आनंद मोहन की रिहाई
बिहार में राजपूतों का वोट प्रतिशत 7 से 8 फीसदी है। इसी वोट बैंक को साधने के लिए आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ किया गया। इसका संकेत तेजस्वी यादव ने पिछले साल ही दे दिया था जब उन्होंने यह बयान दिया था कि आरजेडी को वह ए टू जेड यानी सभी जातियों की पार्टी बनाएंगे। हालांकि इस रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलने चलते नीतीश सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं
पिछले दिनों डीएम हत्याकांड में जेल में बंद आनंद मोहन को रिहा कराने का फैसला कर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा जोखिम लिया है। उनके इस निर्णय को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि उन्होंने ऐसा राजनीतिक फायदे के लिए किया है। दरअसल बिहार में पारंपरिक रूप से राजपूत और भूमिहार एक दूसरे के खिलाफ वोट करते हैं। आनंद मोहन इकलौते नेता हैं, जिन्होंने 1995 में इन दोनों जातियों को काफी हद तक एक साथ किया था। अब आनंद मोहन और ललन सिंह के जरिए महागठबंधन फिर वही प्रयास कर रहा है। अगर इसमें 50 फीसदी भी कामयाबी मिलती है तो बिहार में भाजपा की संभावना बहुत कमजोर हो जाएगी। जहां तक दलित की नाराजगी का सवाल है तो नीतीश को भरोसा है कि चिराग पासवान के भाजपा के साथ जाने के बाद महादलित वोट उधर नहीं जाएगा, वह महागठबंधन के साथ ही रहेगा। बिहार की राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यहां सियासत कब किस ओर करवट ले ले किसी को खबर नहीं रहती है। वह भी खासकर तब जब चुनाव आने वाले हों। हमेशा बदलाव के लिए लालायित और अखबारों में चर्चा का विषय रहने वाला बिहार फिर से एक बार चर्चा में है। वजह है अप्रैल 2023 के पहले पखवाड़े में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राज्य के जेल मैन्युअल में किया गया बदलाव। इस बदलाव ने बिहार में हलचल पैदा कर दी है। कहा जाने लगा है कि सियासत अब गलत-सही, अच्छे-खराब से परे जाकर फायदों और वोट बैंक के रास्तों को राजमार्ग में बदलने लगी है। बिहार में उसी सियासी रास्ते का एक हिस्सा अब आनंद मोहन सिंह बनने वाले हैं। 30 साल पहले आईएएस की हत्या में आजीवन कैद की सजा भुगत रहे आनंद मोहन सिंह तोमर के रिहा होने के बाद राज्य की राजनीति में नई सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है।
आनंद मोहन की रिहाई से फंस गए नीतीश!
आनंद मोहन की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश कुमार सरकार को नोटिस जारी किया है। साथ ही पूर्व सांसद आनंद मोहन को भी नोटिस दिया गया है। दिवंगत आईएएस जी. कृष्णैया की पत्नी उमा देवी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये नोटिस दिया है। दरअसल, आईएएस अफसर जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन की रिहाई के फैसले का उमा देवी ने विरोध किया था। उन्होंने नीतीश कुमार सरकार के जेल मैन्युअल में बदलाव किए जाने पर भी सवाल खड़े किए थे।
वैसे इसी साल जनवरी में नीतीश कुमार जेल मैन्युअल में बदलाव का संकेत दे चुके थे। उन्होंने उस प्रावधान को बदल दिया जिसमें सरकारी कर्मचारी की हत्या में उम्रकैद की सजा काटने का प्रावधान था। अब इस मैन्युअल से सरकारी कर्मचारी शब्द हटा दिया गया है। लिहाजा आनंद मोहन 14 साल की सजा काटने के बाद बाहर आ चुके हैं। एक जमाने में आनंद मोहन लालू यादव से सियासी अदावत भी ले चुके हैं और नीतीश से टकरा भी चुके हैं लेकिन अब लालू उनके पारिवारिक मित्र की तरह हैं और नीतीश एक पुराने मित्र।
कौन-सी जेल नियमावली बदली
26 मई 2016 को जेल मैन्युअल के नियम 481(प) (क) में कई अपवाद जुड़े, जिसमें काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या जैसे जघन्य मामलों में आजीवन कारावास भी शामिल था। इस नियम के मुताबिक ऐसे मामले में सजा पाए कैदी की रिहाई नहीं होगी उसे सारी उम्र जेल में रहना होगा। अप्रैल 2023 में इसमें सरकारी सेवक शब्द हटा दिया गया है। अब ऐसी सजा पाए अपराधियों की 14 साल में रिहाई का रास्ता खुल गया है। इस बीच सियासी विश्लेषकों द्वारा अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस रिहाई से कौन-से तीर साधे जाने वाले हैं। इस सियासी खेल में किसको नफा और किसे नुकसान होगा।
क्या आनंद मोहन हैं सियासी फायदा?
