भारत में हिंदी सहित 21 अन्य भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन देश के सबसे बड़े न्यायाल में कार्य प्रक्रिया के लिए केवल अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग किया जाता है। इस कारण अन्य भाषाओं वाले लोग सुनवाई को नहीं समझ पाते हैं। जिसे देखते हुए डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण अब अलग-अलग भाषाओं में घर-घर तक पहुंचाया जाएगा।
साथ ही अब अंग्रेजी में होने वाली बहस का अनुवाद भी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने की कोशिश की जा रही है। ताकि लोग सुप्रीम कोर्ट की लाइव कार्यवाही को अपनी भाषा में भी समझ सकेंगे। इससे जुड़ी तकनीक पर तेजी से काम हो रहा है। गौरतलब है की इससे पहले भी कई दफा इसकी मांग उठ चुकी है की जब हिंदी देश की राजभासा है, और उसे काफी लोग समझ भी सकते हैं तो सुप्रीम कोर्ट में केवल अंग्रेजी का ही प्रयोग अधिक क्यों किया जाता है।
समलैंगिक विवाह की सुनवाई के दौरान उठी बात
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर चल रही सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश सरकार के ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा था कि लोग समलैंगिक विवाह के इस मुद्दे पर कोर्ट की कार्यवाही को देख रहे हैं। यह समाज में एक चर्चा का विषय बन गया है। लोग इस विषय पर बातें कर रहे हैं। लेकिन गैर अंग्रेजी भाषी और ग्रामीण आदि क्षेत्र के अनपढ़ लोग इसे नहीं समझ पाते। इसका यही रास्ता है कि अन्य भाषाओं में भी कोर्ट की कार्यवाही शुरू की जाए। इस पर सहमति जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा की कार्यवाही के सीधे प्रसारण से लोग अब सुप्रीम कोर्ट के बारे में जान पा रहे हैं। उनका कहना है कि लाइव प्रसारण द्वारा अदालत लोगों के दिलों व घरों तक राह बना रही है।
कैसे बनी अंग्रेजी भाषा SC की प्रमुख
ये एक महत्वपूर्ण सवाल कि अदालतों की भाषा में अंग्रेजी आई कैसी। दरअसल देश में जब जिस प्रकार की सत्ता का शाषन देश में रहा उसी हिसाब से अदालतों की भाषा भी बदलती चली गई। अंग्रेजों के शासन से पहले भारत पर फारसी या उर्दू भाषी राजाओं था तब अदालत में उनकी भाषा हुआ करती थी, क्योंकि देश का शासन इन्हीं भाषा का इस्तेमाल करने वाले राजतंत्र के हाथ में था। इसके जब देश की सत्ता अंग्रेजों के हाथ आई, तो कोर्ट की भाषा अंग्रेजी हो गई। अर्थात अदालतों में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होने को एक तरह का औपनिवेशिक संस्कार कहना गलत नहीं होगा। लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद अदालतों की भाषा में कोई परिवर्तन नहीं किया। ऐसा भाषा की विविधता के कारण ही किया गया था। उदाहरणतः मान लीजिए केरल हाईकोर्ट में एक मामले को लेकर मलयालम में बहस चल रही है। अगर दोनों ही पक्ष मलयालम समझ आती हैं तब तो कोई परेशानी नहीं है । लेकिन अगर ऐसा हो कि दोनों पक्षों में से कोई एक वकील या कोई एक पक्ष मलयालम नहीं जनता और किसी और राज्य सम्बन्ध रखता हो। ऐसे में, उपाय यही है की पांचवीं तक या उसके बाद भी मातृभाषा में पढ़ाई के फॉर्मूले को लागू करना होगा और शिक्षा व्यवस्था को अंग्रेजी के साथ-साथ स्थानीय भाषा में भी बढ़ावा देने की जरूरत है। नई शिक्षा नीति में सिफारिश भी की गई थी कि 5वीं क्लास तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का मीडियम बनाया जाए। इस तरह जब ऐसे छात्र कोर्ट में वकील या जज बनकर जाएंगे तो वे अंग्रेजी और स्थानीय भाषा दोनों को समझ पाएंगे। इसके अलावा साल 2019 में कोर्ट ने एक पहल शुरू की है जिसके तहत अदालत के आदेशों को स्थानीय भाषा में भी अनुवादित किया जा रहा है।