कोरोना के कारण देशभर में लॉकाडाउन जारी है। कोरोना संक्रमितों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। अब तक संक्रमित मरीजों की संख्या लगभग 28 हजार हो गई है। जबकि कुल 881 लोग आज सोमवार तक मौत के शिकार हुए हैं। इसी संकट के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने कर्ज सीमा को एक बार फिर से बढ़ा दिया है।
दरअसल, RBI से कर्ज लेने के नियमों में संशोधन कर सरकार ने एक ऐसा रास्ता निकाला है जिसके बाद सरकार केंद्रिय बैंक से पहले से तीन गुना पैसा कर्ज के रूप में उठा सकती है। 20 अप्रैल को नियमों में संसोधन करके कर्ज की रकम करीब तीन गुना बढ़ाकर 2 लाख करोड़ कर दिया। पहले यह सीमा 75,000 करोड़ थी।
इतनी भारी रकम निकालने की तैयारी क्यों?
अब सवाल ये उठाया जा रहा है कि सरकार आखिर रिजर्व बैंक से इतनी भारी रकम निकालने की तैयारी क्यों कर रही है। कुछ का मानना है कि देश पहली बार वित्तीय आपातकाल की तरफ बढ़ रहा है। सवाल ये भी उठता है कि आरबीआई नियमों में किस तरह की तब्दीली की है।
गौरतलब है कि आरबीआई हमेशा से ही सरकार को केवल सरप्लस फंड ही देता आया है। पर ऐसा पहली बार है जब मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकार द्वारा सरप्लस से अधिक रकम निकालने की तैयारी की जा रही है। माना जा रहा है कि इसी के तहत आरबीआई से अधिक से अधिक रकम प्राप्त करने के लिए नियमों में संशोधन किया गया है।
सरकार पहले RBI से ले सकती थी केवल 75 हजार करोड़
यहां ध्यान देना जरूरी है कि पहले कर्ज के रूप में केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से केवल 75 हजार करोड़ ले सकती थी, पर मौजूदा सरकार ने 1 अप्रैल, 2020 को इसे संशोधित कर रकम निकालने की सीमा को बढ़ाकर 1 लाख 20 हजार करोड़ कर दिया। उसके बाद 20 अप्रैल, 2020 को एक और नियमों में संसोधन किया और रकम निकालने की सीमा को बढ़ाकर 2 लाख करोड़ कर दिया।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने पिछले साल भी मोदी सरकार को 24.8 अरब डॉलर यानी लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपये लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर ट्रांसफर कर दिया था। और इस प्रकार आरबीआई की 2018 और 2019 की सारी कमाई सरकार के खाते में चली गई थी। आरबीआई के इस कदम की तब चौतरफा आलोचना हुई थी। विपक्षी दलों समते कई अर्थशास्त्रियों ने इस फैसले को RBI की स्वायत्तता को खत्म करने वाला कदम बताया था।
RBI की स्वायत्तता पर सवाल
जब ये सब कुछ हुआ था तब मौजूदा आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल समेत कई बड़े अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया था। फाइनेंशियल टाइम्स में कनाडा की कार्लटन यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विवेक दहेजिया की एक लेख प्रकाशित हुई थी। अपने लेख में दहेलिया ने लिखा था कि आरबीआई अपनी कार्यकारी स्वायत्तता खो रहा है और सरकार के लालच को पूरा करने का जरिया बनता जा रहा है। उन्होंने ये भी कहा था कि इससे रिजर्व बैंक की विश्वसनीयता कमजोर होगी।
उसके बाद आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने सरकार को चेताते हुए कहा था, “सरकार ने आरबीआई में नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप बढ़ाया तो इसके बहुत बुरे नतीजे होंगे।” उन्होंने ये भी कहा था जो सरकारें अपने केंद्रीय बैंकों की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सबेर वित्तीय बाज़ारों के ग़ुस्से का सामना करना ही पड़ता है।