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राजस्थान में पशुओं पर बरपा ‘लम्पी’ का कहर

इन दिनों राजस्थान में एक लाइलाज लम्पी नाम के चर्म रोग ने पशुओं पर कहर बरपा हुआ है। इससे अभी तक राज्य में लगभग 1200 से अधिक गायों की मौत हो चुकी है। जबकि सैकड़ों मवेशी इससे संक्रमित हैं। इसका कोई सटीक उपचार न होने के कारण यह तेजी से फैलता ही जा रहा है।इसने पशुपालकों की चिंता बढ़ा दी है। इस बीमारी में पशुओं के शरीर पर गांठे बनने लगती है। सर, गर्दन और जननांगो के पास गांठो का प्रभाव ज्यादा होता है। दो से दस सेंटीमीटर व्यास वाली गांठे पशुओं के लंबे समय तक अस्वस्थता का कारण बन रही हैं ।

ऐतिहासिक रूप से लम्पी की बीमारी वर्ष 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। हाल के कुछ वर्षों में यह दुनिया के कई देशों में फैल गई है । 2015 में इस बीमारी ने तुर्की और ग्रीस, 2016 में रूस में पशुपालकों का बहुत नुकसान किया था। भारत में इस बीमारी को सबसे पहले वर्ष 2019 में रिपोर्ट किया गया था।संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार 2019 से यह बीमारी 7 एशियाई देशों में फैल गई थी । भारत में अगस्त 2019 में ओडिशा में लम्पी का पहला मामला सामने आया था लेकिन अब यह 15 से अधिक राज्यों में फैल चुकी है। इसकी संक्रामक प्रवृति और प्रभाव के कारण वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ ने इसे नॉटिफाएबल डिजीज की श्रेणी में रखा है। यानी अगर किसी पशु में लम्पी बीमारी देखी जाती है तो पशुपालक तुरंत सरकारी अधिकारियों को सूचित करेंगे। इस बीमारी के जानकार कहते है कि यह बीमारी मक्खी, खून चूसने वाले कीड़े और मच्छर से फैलती है। कोई कीड़ा अगर किसी संक्रमित पशु का खून चूसता है और फिर किसी स्वस्थ पशु के शरीर पर आकर बैठ जाता है तो इससे स्वस्थ पशु संक्रमित हो जाता है, इसलिए संक्रमित पशुओं को बाकी पशुओं से अलग रखा जाना चाहिए। सामान्यतः इस वायरस का प्रभाव 15-20 दिन तक बहुत ज्यादा रहता है। लेकिन कई मामलों में यह वायरस 120 दिन तक जिंदा रहता है, इसलिए संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशु से कम से कम 25 फीट दूरी पर रखना चाहिए। लेकिन कई पशुपालक ऐसे हैं जिनके लिए बीमार पशुओं को अलग रख पाना संभव नहीं है।

20 वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक, देश में सबसे अधिक पशुओं के मामले में राजस्थान दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में 5.68 करोड़ पशु हैं। हालांकि पिछली पशुधन जनगणना में पशुओं की संख्या 5.77 करोड़ थी। अभी राजस्थान में 1.39 करोड़ गोवंश हैं। वर्ष 2012 में गोवंश की संख्या 1.33 करोड़ थी। आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में पशुधन की संख्या घटने के बावजूद गोवंश की संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इस बीमारी ने गोवंश के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।

राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र में इस बीमारी ने बड़ी तबाही मचाई है। यह इलाका राजस्थान में सर्वाधिक पशुधन वाला इलाका है। पशुपालन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 22 जुलाई तक लम्पी से बाड़मेर में 373, जैसलमेर में 172, जोधपुर में 113, जालोर में 78 एवं पाली में 13 पशुओं की मौत हो चुकी थी। इतना ही नहीं पूरे राजस्थान की बात करे तो लगभग 1200 पशुओं को मौत हो चुकी है। इस बीमारी की वजह से डेयरी उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक,जोधपुर के ओसियां के डेयरी संचालक रामकरण बताते हैं कि उनकी डेयरी पर हर दिन 700 से 800 लीटर दूध आता था लेकिन अब 200 लीटर भी नहीं जमा हो पाता है। हालात यही रहे तो आने वाले दिनों में राजस्थान में दूध की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो सकती है।

राजस्थान में फ़ैल रहे बीमारी को स्‍वीकारते हुए केंद्रीय कृषि व किसान कल्‍याण राज्‍य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा है कि केंद्र सरकार केंद्रीय वैज्ञानिक दल की सिफारिशों के आधार पर उपचार के लिए जरूरी कदम उठाई जाएंगी। एक केंद्रीय दल ने हाल ही में प्रभावित इलाके का दौरा किया था।

