देश की राजधानी दिल्ली के अधिकतर मुद्दों पर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल में तनातनी की स्थिति बनी रहती है। कभी मुफ्त की सुविधाओं को लेकर तो कभी अधिकारों को लेकर देश की राजधानी सियासी अखाड़ा बनती आई है। लेकिन इस बार न लड़ाई अधिकारों की है न ही सुविधाओं की। बल्कि लड़ाई हो रही है शिक्षकों को फिनलैंड में टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम कराने की
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम को लेकर आमने-सामने हैं। एक तरफ केजरीवाल समेत उनकी पूरी पार्टी एलजी पर आरोप लगा रही है कि वह इस ट्रेनिंग से संबंधित फाइल को रोक रहे हैं। दूसरी तरफ एलजी हैं जो लगातार इस आरोप का खंडन कर रहे हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में काबिज आम आदमी पार्टी और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच अक्सर खींचातानी का माहौल बना रहता है। हमेशा से ‘आप’ के नेतृत्व वाली मौजूदा दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच कई मुद्दों पर टकराव की स्थिति बन जाती है और राष्ट्रीय राजधानी की शासन प्रणाली पर प्रश्न- चिन्ह लगा नजर आने लगता है।
दिल्ली में राजनिवास और सत्तासीन आम आदमी पार्टी के मुखिया सीएम अरविंद केजरीवाल के बीच यह सियासी जंग कोई नई नहीं है। इसकी शुरुआत तो तभी हो गई थी जब दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर नजीब जंग थे। अब नए उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के साथ भी उनके पदभार संभालने के करीब सप्ताह भर बाद ही इसकी बानगी भी देश के सामने है। यह अलग बात है कि राजनिवास की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया जा रहा है, लेकिन टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम को लेकर आने वाले दिनों में रार बढ़ने की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता। विनय कुमार सक्सेना पहले ही कह चुके थे कि वह दिल्ली के लोकल गार्जियन के रूप में काम करेंगे और राजनिवास से ज्यादा सड़कों पर दिखाई देंगे। यह मुद्दा संवैधानिक और कानूनी के साथ ही राजनीतिक रंग भी लेता नजर आ रहा है। अब यह मामला केवल दिल्ली के उपराज्यपाल, केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार तक ही सीमित नहीं रह गया है। अब यह मुद्दा दो पार्टियों के बीच एक सियासी रंग ले चुका अहम मुद्दा बन चुका है।
आखिर ताजा मामला क्या है?
दिल्ली सरकार की ओर से फिनलैंड में प्राथमिक शिक्षकों के ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए एलजी को एक प्रस्ताव भेजा गया था। ‘आप’ का आरोप है कि एलजी ने फाइल रोक दी है। दूसरी ओर, लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय ने किसी भी योजना को खारिज करने से इनकार किया है और कहा है कि उन्होंने केवल राज्य को लागत-लाभ विश्लेषण करने की सलाह दी है और इसी खींचतान में मामला गरमा गया है। बीते एक हफ्ते से इस मुद्दे पर‘आप’ सरकार और उपराज्यपाल की आपस में ठनी हुई है। ऐसी स्थिति में सवाल उठ रहे हैं कि क्या फिर से देश की राजधानी टकराव की राह पर चल पड़ी है, यह सवाल कार्यालयों, बाजारों से लेकर राजधानी की गलियों तक में उठने लगा है। जिस तरह उपराज्यपाल (एलजी) आक्रामक रुख अपना रहे हैं और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार उन्हें सीधे घेर रही है, उससे यह चर्चा भी तेज हो गई है कि एलजी आजकल निर्वाचित सरकार से भी तेज दौड़ रहे हैं।
नतीजन दिल्ली सचिवालय और राजनिवास (उपराज्यपाल का आधिकारिक निवास) के बीच दूरी लगातार बढ़ रही है। आम आदमी पार्टी द्वारा एलजी की कार्यप्रणाली पर ‘आप’ सवाल उठाएं जा रहे हैं तो वहीं एलजी संदेश दे रहे हैं कि वह तो इसी तरह काम जारी रखेंगे। इस पूरे मामले पर दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि जब एलजी ही सरकार चलाएंगे तो निर्वाचित सरकार का क्या काम? मामला इतना गंभीर हो चुका है कि पलटवार करते हुए एलजी द्वारा कहा गया कि दिल्ली का प्रशासक मैं हूं। ऐसे में लोगों के बीच चर्चा है कि कहीं दिल्ली में फिर से वर्ष 2015-16 वाले हालात न पैदा हो जाएं और चल रहे विकास की गति को ब्रेक न लग जाए।
