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गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में लूट ही लूट

‘गाजियाबाद विकास प्राधिकरण’। पैसा फेंको तमाशा देखो वाली स्थिति है इस प्राधिकरण में। वैसे तो उत्तर प्रदेश के लगभग समस्त प्राधिकरणों का हाल एक जैसा है लेकिन गाजियाबाद विकास प्राधिकरण अन्य प्राधिकरणों के मामले में थोड़ा अलग है। औद्योगिक नगरी होने के कारण यहां लाखों के भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि करोड़ों के भ्रष्टाचार से जुडे़ मामले प्रकाश में आते रहे हैं। रही बात राज्य सरकारों की भूमिका की तो किसी ने बहती गंगा में खूब हाथ धोए तो कोई भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की बात करके भी प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं कर पाया। वह भी तब जब भ्रष्टाचार से जुडे़ पुख्ता दस्तावेज और कैग की रिपोर्ट सच्चाई को बयां करती रही। आला अधिकारियों की शिकायत और विभागीय जांच रिपोर्ट में भी तमाम बार खुलासा किया जा चुका है लेकिन भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं रखा जा सका।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण में एक बार फिर से भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। इस बार भी कैग की रिपोर्ट में खुलासा किया जा चुका है। कैग ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में पुष्टि की है कि हाईटेक टाउनशिप बनाने वालों को लाभ पहुंचाने की गरज से प्राधिकरण के सारे नियमों को ताक पर रखकर 572.48 करोड़ रुपये की चोट पहुंचायी गयी है।

विस्तृत रिपोर्ट बताती है कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने रिश्वत की परम्परा निभाने वाले बाहुबली बिल्डरों से भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क लिए बगैर ही नक्शा पास कर दिया। कैग ने शासन को भेजी गयी रिपोर्ट में कहा है कि आॅडिट के दौरान यह देखने को मिला है कि हाईटेक टाउनशिप बनाने वालों को आंख बंदकर अनैतिक मदद दी गयी।

रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2005 में तत्कालीन सरकार ने गाजियाबाद में हाईटेक टाउनशिप के विकास के लिए दो विकासकर्ताओं का चयन किया। उस वक्त राज्य में महायोजना-2001 प्रभावी थी। महायोजना के प्लान में कृषि योग्य भूमि को हाईटेक टाउनशिप के लिए तय किया गया था। जुलाई 2005 में तत्कालीन सरकार ने महायोजना-2021 को मंजूरी दी। इसके तहत हाईटेक टाउनशिप के लिए चिह्नित भूमि का उपयोग सांकेतिक रखा गया लिहाजा बिल्डरों को भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क देना अनिवार्य कर दिया गया। वर्ष 2006 और 2007 में बनाई गई नीतियों में भी विकासकर्ताओं से भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क लिए जाने की बात शामिल थी।

महायोजना-2021 को लेकर 23 अप्रैल 2010 को एक शासनादेश जारी किया गया। शासनादेश में यह कहा गया कि ‘उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 के तहत हाईटेक टाउनशिप के लिए भू-उपयोग सांकेतिक दिखाने का कोई प्राविधान नहीं है। चूंकि गाजियाबाद महायोजना-2021 में जैसा भू-उपयोग दिखाया गया था, उस प्रकार की भूमि का उपयोग आवासीय माना जाएगा। अतः इस क्षेत्र पर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क देय नहीं होगा। मई 2017 में आॅडिट के दौरान पाया गया कि आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने विकासकर्ताओं के अनुरोध पर महायोजना में सांकेतिक भू-उपयोग को आवासीय में परिवर्तित कर उन्हें शुल्क से राहत दी थी।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कुछ इस तरह से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने बाहुबली और धनबली बिल्डरों को अनुचित लाभ पहुंचाया। इस अनुचित लाभ दिए जाने से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को 572.48 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि 23 अप्रैल 2010 का यह आदेश इस तथ्य की अनदेखी करते हुए जारी किया गया था कि महायोजना में प्रस्तावित हाईटेक सिटी का भू-उपयोग मात्र सांकेतिक था। यहां बताना जरूरी है कि पूर्व में प्राधिकरण की ओर से सख्त निर्देश जारी किए गए थे कि बिल्डर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क जमा करने के बाद ही कृषि योग्य भूमि को आवासीय में बदल सकता है, जिसे बाद में बिल्डरों को लाभ पहुंचाने की गरज से मनचाही छूट दी गयी।

लेखा परीक्षा में यह तथ्य उजागर हुआ कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने 4722.19 एकड़ भूमि के लिए विकासकर्ताओं की लेआउट योजनाओं को अनुमोदित किया था। इसमें उप्पल चड्ढा हाइटेक डेवलपर्स प्रा.लि. (अक्टूबर, 2010 से अक्टूबर, 2013) के लिए 4004.25 एकड़ तथा सन सिटी हाईटेक इन्फ्रा प्रा.लि (जुलाई, 2011) के लिए 717.94 एकड़ की जमीन शामिल थी।

मामले का खुलासा तब हुआ जब भाजपा सरकार ने वर्ष 2017 में सत्ता हासिल की। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद ही गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के काम का आडिट कराने का फैसला किया गया था। इसी आडिट के बाद जीडीए के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है। मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में और प्राथमिकता के आधार पर भ्रष्टों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही जा रही है लेकिन समाचार लिखे जाने तक किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पायी थी।

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