राजस्थान में पशुधन पर इस रोग के कहर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले जोधपुर जिले में पिछले दो सप्ताह में 254 मवेशी इस बीमारी से अपनी जान गंवा चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक,इस पर पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. अरविंद जेटली का कहना है कि यह रोग सबसे पहले राज्‍य के जैसलमेर और बाड़मेर जैसे सीमावर्ती इलाकों में देखने में आया है लेकिन कुछ ही दिनों बाद बहुत तेजी से यह जोधपुर, जालोर, नागौर, बीकानेर, हनुमानगढ़ और अन्य जिलों में फैल गया है।इस पर हमारी टीमें पहले से ही काम कर रही हैं। अफ्रीका में पैदा हुई यह बीमारी पाकिस्तान के रास्ते भारत आई थी। यह बीमारी मुख्य रूप से गायों, विशेषकर देसी नस्‍ल वाली गायों को प्रभावित कर रही है। अभी तक करीब 25,000 पशुधन इस बीमारी से प्रभावित हुए हैं।

इसके साथ ही जेटली ने कहा कि कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली गायों में संक्रमण तेजी से फैल रहा है, क्योंकि रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण अन्य रोग आक्रमण करते हैं और इससे पशु की मृत्यु हो जाती है। इस विशेष बीमारी का अभी कोई इलाज या टीका नहीं है और लक्षणों के अनुसार पशुओं को उपचार दिया जाता है। प्राथमिक लक्षण त्वचा पर चेचक, तेज बुखार और नाक बहना है।

इसी मामले पर जोधपुर में पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक संजय सिंघवी का कहना है कि हमने प्रभावित गांवों में पशु चिकित्सकों की अपनी टीम भेजी है। सभी चिकित्सक गांवों में डेरा डाल कर बीमार मवेशियों का इलाज कर रहे हैं। गौरतलब है कि राजस्‍थान में पशुपालन आजीविका का एक प्रमुख स्रोत भी है। इसकी वजह से लोंगो में आर्थिक दिक्कतों का भी सामना कर रहे है।सबसे ज्यादा जोधपुर में फलोदी, ओसियां, बाप और लोहावट जैसे इलाकों में सैकड़ों मवेशी इस बीमारी से संक्रमित हैं। पशुपालक बेबस होकर अपने पशुओं को मरता हुआ देख रहे हैं। इतना ही नहीं सिंघवी ने कहा कि बीमार पशुओं से यह बीमारी फैल भी रही है। पशुपालकों को संक्रमित मवेशियों को अलग-थलग रखने की सलाह दी जा रही है, ताकि संक्रमण न फैले।

राज्यस्थान में अब तक पांच से 10 प्रतिशत मवेशी लम्पी रोग से संक्रमित हो चुके हैं और अन्य मवेशियों को इस बीमारी से संक्रमित होने से बचाने के लिए पशुपालकों में जागरूकता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पिछले दो हफ्तों में 254 मवेशियों की मृत्यु की सूचना दी गई। हालांकि ठीक हुए मवेशियों की संख्या कहीं अधिक है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 20 जुलाई को जयपुर से विभाग की एक टीम ने भी जोधपुर का दौरा किया।इसके साथ ही टीम ने स्थानीय लोंगो को बीमारी और इसकी रोकथाम के बारे में जानकारी दी है।इस बीमारी पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह बीमारी बहुत तेजी से फैल रही है। जालोर में गौशाला की 50 शाखाओं में 100 से ज्यादा मवेशियों की मौत हो चुकी है। ग्रामीण तो पहले से ही परेशान है।

इस बीच रानीवाड़ा के भाजपा विधायक नारायण सिंह देवल ने 29 जुलाई को पशुपालन मंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि पशुओं में फैले इस चर्म रोग के व्यापक प्रसार को देखते हुए जालौर जिले में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर की संख्या उपलब्ध कराई जाए तथा दवाओं की व्यवस्था की जाए।

इस तरह के घटना को देखते हुए केंद्रीय पशुपालन राज्य मंत्री एवं जैसलमेर-बाड़मेर से सांसद कैलाश चौधरी ने इस रोग के कारण बड़ी संख्या में गायों के मरने की बात स्‍वीकारते हुए कहा है कि केंद्रीय वैज्ञानिकों के दल की सिफारिशों के आधार पर उपचार उपलब्‍ध कराया जाएगा।पश्चिमी राजस्थान में गायों में फैल रहे बीमारी के अध्ययन तथा रोकथाम के लिए काम किया जा रहा है। इसकी जानकारी आईसीएआर के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के दल को भेजा गया है, इनकी सलाह के अनुसार,इसके उपचार के लिए आवश्यक कदम केंद्र सरकार द्वारा उठाएं जाएंगे। इतना ही नहीं उनके अनुसार, इस बीमारी से बड़ी संख्या में गायों की मृत्यु हुई है, जो दुःखद है। उन्होंने यह भी कहा कि किसान और पशुपालक वर्ग इससे त्रस्त और हताश हैं। इसके निदान के लिए मैं हरसंभव प्रयास के लिए प्रतिबद्ध हूं। गहलोत सरकार भी इस बीमारी को गंभीरता से देखने की ज़रूरत है। जिससे किसानों एवं पशुपालकों को राहत मिल सकें।

राजस्‍थान में जहां पशुधन बड़ी संख्‍या में है। और पशुपालन बहुत बड़ा व्यवसाय है। इसलिए इस बीमारी को गंभीरता से लिये जाने की जरूरत है। पशुधन गणना के मुताबिक, पशुधन संख्या के लिहाज से राजस्‍थान भारत में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है। वर्ष 2019 में पशुओं की संख्या 5.6 करोड़ आंकी गई थी।

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