यह ‘लम्पी’ बीमारी सबसे पहले वर्ष 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। हाल के कुछ वर्षों में यह दुनिया के कई देशों में फैल गई है । वर्ष 2015 में इस बीमारी ने तुर्की और ग्रीस, 2016 में रूस में पशुपालकों का बहुत नुकसान किया था। भारत में इस बीमारी को सबसे पहले वर्ष 2019 में रिपोर्ट किया गया था।संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार 2019 से यह बीमारी 7 एशियाई देशों में फैल गई थी ।भारत में अगस्त 2019 में ओडिशा में लम्पी का पहला मामला सामने आया था लेकिन अब यह 15 से अधिक राज्यों में फैल चुकी है। इसकी संक्रामक प्रवृति और प्रभाव के कारण वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ ने इसे नॉटिफाएबल डिजीज की श्रेणी में रखा है। यानी अगर किसी पशु में लम्पी बीमारी देखी जाती है तो पशुपालक तुरंत सरकारी अधिकारियों को सूचित करेंगे। इस बीमारी के जानकार कहते है कि यह बीमारी मक्खी, खून चूसने वाले कीड़े और मच्छर से फैलती है। कोई कीड़ा अगर किसी संक्रमित पशु का खून चूसता है और फिर किसी स्वस्थ पशु के शरीर पर आकर बैठ जाता है तो इससे स्वस्थ पशु संक्रमित हो जाता है, इसलिए संक्रमित पशुओं को बाकी पशुओं से अलग रखा जाना चाहिए। सामान्यतः इस वायरस का प्रभाव 15-20 दिन तक बहुत ज्यादा रहता है। लेकिन कई मामलों में यह वायरस 120 दिन तक जिंदा रहता है, इसलिए संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशु से कम से कम 25 फीट दूरी पर रखना चाहिए। लेकिन कई पशुपालक ऐसे हैं जिनके लिए बीमार पशुओं को अलग रख पाना संभव नहीं है।

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