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MCD में फिर खिलेगा कमल या चलेगी झाड़ू  

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एमसीडी (MCD ) यानी दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए बिगुल बज चुका है। सत्तारूढ़ बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। MCD चुनाव बीजेपी के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है जबकि आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता पाने के बाद बीजेपी को एमसीडी से बेदखल करने को आतुर है। कांग्रेस भी दिल्ली में खोई हुई अपनी जमीन को वापस पाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रही है। लेकिन इस बार दिल्ली में MCD चुनाव बिल्कुल अलग है। अलग इसलिए है कि बीजेपी को इस बार  कांग्रेस नहीं बल्कि आम आम आदमी पार्टी से चुनौती मिल रही है। गौरतलब है कि 4 दिसंबर को इस बार नगर निगम की 250 सीटों पर चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता टिकट की दावेदारी के लिए पार्टी कार्यालय के चक्कर काटते नजर आ रहे हैं।

आप पार्टी के कार्यकर्ता गली-गली जाकर सड़क और सफाई जैसे मुद्दे को उठा रहे हैं। दिल्ली में बीजेपी द्वारा आप पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर घेरने की कोशिश जारी है। भाजपा चाहती है कि इससे आम आदमी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचे। साथ ही यमुना नदी को स्वच्छ बनाने, बसों की कमी, गंदे पानी की समस्या और प्रदूषण के मुद्दे पर किए गए आप सरकार के वादों को बीजेपी निशाना बना रही है। हालांकि दिल्ली के इलाकों में निगम की ढुलमुल व्यवस्था कई बार देखने को मिलती है जो आम आदमी पार्टी के लिए इस बार फायदा का सौदा साबित हो सकती है।

चलेगा मोदी मैजिक !

इस बार के MCD चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती सत्ता विरोधी लहर  (एंटी-इनकंबेंसी) है। इस चुनाव में जहां बीजेपी को अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े नेता से निपटना होगा, वहीं 15 साल तक एमसीडी में रहने के बाद बनी खराब छवि को सुधारने की जरूरत होगी। अगर इस चुनाव में बीजेपी की ताकत की बात करें तो बड़ी चुनावी मशीनरी और संगठनात्मक  कौशल, पीएम मोदी का चेहरा, दिल्ली का कथित शराब घोटाला, सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पर जांच एजेंसी का शिकंजा समेत कई और मुद्दे हैं। वहीं, अल्पसंख्यक समाज में विश्वास नहीं जगा पाना पार्टी के लिए खतरा हो सकता है। हालांकि कोरोना काल के दौरान घर-घर जाकर कचरा कलेक्ट करना, विपक्ष का नदारद रहना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में राशन वितरण, 15 साल में किए गए इन कार्यों का विवरण इस चुनाव में भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
नए नारे के साथ चुनावी मैदान में कांग्रेस

अगर कांग्रेस की बात करें तो इस बार पार्टी दिल्ली में MCD चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतर चुकी है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस शीला दीक्षित के कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों को भुनाने में है। इस बार कांग्रेस का नारा है, ‘मेरी चमकती दिल्ली’, मेरी कांग्रेस वाली दिल्ली, शीला दीक्षित वाली दिल्ली।’ अगर पार्टी की ताकत की बात करें तो बुरे हालात में भी कांग्रेस के साथ खड़े रहने वाले उसके कार्यकर्ता ही उसकी ताकत है। साथ ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का बदलना और मल्लिकार्जुन खड़गे का अध्यक्ष बनना कांग्रेस के लिए संजीवनी एक बड़ी ताकत है। लेकिन कांग्रेस नेताओं में एकजुटता न होना उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। नेताओं में गुटबाजी चरम पर है। आम आदमी पार्टी के दरबार में जा चुके अल्पसंख्यक समाज और दलित समाज को वापस लाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।

 एमसीडी चुनाव में कौन से मुद्दे रहेंगे हावी

सबसे बड़ी समस्या नगर निगम की बदहाल व्यवस्था है। इससे पिछले पांच वर्षों में यहां अराजकता की स्थिति बनी हुई है। कई बार एमसीडी के कर्मचारियों को वेतन न मिलने पर हड़ताल जैसे कदम उठाने पड़ते हैं। तो एक स्थिति यह है कि नगर निगम की कमियां प्रशासन स्तर पर कर्मचारियों से संबंधित ज्यादा रही हैं। दूसरा, जनता के स्तर पर समस्या यह है कि दिल्ली में बहुत गंदगी है। साफ-सफाई का बहुत बुरा हाल है। आवारा जानवर घूम रहे हैं, सड़कों का बुरा हाल है, इसलिए पिछले पांच साल से नगर निगम का ट्रैक रिकॉर्ड खराब रहा है। देखा जाए तो दिल्ली के लोगों के लिए बहुत अच्छा अनुभव नहीं रहा है। यह लोगों के लिए बड़ी समस्या है।

क्या कहता है सर्वे ?

