काफी समय से राजस्थान सहित देश कई राज्यों में ‘लम्पी’ नाम का चर्म रोग पशुओं पर कहर बरपा रहा है।इसकी चपेट में आकर अभी तकदेशभर में लगभग 75000 से अधिक गायों की मौत हो चुकी है।जबकि 15 लाख से ज्यादा मवेशी इससे संक्रमित हैं। इसका कोई सटीक उपचार न होने के कारण यह तेजी से फैलता ही जा रहा है। जिससे पशुपालकों की चिंता बढ़ती ही जा है। इस बीमारी में पशुओं के शरीर पर गांठे बनने लगती हैं।सिर, गर्दन और जननांगों के पास गांठ का प्रभाव ज्यादा होता है। दो से दस सेंटीमीटर व्यास वाली गांठे पशुओं के लंबे समय तक अस्वस्थता का कारण बन रही हैं । इस बीमारी से सबसे खराब हालात राजस्थान की है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यहां अब तक 10.61 लाख गायें संक्रमित हाे चुकी हैं,जबकि लगभग 45 हजार से अधिक की मौत हो चुकी है। इससे गो-पालन पर निर्भर परिवारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है।
दूसरी ओर देशभर दूध की भी किल्लत होने लगी है। इसी बीच, केंद्र सरकार ने कहा है कि जिन राज्यों में संक्रमण बढ़ रहा है, वहां वैक्सनेशन तेज करें। पशुपालन विभाग ने अगले 2 महीने में 40 लाख गायाें के वैक्सीनेशन का टारगेट रखा है।हालांकि एक पहलू यह भी है कि सबसे अधिक संक्रमित जिलों जोधपुर और बाड़मेर में कई दिन से वैक्सीनेशन ही बंद है। जोधपुर में अब तक 1,13,485 और बाड़मेर में 1,01,487 गायें संक्रमित हाे चुकी हैं।जिन राज्यों में लम्पी का कहर ज्यादा है, वहां की सरकारों को बारिश थमने का इंतजार है। माना जा रहा है कि वायरस के अधिक सक्रिय होने का कारण बारिश है। बारिश रुकते ही वायरस फैलाने वाले मच्छर-मक्खी कम होंगे और लम्पी पर लगाम लग जाएगी। इस बीच, वैक्सीन लगाने का काम जरूर तेजी से हो रहा है। फिलहाल गायों को गोट पॉक्स वैक्सीन लगाई जा रही है। हालांकि राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र व भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने स्वदेशी वैक्सीन तैयार कर ली है। इसका भी कोई फायदा होते दिख नहीं रहा है।
लम्पी संक्रमित होते ही गाय का दूध बहुत कम हो जाता है या बंद हो जाता है। राजस्थान में सबसे ज्यादा प्रभावित 5 जिलों में दूध उत्पादन 30% कम हो गया है। गुजरात के यह 10% है। आपूर्ति घटने से कुछ डेयरी संघों ने दूध के दाम 2 से 4 रुपए बढ़ा दिए हैं।लम्पी की चपेट में भारतीय नस्लें ज्यादा आ रही हैं। राजस्थान वेटरनरी यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी डॉ. एके गहलोत कहना है कि, अच्छे रखरखाव के बावजूद राठी, थारपारकर, कांकरेज, गिर और साहीवाल नस्लें की गाय संक्रमित हो रही हैं। ये 5 नस्ल की गाय अधिक दूध देती हैं।
क्या है लम्पी बीमारी
सबसे पहले लम्पी की बीमारी वर्ष 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। लेकिन हाल के वर्षों में यह दुनिया के कई देशों में देखने को मिली है। वर्ष 2015 में इस बीमारी ने तुर्की और ग्रीस, और वर्ष 2016 में रूस में पशुपालकों का बहुत नुकसान किया था। भारत में इस बीमारी को सबसे पहले वर्ष 2019 में रिपोर्ट किया गया था।संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार 2019 से यह बीमारी 7 एशियाई देशों में फैल गई थी । भारत में अगस्त 2019 में ओडिशा में लम्पी का पहला मामला सामने आया था लेकिन अब यह 15 से अधिक राज्यों में फैल चुकी है। इसकी संक्रामक प्रकृति और प्रभाव के कारण वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ ने इसे नॉटिफाएबल डिजीज की श्रेणी में रखा है। यानी अगर किसी पशु में लम्पी बीमारी देखी जाती है तो पशुपालक तुरंत सरकारी अधिकारियों को सूचित करेंगे। इस बीमारी के जानकार कहते है कि यह बीमारी मक्खी, खून चूसने वाले कीड़े और मच्छर से फैलती है। कोई कीड़ा अगर किसी संक्रमित पशु का खून चूसता है और फिर किसी स्वस्थ पशु के शरीर पर आकर बैठ जाता है तो इससे स्वस्थ पशु संक्रमित हो जाता है, इसलिए संक्रमित पशुओं को बाकी पशुओं से अलग रखा जाना चाहिए। सामान्यतः इस वायरस का प्रभाव 15-20 दिन तक बहुत ज्यादा रहता है। लेकिन कई मामलों में यह वायरस 120 दिन तक जिंदा रहता है, इसलिए संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशु से कम से कम 25 फीट दूरी पर रखना चाहिए। लेकिन कई पशुपालक ऐसे हैं जिनके लिए बीमार पशुओं को अलग रख पाना संभव नहीं है।20 वीं पशुधन जनगणना के मुताबिक, देश में सबसे अधिक पशुओं के मामले में राजस्थान दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में 5.68 करोड़ पशु हैं। हालांकि पिछली पशुधन जनगणना में पशुओं की संख्या 5.77 करोड़ थी। अभी राजस्थान में 1.39 करोड़ गोवंश हैं। वर्ष 2012 में गोवंश की संख्या 1.33 करोड़ थी। आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में पशुधन की संख्या घटने के बावजूद गोवंश की संख्या में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इस बीमारी ने गोवंश के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
पशुपालकों का मुआवजा केंद्र के भरोसे
पशुपालन विभाग के सचिव पीसी किशन ने बताया कि पशुपालकों को मुआवजे को लेकर प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार काे पत्र लिखा है। यानी मुआवजा फिलहाल केंद्र के भरोसे है। सरकारी आंकड़ाें में ही मौतों का आंकड़ा इतना बड़ा है कि मुआवजा देना बड़ी चुनौती है। इधर, किशन ने बताया कि एलएसडी प्राे. वैक्सीन भी अब तक खरी नहीं उतरी है। केंद्र ने उस पर निर्णय नहीं लिया है। फिलहाल गाेट पॉक्स वैक्सीन लगाई जा रही है। 21 लाख डाेज आ चुकी हैं। वहीं 25 लाख डाेज और मंगवाने के लिए हमने ऑर्डर दिया है। दो महीने में 40 लाख गायों को वैक्सीन लग जाए। इनमें से करीब 12 लाख गायें प्रदेश में गोशालाओं में है।
इस पर पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया का कहना है कि पश्चिमी राजस्थान में संक्रमण और मृत्यु दर घटी है। जैसलमेर में एक सप्ताह से लम्पी से किसी जानवर के मरने की रिपोर्ट नहीं मिली है।
गौरतलब है कि, देश के 15 राज्यों में लम्पी का कहर कोरोना की तरह ही भयावह है। लम्पी से पशु प्रभावित हैं, जो अपना दर्द किसी को कह नहीं सकते। बीमारी 2019 से चल रही है, लेकिन 2 साल तक इसके कम मामले सामने आए। इस साल मई-जून में संक्रमण कोरोना की तरह फैल रहा है।केंद्र को तत्काल कदम उठाना चाहिए और इसे महामारी घोषित करना चाहिए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को बचाव की कमान संभालनी चाहिए। जिन किसानों के पशु मरे हैं, उन्हें मुआवजा भी मिलना चाहिए। जब उद्योगपतियों को पैकेज मिल सकता है तो लम्पी प्रभावित किसानों को क्यों नहीं?