प्राय देखने में आता है कि जब व्यक्ति किसी सरकारी नौकरी में नियुक्त होता है तो वह एक संतुष्टि पूर्वक स्थिति में आ जाता है। अधिकतर लोग जिस पद पर नियुक्त होते हैं उस पर ही अपनी नीयति को मानकर सरकारी नौकरी करतें रहते हैं।
लेकिन बहुत से लोग इसके इतर होते हैं । वह सरकारी नौकरी में जब कोई पहला पद पाते हैं तो उसे पहली सीढी मानकर मंजिल की तरफ बढ चलते हैं। ऐसे ही व्यक्ति हैं फिरोज आलम।
यू तो अपने ही पुलिस बल में सिपाही से एसीपी बनना पुलिस के हर सिपाही का सपना होता है। लेकिन यह सपना कुछ बिरले युवा ही साकार कर पाते हैं। इस सपने को दिल्ली पुलिस में दस साल तक सिपाही रहे फिरोज आलम ने साकार किया है।
फिरोज आलम पिछ्ले कुछ समय में देश के युवाओं के लिए रोल मॉडल बनकर उभरे हैं।
फिरोज आलम की इस लोकप्रियता की एक वजह फिरोज का करिश्माई व्यक्तित्व भी है। उनके सम्पर्क में आने वाला हर व्यक्ति उनका मुरीद बन जाता है। दिल्ली पुलिस में दस वर्षों में हजारों पुलिसकर्मियों के साथ काम कर चुके फिरोज उन सभी के चहेते हैं। उनकी सफलता का जश्न उनके हजारों साथियों ने मनाया था।
फिरोज के दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल से एसीपी बनने के सफर को हर किसी मीडिया संस्थान ने अलग अलग दृष्टिकोण से दिखाया है। लेकिन फिरोज आलम का एक ऐसा अनछुआ पहलू भी है जिसपर मीडिया का ध्यान आकृष्ट नही हो सका है। वह है फिरोज आलम का खाकी में शिक्षा को प्रचारित प्रसारित करता दूसरा रूप। इस रूप में वह ग्राम पाठशाला की पोशाक में नजर आते हैं। जब भी उन्हें मौका मिलता तभी वह टीम ग्राम पाठशाला के सिपाही के तौर पर गाँव-गाँव जाकर लोगों से उनके गाँव के बच्चों को शैक्षिक स्तर पर मजबूत करने के लिए लाइब्रेरी निर्माण की माँग करने पहुँच जाते।
एक लाइब्रेरी मैन के तौर पर चर्चित हुए फिरोज आलम ने ग्राम पाठशाला टीम के इस अभियान में बढ चढ कर भाग लिया। यही नहीं बल्कि वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लाइब्रेरी स्थापित कराने को किए गए कार्यक्रमों में शरीक हुए। गावों में लाइब्रेरी निर्माण के लिए उन्होंने साईकिल चलाकर जनजागरण अभियान में भी हिस्सा लिया। जिला हापुड के पिलखुवा में अपने गांव देहपा सहित आजमपुर गढी, जटपुरा, गौतमबुद्ध नगर के कुडीखेडा और अस्तोली, गाजियाबाद के गनौली में भी आधुनिक लाइब्रेरी की स्थापना कराई। यही नहीं बल्कि कई लाइब्रेरी पर छात्रो को मोटीवेट करने के लिए लिये भी जा चुके हैं। जहां वह युवाओं को यूपीएससी पास करने के गुर सिखाने के अलावा जीवन में कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करते रहे हैं ।
मैं टीम ग्राम पाठशाला से पूरे मन के साथ जुड़ा हूँ। क्योंकि इस संगठन में सभी सदस्य बराबर हैं। कोई अध्यक्ष या सचिव नहीं है। पैसे का दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। और लोग इतने समर्पित हैं कि अपनी छुट्टी के दिन गाँव-गाँव जाकर लोगों को लाइब्रेरी निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं। मैंने भी ग्राम पाठशाला के लिए काफी कार्यक्रम अटेंड किए। जिसमें मुझे बेहद प्रसन्नता मिली। गांव के लोग इस मिशन से जुड़ रहे हैं । यह अभूतपूर्व है। इसके चलते ही हमने अपने गांव और आसपास के कई गांवों में लाइब्रेरी बनवा कर ग्राम पाठशाला के मिशन को आगे बढ़ाया है। मैं आगे भी इस मिशन के लिए सदैव समर्पित रहूंगा ।
-फिरोज आलम एसीपी (दिल्ली पुलिस)
एसीपी की ट्रेनिंग शुरू होने से पहले जब भी उन्हें समय मिलता वह दिल्ली पुलिस की नौकरी से थोड़ा समय निकालकर ग्राम पाठशाला के मिशन लाइब्रेरी कार्यक्रम में पहुंच जाते। कार्यक्रम में उनकी एक विशेष शैली की काफी सराहना हुई । जिसमें वह भाषण नहीं देते थे बल्कि लाइब्रेरी उद्घाटन में मौजूद लोगों से कहते थे कि उनके मन में जो भी सवाल है उनसे कर सकता है। सवालों के जवाब वह इस कदर देते कि वहां मौजूद लोग उनसे काफी कुछ सीखते। उनके बताए गए रास्ते आज की युवा पीढ़ी आत्मसात करती है। ऐसे ही एक कार्यक्रम में जब गौतम बुद्ध नगर के कुड़ी खेड़ा में वह लाइब्रेरी स्थापना समारोह को संबोधित कर रहे थे तो यूपी पुलिस में कांस्टेबल के लिए चयनित एक गांव की छात्रा ने उनसे आगे बढ़ने के गुर सीखें।