हाल ही में सामने आए सी वोटर सर्वे के अनुसार, MCD चुनाव में बीजेपी के खाते में 118-138 सीटें जा सकती हैं। वहीं, आम आदमी  को 104 से 124 सीटें मिल सकती हैं। वहीं, कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहने का अनुमान है। सर्वे में कांग्रेस को 4-12 सीटें तक मिलने की संभावना है। वहीं, 0-4 सीटें अन्य के खाते में जा सकती हैं। मालूम हो कि एमसीडी में कुल 250 सीटें हैं। सर्वे में बताया गया है कि बीजेपी को 42 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है। इसके अलावा, आप दूसरे नंबर पर हो सकती है। पार्टी को 40 फीसदी वोट मिल सकते हैं। कांग्रेस के खाते में सिर्फ 16 पर्सेंट और अन्य के पास 2 फीसदी वोट जा सकते हैं।

एमसीडी का इतिहास

एमसीडी की शुरुआत 64 साल पहले दिल्ली के चांदनी चौक के ऐतिहासिक टाउन हॉल से हुई है। तब यही टाउन हॉल दिल्ली की एमसीडी के सत्ता का केंद्र हुआ करता था। एमसीडी की पहली मेयर अरुणा आसफ अली थीं। दिल्ली की अधिकांश जगहों पर एमसीडी का शासन था। एमसीडी का गठन संसद द्वारा पारित दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के तहत किया गया। भारत की आजादी के एक दशक बाद नीति बनाने वालों ने जब एमसीडी के बारे में विचार लिया तो इसे बॉम्बे नगर निगम की तर्ज पर गठित करने का फैसला लिया गया। दिल्ली के पहले नगर आयुक्त, पीआर नायक ने भी 7 अप्रैल, 1958 को कार्यभार संभाला था और उनका कार्यकाल 15 दिसंबर, 1960 को समाप्त हो गया था।
वर्ष 1958 में एमसीडी में 80 पार्षद थे। इसके पश्चात यह संख्या 134 हो गई और वर्ष 2007 में संख्या 272 तक पहुँच गई। वर्ष 2011 में जब दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित थीं तब एमसीडी को तीन हिस्सों उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगम में बांटा गया था। 11 साल बाद मोदी सरकार के द्वारा एमसीडी को फिर से एकीकृत कर दिया गया।

क्या है MCD की जिम्मेदारी ?

स्ट्रीट लाइट, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, प्राइमरी स्कूल, शमशान और जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र, डिस्पेंसरीज, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, ड्रेनेज सिस्टम, और बाजारों की जिम्मेदारी दिल्ली नगर निगम के पास है। यह दिल्ली नगर निगम के पास आमदनी के भी बड़े स्त्रोत है। दूसरा दिल्ली नगर निगम का सालाना बजट 15 हजार करोड़ से ज्यादा है। अब एमसीडी का एक ही कार्यालय होगा। एमसीडी का एक ही भवन और सदन होगा। एक मेयर और एक स्टैंडिंग कमिटी ही बनेगी।

एमसीडी पर पिछले 15 साल से भारतीय जनता पार्टी काबिज है। वर्ष 2017 में भाजपा ने नॉर्थ दिल्ली में 64 वार्डों पर जीत का परचम लहराया था। वहीं आम आदमी पार्टी को 21 और कांग्रेस को 16 वार्डों में जीत हासिल हुई थी।

इसी तरह भाजपा को साउथ दिल्ली में 70, आप को 16 और कांग्रेस को 12 वार्डों पर जीत मिली थी। ईस्ट दिल्ली के 47 वार्ड में भाजपा, 12 में आप और तीन पर कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत पाई थी। वर्ष 2012 के चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में था। उस समय आम आदमी पार्टी इस चुनावी मैदान में नहीं उतरी थी।

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केंद्र सरकार ने इसी साल मई में तीनों एमसीडी को मिलाकर एक कर दिया है। यानी अब दिल्ली में तीन की जगह केवल एक मेयर होगा। पहले के मुकाबले उनकी शक्तियां अधिक रहेगी। एक मेयर को ही अब पूरी दिल्ली की जिम्मेदारी संभालनी होगी।

नए परिसीमन से कई वार्डों के दायरे में बदलाव आया है। कई वार्डों का क्षेत्रफल बढ़ा है, जबकि कई का घटा है। इसी तरह वोटरों की संख्या में भी बदलाव हुआ है। कई वार्डों में मतदाताओं की संख्या घटी है तो कई में यह बढ़ी है। वार्डों की संख्या में भी बदलाव किया गया है। मसलन, अब दिल्ली का सबसे बड़ा वार्ड मयूर विहार फेज-1 बन गया है।  दूसरे और तीसरे नंबर पर त्रिलोकपुरी और संगम विहार हैं। चांदनी चौक का वार्ड अब सबसे छोटा हो गया है। एससी कोटे के तहत 42 सीटें आरक्षित हैं। अब बदले हुए परिसीमन से जाति समीकरण में भी बड़ा बदलाव आया है।

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