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केंद्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आमद बाद से ही भाजपा लगातार मजबूत होती चली गई है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कभी ‘कमल’ का नामोनिशान नहीं था। आज वहां से ‘हाथ’ गायब है और चौतरफा ‘कमल’ खिल चुका है। त्रिपुरा में वामपंथियों का सूपड़ा भाजपा ने 2018 में ही साफ कर दिया था और 2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल में भी ‘कमल’ दमदार उपस्थिति दर्ज करा वामपंथियों और कांग्रेस को पीछे छोड़ तृणमूल का असली प्रतिद्वंद्वी बन उभरा। 2021 के विधानसभा चुनाव में भी उसका प्रदर्शन शानदार रहा, भले ही तृणमूल का सत्ता में कब्जा बरकरार रहा, नेता विपक्ष का दर्जा भाजपा के खाते में चला गया। अब मोदी-शाह और नड्डा की त्रिमूर्ति ‘मिशन केरल’ को परवान चढ़ाने में जुट गई है। हालांकि राज्य विधानसभा चुनाव के अभी चार वर्ष बाकि हैं लेकिन आसन्न लोकसभा चुनाव में कमल खिलाने की रणनीति के तहत भाजपा ने अपनी पूरी ताकत केरल में झोंक दी है। दिग्गज कांग्रेसी नेता एके एंटनी के पुत्र का भाजपा की सदस्यता ग्रहण करना भाजपा के इसी मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है

 

देश के अधिकांश राज्यों में अपना वर्चस्व कायम करने में सफल रही भाजपा के लिए अगला लक्ष्य केरल में पार्टी का परचम लहराना है। इसके लिए भाजपा नेतृत्व ने जमीनी स्तर पर तैयारियां तेज कर दी है। मेघालय, त्रिपुरा और नागालैंड के विधानसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन से गदगद भाजपा अभी से ही मिशन केरल के लिए जुट गई है। केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन भाजपा 2024 के आम चुनाव में दमदार उपस्थिति दर्ज कराने के लिए अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गई है। उनका यह प्रयास काफी हद तक सफल होता भी दिख रहा है। केरल कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व रक्षा मंत्री ऐके एंटोनी के बेटे अनिल एंटोनी भाजपा में शामिल हो गए हैं। केरल कांग्रेस के डिजिटल मीडिया सेल के प्रभारी रहते अनिल एंटोनी ने जनवरी माह में विवादित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के मुद्दे पर पार्टी से दूरी बना ली थी। इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि अनिल भाजपा में शामिल हो सकते हैं। वैसे अनिल केरल की राजीनीति में भले ही बड़े नेता न हों लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता एके एंटोनी के बेटे होने से उनका सियासी महत्व बढ़ जाता है। एके एंटोनी केरल के मुख्यमंत्री रहने के साथ ही देश के 8 साल तक रक्षा मंत्री रह चुके हैं। एंटोनी कांग्रेस के भरोसेमंद नेता माने जाते हैं। भले ही उन्होंने चुनावी राजनीति छोड़ दी हैं लेकिन वे अभी भी भारतीय कांग्रेस कमेटी कोर ग्रुप के सदस्य हैं और पार्टी के अनुशासन समिति के अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी का भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है और भाजपा के लिए अनिल के रूप में संजीवनी बूटी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अनिल एंटनी के भाजपा में शामिल होने और कांग्रेस के कमजोर होने से भाजपा को कोई बड़ा लाभ नहीं मिलने वाला है क्योंकि केरल में वैचारिक, राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से भाजपा की मुख्य लड़ाई भाकपा के साथ है। जबकि कांग्रेस एवं वामंपथी दलों का संघर्ष वैचारिक से ज्यादा राजनीतिक रहा है। वहीं केरल की कुल आबादी में ईसाई समुदाय और मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 48 फीसदी है। राज्य में क्रिश्चियन की आबादी 18.38 फीसद और मुस्लिम आबादी 26.56 फीसद है। इन दो माइन्योरिटी कम्युनिटी का रुझान ही केरल की सत्ता तय करता है। राज्य की सियासत में चर्च और ट्रेड यूनियंस का भी खासा दबदबा है। सरकार बनाने के लिए इन दोनों समुदाय पर पकड़ होना जरूरी है। अब तक केरल में लेफ्ट और कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। 1956 में केरल राज्य के गठन के बाद पहली बार मार्च 1957 में विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ने जबरदस्त जीत हासिल की थी। उस समय उनकी सरकार पूरी दुनिया में पहली चुनी हुई वामपंथी सरकार थी। ईएमएस नंबूदरीपाद पहले मुख्यमंत्री बने थे। नंबूदरीपाद ने शिक्षा और कृषि भू-सुधार के महत्वपूर्ण कानून बनाए। जन-स्वास्थ्य सेवाओं एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कई सुधार किए। लेकिन नंबूदरीपाद की सरकार अपने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। कांग्रेस ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। यह सरकार भी सिर्फ 1964 तक चल सकी। तीसरी विधानसभा के लिए मध्य अवधि चुनाव हुए तो नंबूदरीपाद पूर्ण बहुमत हासिल करके फिर से मुख्मयंत्री बने। लेकिन एक वर्ष बाद ही उनको इस्तीफा देना पड़ा फिर सी अच्युत मेनन मुख्यमंत्री बने। 1970 में मेनन ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर चुनाव करवाए। अच्युत मेनन फिर मुख्यमंत्री बने और केरल के राजनीतिक इतिहास में पहली बार सरकार पांच साल चली। 1980 में छठवीं विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने सात राजनीतिक दलों को मिलाकर पहली बार गठबंधन बनाया जिसे लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) कहा गया। फिर इसी तरह 1982 में कांग्रेस ने यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) नाम का गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा। तब से राज्य में यही दो बड़े पॉलिटिकल फ्रंट हैं। और राज्य की राजनीति इन्हीं दोनों फ्रंट के इर्द-गिर्द घूम रही है और हर 5 साल बाद इन्हीं दो फ्रंटों के पास ही सत्ता आती-जाती रही है।