वर्ष 2015 में दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग थे और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार। तब उपराज्यपाल नजीब जंग ने नौकरशाहों से मुख्यमंत्री अरविंद का वह आदेश नहीं मानने को कहा था जिसमें पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और जमीन से जुड़े सभी मामलों की फाइलें उनके माध्यम से एलजी को भेजने के लिए निर्देश दिया गया था। दूसरा मामला केजरीवाल ने शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव बनाए जाने का विरोध किया था। ऐसे विवादों में नजीब जंग दिल्ली सरकार द्वारा की गई सभी नियुक्तियों को रद्द किया जाना शामिल है।
अब जब से दिल्ली के उपराज्यपाल का पदभार वीके सक्सेना ने संभाला है तब से उनके और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच छत्तीस का आंकड़ा देखने को मिल रहा है। इसमें सबसे पहला मामला उपराज्यपाल द्वारा अरविंद केजरीवाल को सिंगापुर दौरे के प्रस्ताव पर मंजूरी देने से इनकार कर देने वाला था। इसके पीछे यह दलील दी गई कि कार्यक्रम मुख्यमंत्री स्तर का नहीं है बल्कि मेयर लेबल का है इसलिए मुख्यमंत्री इसमें शिरकत नहीं कर सकते।
इसके बाद शराब नीति में भ्रष्टाचार को लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच ने इस चिंगारी को और हवा देने का काम किया। जिसमें उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने नई आबकारी नीति पर जांच बैठा दी थी। इसके अलावा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से नई एक्साइज पॉलिसी के तहत टेंडर प्रोसेस की जांच करने को कहा था। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की संलिप्तता बताकर उनसे पूछताछ तक की गई है। जिसकी जांच अभी भी जारी है और अब ताजा मामला शिक्षकों की फिनलैंड जाकर प्रशिक्षण लेने को लेकर है।
इन टकरावों के चलते दिल्ली नगर निगम चुनाव के बाद मेयर चुनाव अधर में लटका पड़ा है। वहीं दिल्ली के अहम विकास कार्यों पर भी ब्रेक लग गया है। हालात यह है कि अब तक न तो किसी नई परियोजना पर काम शुरू हो पा रहा है और न पहले से चल रहे काम समय पर पूरे हो पा रहे हैं। सरकार की कई अहम योजनाएं ठप्प पड़ी हैं, या उन पर काम बेहद धीमी गति से चल रहा है। लगभग सभी जरूरी काम अटके हुए हैं। दिल्ली में इस वक्त मोहल्ला क्लीनिकों में दिल्ली की जनता को कई मेडिकल टेस्ट उपलब्ध न होना, डॉक्टरों को समय पर सैलरी न मिलना, सरकारी अस्पतालों में पर्ची बनवाने के लिए लंबी कतारों का सामना करना, बसों में तैनात मार्शलों की सैलरी और रिटायर्ड डीटीसी कर्मचारियों को पेंशन भी महीनों से रुका होना इस बात का प्रमाण है कि सीएम और एलजी की लड़ाई में दिल्ली की जनता काफी परेशानियों से जूझ रही है।
यहां तक कि बिजली सब्सिडी के बदले में सरकार से मिलने वाला पैसा लेने के लिए बिजली कंपनियों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। फूड ट्रक पॉलिसी, दिल्ली इलेक्ट्रॉनिक सिटी, दिल्ली बाजार पोर्टल की लॉन्चिंग भी अटकी हुई है। इसको लेकर दिल्ली सरकार का दावा है कि वित्त विभाग के प्रमुख सचिव आशीष चंद्र वर्मा की तरफ से फंड जारी करने में बार-बार पेंच फंसा दिया जाता है। जिसके कारण सरकार को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। इससे तमाम परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं। विभागों के अधिकारी भी सरकार के कामों में खुलकर सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसी वजह से 16 जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘आप’ विधायकों के साथ राष्ट्रीय राजधानी में एलजी कार्यालय तक मार्च निकाला। आप नेताओं की ओर से इस दौरान आरोप लगाया गया कि दिल्ली सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप किया जा रहा है। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस दौरान कहा कि उपराज्यपाल इस तरह से खुद निर्णय नहीं ले सकते, लेकिन वह ऐसा कर रहे हैं। राजनीतिक कारणों से दिल्ली सरकार के कामों को जानबूझ कर बाधित किया जा रहा है।
उपराज्यपाल हमारे प्रधानाध्यापक नहीं हैं जो हमारे गृहकार्य की जांच करेंगे। उन्हें हमारे प्रस्तावों पर ‘हां’ या ‘ना’ कहना है। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार के कामकाज में एलजी के कथित हस्तक्षेप के खिलाफ ‘आप’ विधायकों के विरोध के बीच 16 जनवरी को दिल्ली विधानसभा की कार्यवाही को दिन भर के लिए स्थगित करना पड़ा था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी के विधायकों ने उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड जाने से रोकने पर प्रदर्शन किया था। इस दौरान सीएम केजरीवाल सभी विधायकों के साथ एलजी से मिलने की मांग पर अड़े रहे। ऐसा न होने पर वे एलजी आवास के पास से वापस लौट आए।
फिनलैंड में शिक्षक ट्रेनिंग क्यों देना चाहते हैं केजरीवाल?
ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर ऐसा फिनलैंड की शिक्षा पद्धति में क्या है जो इस पर इतना विवाद हो रहा है। फिनलैंड उत्तरी यूरोप में बसा एक देश है। यहां की आबादी मात्र 55 लाख है। लेकिन इस छोटे से देश ने शिक्षा के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उसका लोहा पूरी दुनिया मान रही है। वर्षों तक फिनलैंड ने अपनी सफल शिक्षा व्यवस्था से दुनिया के देशों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इसके साथ-साथ फिनलैंड ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले असेसमेंट में साक्षरता और गणित के क्षेत्र में भी अपना दबदबा कायम किया है।
दुनिया भर में प्रसिद्ध मोबाइल कंपनी नोकिया फिनलैंड की ही है। फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम दुनिया में सबसे अच्छी शिक्षा पद्धति मानी जाती है। दुनिया भर के विशेषज्ञ, राजनीतिज्ञ और पत्रकार इस देश की शिक्षा व्यवस्था को जानने के लिए यहां आते हैं। यहां का एजुकेशन सिस्टम अमेरिका, ब्रिटेन या अन्य देशों की तुलना में एकदम अलग है। फिनलैंड आज से नहीं बल्कि दशकों से इस मामले में बहुत आगे रहा है। फिनलैंड के एजुकेशन सिस्टम स्टूडेंट्स को एक अलग तरह की स्वतंत्रता तो देता ही है, साथ ही क्रिएटिविटी के लिए भी लगातार उत्साहित करता है। यहां जब बच्चा 7 साल का हो जाता है तब उसकी फॉर्मल स्कूलिंग शुरू होती है। जब तक बच्चा 16 साल का नहीं हो जाता तब तक वह किसी भी तरह के एग्जाम में नहीं बैठता। सात साल से पहले हर बच्चे को शुरुआती चाइल्डहूड एजुकेशन दी जाती है और उनकी केयर होती है। फिनलैंड के स्कूल में टीचर एक दिन में चार घंटे ही पढ़ाते हैं। यहां प्राइमरी स्कूल के बच्चे को एक साल में सिर्फ 670 घंटे ही गुजारने होते हैं।
यहां बच्चों पर किसी भी तरह का बोझ नहीं होता, वे अपनी इच्छा और अपनी क्षमता के हिसाब से अपने विषय चुन सकते हैं। फिनलैंड की चर्चा दुनियाभर में हो रही है और उसका एक कारण फिनलैंड एजुकेशन हब भी हैं। क्योंकि फिनलैंड एजुकेशन हब द्वारा दुनिया के सभी देशों में इस एजुकेशन सिस्टम को स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है। यह हब दूसरे देशों में इस शिक्षा के पैटर्न को अपनाने के लिए सहायता उपलब्ध कराता है। फिनलैंड के शिक्षा मॉडल ‘फिनिश शिक्षा प्रणाली’ को दुनिया भर से प्रशंसा मिली है। इसे सामान्य ज्ञान आधारित शिक्षा प्रणाली के रूप में जाना जाता है, ऐसे कई मानदंड हैं जो फिनिश शिक्षा प्रणाली को दुनिया के बाकी हिस्सों से अलग करते हैं।
टकराव की मूल वजह
उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच टकराव का मूल कारण संविधान का अनुच्छेद-239ए रहा है। इसमें कहा गया है कि मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का फैसला अंतिम माना जाएगा। दिल्ली सरकार पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और भूमि को छोड़कर दूसरे विषयों पर कोई फैसला ले सकती है, लेकिन यह निर्णय भी दिल्ली सरकार संसद से पारित कानूनों के तहत ही ले सकती है। इस अनुच्छेद के मुताबिक केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के कार्यकारी प्रमुख मुख्यमंत्री नहीं हैं, बल्कि यह हक उपराज्यपाल के पास है।