छात्रा ने फिरोज आलम से सवाल किया कि जब वह दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी कर रहे थे तो इस दौरान उन्होंने कैसे टाईम शैड्यूल बनाया और आईपीएस की परीक्षा पास कर ली। साथ ही उसने कहा कि वह यह सवाल इसलिए पूछ रही है क्योंकि उसे भी आपसे प्रेरणा मिली है। वह भी यूपी पुलिस के कॉन्स्टेबल से आईपीएस बनने का सफर तय करना का सपना साकार करना चाहती है। इस पर फिरोज आलम ने तब अपना कांस्टेबल की ड्यूटी और आईपीएस की तैयारी करने का पूरा शेड्यूल बता कर उनके मन में आई जिज्ञासा को शांत किया। इसके साथ ही उन्होंने उसे उत्साहित करते हुए कहा कि जब वह कांस्टेबल थे तो तब उन्होंने भी राजस्थान के विजय सिंह गुर्जर से प्रेरणा ली थी । याद रहे कि गुर्जर भी कांस्टेबल से आईपीएस बने हैं।
ग्राम पाठशाला के सक्रिय सदस्य और साइकिल मैन कहे जाने वाले प्रवीण बैसला वह शख्स हैं जिन्होंने तक 8 दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 5 जिलों के करीब 40 गांवों में साइकिल चलाकर लोगों को लाइब्रेरी स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। अपने साइकिल अभियान के तहत प्रवीण बैसला 29 दिसंबर 2020 को हापुड़ स्थित फिरोज आलम के गांव देहपा पहुंचे थे। तब प्रवीण बैसला के साथ ही फिरोज आलम ने भी साइकिल चलाकर अपने गांव और उसके आसपास के कई गांवों में लाइब्रेरी की स्थापना के लिए जन जागरण अभियान चलाया था।
साइकिल मैन प्रवीण बैसला बताते हैं कि फिरोज आलम अपने गांव के युवाओं के साथ गांव से करीब 5 किलोमीटर पहले ही आ गए थे । उन्होंने उनका स्वागत करने के साथ ही खुद एक साइकिल पर सवार होकर इस अभियान का गांव गांव डंका बजाया । वह सबसे पहले अपने गांव देहपा पहुंचे। जहां उन्होंने लाइब्रेरी स्थापना शुभारंभ कराई। साथ ही लाइब्रेरी निर्माण के लिए ₹1लाख रूपये भी दिए। इसके साथ ही वह प्रवीण बैसला के साथ आजमपुर गढी, कमालपुर, जटपुरा आदि गांव में गए और वहां लाइब्रेरी निर्माण की आधारशिला रखवाई।
जब कोई व्यक्ति आम आदमी से एक खास मुकाम तक पहुंचता है तो हम कहते हैं की ये व्यक्ति समाज के लिए एक मिसाल हैं। लेकिन एसीपी फ़िरोज़ आलम सर यहीं बाक़ियों से बिल्कुल जुदा हैं। वह एक ऐसी शख्सियत हैं जो ना केवल समाज के लिए सिर्फ एक मिसाल हैं , बल्कि वह युवाओं के लिए एक मशाल है। मिसाल वो कहलाता है जिसने खुद के लिए कामयाबी हासिल की हो। लेकिन मशाल वो कहलाता है जो ना केवल खुद कामयाबी का परचम लहराए बल्कि युवाओं को खुद गांव गांव जाकर उनसे मिलकर उनके कामयाबी के रास्ते को मशाल की तरह रोशन करे । फ़िरोज़ आलम सर ग्राम पाठशाला के साथ मिलकर जिस तरह ‘हर गांव एक लाइब्रेरी मिशन’ के तहत जिस तरह युवाओं के रास्ते में खुद मशाल की तरह जलकर उन्हें कामयाबी का रास्ता बता रहे हैं। उसे देख कर में सिर्फ ये कह सकता हूँ कि वो सामाजिक क्रान्ति और बदलाव की एक ऐसी मशाल है जिसकी मिसाल आज के समय में ढूंढे नही मिलती । मैं इस मशाल को सैल्यूट करता हूँ और उनके लिए वसीम बरेलवी साहब का ये शेर मौजूं है –
“जहां भी जाएगा वही रोशनी लुटायेगा,
किसी चराग का अपना मकां नही होता।”– अमर चौधरी
मोटीवेशन गुरू
फिरोज आलम को ग्राम पाठशाला से जोड़ने का श्रेय रविंद्र बैसला को जाता है। रविंद्र बैसला फिरोज आलम के साथ ही दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात थे। दोनों 100 नंबर कॉल पर काम करते थे। इस दौरान फिरोज आलम ने रविंद्र बैसला से ग्राम पाठशाला मिशन की तारीफ करते हुए कहा कि वह भी इस मिशन से जुड़ना चाहते हैं। इसके बाद फिरोज आलम ग्राम पाठशाला के लाइब्रेरी स्थापना समारोह में जाने लगे। यहां तक कि वह वह ग्राम पाठशाला के ‘ब्रांड एंबेसडर’ कहलाए जाने लगे।
ग्राम पाठशाला के मिशन लाइब्रेरी में तब चार चांद लग गए जब फिरोज आलम ने टीम के साथ वह विशेष टी शर्ट भी धारण की जो टीम का हर सदस्य पहनता है। जब खाकी पहनने वाला कोई ऑफिसर ग्राम पाठशाला की टीम की में उनकी विशेष पोशाक में नजर आए तो हौसला बढ़ना लाजमी है। आज भी फिरोज आलम दिल्ली पुलिस के एसीपी बनकर ग्राम पाठशाला के इस हौसले को पर लगाए हुए हैं।