2021 के चुनाव में पिनराई विजयन की सरकार ने सत्ता में दोबारा वापसी कर केरल में इतिहास रच दिया है। इतिहास तो भाजपा ने भी 2016 में रचा था जहां केरल के इतिहास में भाजपा ने विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीती थी, वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव में नेमोम सीट को जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी। यहां से भारतीय जनता पार्टी के कैंडिडेट ओ. राजगोपाल ने माकपा नेता वी सिवनकुट्टी और यूडीएफ कैंडिडेट पूर्व मंत्री वी सुरेंद्रन पिल्लई को हराकर सबको चौंका दिया था। लेकिन भाजपा दूसरी बार यह करिश्मा नहीं दिखा सकी। 2021 के विधानसभा में भाजपा फिर से शून्य पर आ गई। लेकिन भाजपा का वोट प्रतिशत बड़ा हैं। नार्थ ईस्ट के तीन राज्य मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा में अच्छे प्रदर्शन से केरल भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी जोश बढ़ा है। मेघालय और नागलैंड में गठबंधन की सरकार हैं और त्रिपुरा में भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाकर वामपंथियों को झटका दिया है। पश्चिम बंगाल में भी भाजपा अच्छा प्रदर्शन कर रही है। वामपंथियों के दो किले ढहाने के बाद भाजपा अब केरल में पूरा जोर लगा रही है।

कहा जाता है कि भाजपा चुनाव से 1 वर्ष पहले तैयारी में जुट जाती है। जब पूर्वोत्तर की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ता को संबोधित करते हुए कहा था कि भाजपा केरल में 2026 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन से सरकार बनाएगी तब से ही प्रदेश भाजपा ईसाई समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गई है।

थैंक्यू मोदी प्रोग्राम की शुरुआत
2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने केरल में ‘नन्नी मोदी’ प्रोग्राम कर रही है। नन्नी मोदी का अर्थ है ‘थैंक यू मोदी’। इस प्रोग्राम की शुरुआत फरवरी 2024 से की गई। इस प्रोग्राम में उन लोगों को शामिल किया जा रहा है जो विभिन्न केंद्रीय सरकारी योजना का लाभ उठा रहे हैं। इस अभियान में स्थानीय बूथ स्तर के कार्यकर्ता ऐसे स्थानीय लोग से मिल रहे हैं जो केंद्रीय सरकार की योजना किसान सम्मान निधि, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे विभिन्न योजना का लाभ ले रहे हैं। भाजपा के कार्यकर्ता इन लाभार्थियों से मिलकर उनका एक वीडियो बना रहे हैं। जिसमें ये लोग वीडियो के माध्यम से धन्यवाद मोदी कहते हुए अपनी खुशी व्यक्त कर रहे हैं। इस वीडियो को भाजपा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जाएगा और इसे नमो एप पर भी शेयर किया जाएगा। फिलहाल 12 हजार लोग मलयालम भाषा में ‘थैंक मोदी’ का वीडियो भाजपा केंद्रीय कार्यालय में भेज चुके हैं।

ईस्टर संडे पर एक लाख लोगां से मिले भाजपा कार्यकर्ता
‘नन्नी प्रोग्राम’ की तर्ज पर ही भाजपा ने ईसाइयों के प्रमुख त्योहार ईस्टर के लिए खास तैयारी की है। इस कार्यक्रम के तहत भाजपा कार्यकर्ता ने 9 अप्रैल को लगभग एक लाख ईसाई धर्म प्रवर्तकों (पादरियों) बिशपो के घर पहुंचे और उन्हें ईस्टर की शुभकामनाएं दी। ईस्टर के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिल्ली में सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल कैथोलिक चर्च गए। इस दौरान उन्होंने धार्मिक गुरुओं से चर्चा की, साथ ही समूह फोटो खिंचवाया। चर्च के पादरियों ने उन्हें साल ओढ़ाकर स्वागत किया तथा प्रभु ईसा मसीह की मूर्ति भेंट की। इसके बाद केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने त्रिवेंद्रम के लैटिन कैथोलिक के आर्कबिशप डॉ थॉमस जे नेट्टो के घर पर पहुंचकर शुभकामनाएं दी। वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समिति के सदस्य पी कृष्णा दास कन्नूर जिले में थालास्सेरी आर्कबिशप मार जोसेफ पामप्लानी से जाकर मुलाकात की। इसके अलावा, पार्टी एक मुस्लिम आउटरीच कार्यक्रम की भी योजना बना रही है, जो ईद-उल-फितर पर शुरू होगा। कुल मिलाकर भाजपा का ‘मिशन केरल’ अब वामपंथी दलों और कांग्रेस के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती बन उभरने लगा है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एके एंटनी के पुत्र की भाजपा में एंट्री संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में प्रदेश कांग्रेस के कई अन्य बड़े चेहरे भी पाला बदल सकते हैं।

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