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लव जिहाद: कानून बना रही मध्यप्रदेश सरकार, उत्तराखंड में मिल रहे शादी पर 50 हजार

लव जिहाद को लेकर भाजपा शासित राज्यों में बड़ी बहस शुरू हो गई है । दरअसल, भाजपा शासित एक राज्य ऐसा है जो लव जिहाद पर कानून बनाने के लिए विधानसभा में सत्र के दौरान  संशोधन करने की तैयारी कर रहा है । वह राज्य मध्यप्रदेश है।  जहां के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा  ने गत दिनों लव जिहाद पर सख्त कानून बनाने की घोषणा कर इस प्रकरण को चर्चाओं में ला दिया है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ उत्तराखंड की सरकार है। यहां भी भाजपा की सरकार है। लेकिन यहां की सरकार लव जिहाद को आगें बढ़ाने के लिए समर्थन दे रही है । मतलब यह कि यहा की सरकार दो धर्मों के प्रेमियों पर शादी करने पर प्रतिबंध नहीं लगा रही बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए ₹50,000 भी दे रही है। यह मामला सामने आने पर फिलहाल देश में लव जिहाद पर राजनीति शुरू हो गई है।
 उत्तराखंड में किसी को भी यह इलम नहीं था कि उनकी सरकार लव जिहाद को बढ़ावा दे रही है। यही नहीं बल्कि दो धर्म संप्रदाय के लोगों युवक युवतियों द्वारा शादी करने पर उन्हें प्रोत्साहन राशि के रूप में ₹50000 भी दे रही है। खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी शायद इस सच से वाकिफ नहीं थे। तभी तो उन्होंने टिहरी गढ़वाल के समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्डियाल के एक प्रेस नोट पर प्रदेश के प्रमुख सचिव ओम प्रकाश को जांच के आदेश दे दिए हैं।
हुआ यूं कि  टिहरी गढ़वाल के समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्डियाल द्वारा गत 18 नवंबर को मीडिया को एक प्रेस नोट जारी किया गया। जिसमें उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय एकता की भावना को जागृत रखने तथा समाज में एकता बनाए रखने के लिए अंतरजातीय एवं अंतर धार्मिक विभाग काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं। इसमें भिन्न-भिन्न परिवारों में एकता की भावना सुदृढ़ होगी और जाती पाती का भेदभाव मिटेगा । इस प्रकार के विवाह को सक्रिय प्रोत्साहन देने के लिए समाज कल्याण विभाग उत्तराखंड द्वारा अंतरजातीय अंतर धार्मिक विवाहित दंपत्ति को प्रोत्साहन स्वरूप 50,000 रूपये प्रदान किए जाते हैं।
योजना के अंतर्गत विवाह की स्थिति में विवाह का एक पक्ष अनुसूचित जाति का होना आवश्यक है। जबकि अंतर धार्मिक विवाह संघ या ब्यूरो द्वारा मान्यता प्राप्त मंदिर, मस्जिद , गिरजाघर या देवस्थान से सम्यक रूप से संपन्न हुआ हो ।
अपने प्रेस नोट में टिहरी गढ़वाल के समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्डियाल ने मीडिया ने आगे लिखा कि योजना अंतर्गत आवेदन पत्र इस कार्यालय से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। साथ ही उन्होंने प्रेस रिलीज में लिखा कि विवाह होने के पश्चात विभाग का रजिस्ट्रेशन आवश्यक है । विवाह के 1 वर्ष तक भी आवेदन किया जा सकता है।
18 नवंबर 2020 को जारी इस प्रेस नोट में उत्तराखंड की सियासत में एक बार फिर उफान ला दिया। प्रेस नोट के सामने आ जाने के बाद राजनीतिक दलों से लेकर आम नागरिकों तक सभी ने राज्य की भाजपा सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया । मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसका संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश तक दे दिए । जबकि शायद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बात से अनभिज्ञ थे कि टिहरी गढ़वाल के जिला समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिड़ियाल द्वारा प्रेस नोट में जारी की गई जितनी भी बातें थी वह सभी सत्य हैं।
 यहां यह बताना जरूरी है कि जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश राज्य का ही एक हिस्सा हुआ करता था, तब वर्ष 1976 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यह स्कीम चलाई गई थी। अविभाजित उत्तर प्रदेश में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन नियमावली  1976 प्रदेश के तत्कालीन राष्ट्रीय एकीकरण विभाग के आयुक्त एवं सचिव सत्य प्रकाश भटनागर द्वारा 16 जुलाई 1971 को लागू रूपरेखा थी।
तब इस प्रोत्साहन राशि में सरकार एक हजार रुपया देती थे । इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रोत्साहन राशि को एक हजार से बढ़ाकर 10000 कर दिया । वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बना तो उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश की इस नियमावली जो ज्यों की त्यों  अपना लिया । वर्ष 2014 में जब उत्तराखंड में विजय बहुगुणा की सरकार थी तब इस अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन नियमावली में प्रोत्साहन राशि का इजाफा किया गया । तब इसे 10000 से बढ़ाकर 50,000 रूपये कर दिया गया।
प्रोत्साहन राशि बांटे जाने के प्रेस नोट के सामने आने के बाद प्रदेश सरकार ने कहा कि इस मामले में जारी आदेश को ठीक करने की कार्रवाई की जा रही है। उधर, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार आलोक भट्ट ने कहा है कि इस नियमावली को संसोधित किया जाएगा। साथ ही वह यह भी कहते हैं कि संशोधन की कार्रवाई में समय लगेगा मगर इस आदेश को ठीक कर दिया जाएगा।
इस मामले पर फिलहाल उत्तराखंड सरकार सवालों और संदेहो के घेरे में आ गयी है। टिहरी गढ़वाल के समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्डियाल द्वारा प्रेस नोट जारी करके यह मामला प्रकट किया गया है। जिसमे ज्यादातर लोगो का कहना है कि समाज कल्याण अधिकारी के द्वारा प्रेस नोट जारी करने के पीछे सरकार की मंशा इस प्रकरण का राजनीतिकरण करना है। इस तरह अंतर्राजीय और अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन नियमावली 1976 को सामने लाकर सरकार इस पर संसोधन करना चाहती है। जिससे लव जिहाद पर इस नियमावली को संसोधित करके सख्त बनाया जाए। हालांकि प्रदेश का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह कह रहा है कि टिहरी गढ़वाल के समाज कल्याण अधिकारी के द्वारा इस नियमावली को प्रेस नोट के जरिए इस लिए सार्वजानिक किया गया है कि जिससे सरकार को इसका पता चल सके। लेकिन दूसरी तरफ सवाल यह भी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस प्रकरण पर जाँच के आदेश कैसे कर दिए है ? आखिर वह जाँच के माध्यम से क्या सामने लाना चाहते है ? जबकि तथ्यों के आधार पर यह उजागर हो चूका है कि विवाह प्रोत्साहन नियमावली 1976 पूरी तरह सत्य है।

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