आनंद मोहन की रिहाई बिहार में महागठबंधन की राजनीति में नीतीश और लालू दोनों के लिए फायदे का सौदा साबित होगी। चूंकि आनंद मोहन खुद एक राजपूत हैं। साथ ही भूमिहार और राजपूत समुदाय पर खासा प्रभाव रखते हैं जिसके चलते वह जेडीयू और आरजेडी की सियासी नाव को विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में काफी सहयोग दे सकते हैं। दावा किया जा रहा है कि वह अकेले सीमांचल और कोसी की 28 विधानसभा सीटों पर असर डाल सकते हैं। हालांकि बिहार के ही एक नेता द्वारा कहा गया कि अगर आनंद मोहन सियासत में एंट्री लेकर इन दो दलों के साथ आए तो दलित और पिछड़ा वोट उनसे छूट भी सकता है यानी फायदे की गणित नुकसान में परिवर्तित हो सकती है। हालांकि नीतीश कुमार और लालू को विश्वास है कि उनके दलों के वोट बैंक के साथ आनंद मोहन के माध्यम से राजपूत और भूमिहार वोट साथ आ गए तो उनका जीतना तय है। माना जा रहा है कि 69 वर्षीय आनंद मोहन आरजेडी के साथ जाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में राजपूतों का वोट प्रतिशत 7 से 8 फीसदी है। जाहिर है इसी वोट बैंक को साधने के लिए आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ किया गया। आनंद मोहन ने भले ही अपनी राजनीति लालू-विरोध से शुरू की हो, लेकिन अब तो उनके बेटे चेतन आनंद भी राजद विधायक हैं। पिछले साल ही तेजस्वी यादव ने यह बयान दे दिया था कि आरजेडी को वह ए टू जेड, यानी सभी जातियों की पार्टी बनाएंगे। और अब नीतीश कुमार की आपत्ति का रोड़ा भी हट चुका है। वहीं नीतीश कुमार को अपना पीएम वाला सपना पूरा करना है। इसलिए टाइमिंग के हिसाब से अगर देखा जाए तो आनंद मोहन की रिहाई कानूनी कम राजनीतिक ज्यादा है।
छोड़े गए अपराधी
आनंद मोहन के साथ कुल 27 अपराधियों को छोड़ने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। इनमें से एक की मौत पहले ही हो चुकी है। शेष 26 को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई और आनंद मोहन से पहले ही बहुत सारे छूट भी गए। कुछ तकनीकी कारणों से अभी रिहा नहीं हो सके हैं या उनकी रिहाई में वक्त भी लग सकता है। जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो छोड़े जा रहे इन 27 में 8 यादव, 5 मुस्लिम, 4 राजपूत, 3 भूमिहार, 2 कोयरी, एक कुर्मी, एक गंगोता और एक नोनिया जाति से हैं। जातीय जनगणना की प्रक्रिया के बीच इनकी जातियों की चर्चा भी गरम है, फिर भी काफी प्रयास के बावजूद जेल से रिहा होने वाले 27 अपराधियों में से 2 की जाति का पता नहीं चल सका है। इनमें 15 से अधिक कैदी लोक सेवकों की हत्या के आरोप में सजा काट रहे थे।
आनंद मोहन ऐसे बने बाहुबली
बिहार में आनंद मोहन बाहुबली नेता माने जाते हैं। उनका सियासत में प्रवेश करने का रास्ता रहा जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति आंदोलन। यह 1974 की बात है, वह कॉलेज में पढ़ रहे थे। तब कॉलेज के दबंग छात्र नेता के तौर पर उनकी छवि बनने लगी थी। लेकिन उनके परिवार का सहरसा में सम्मान रहा क्योंकि उनके दादा स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। पिता किसान थे। आनंद मोहन का खौफ उस समय ऐसा था कि आज भी उसके कुछ किस्से इलाके के लोग अब भी सुनाते हैं। कई आपराधिक मामलों में उन पर केस दर्ज हुए और कुछ रफादफा कर दिए गए। कुछ मामलों में वह कोर्ट तक भी पहुंचे लेकिन वहां से भी बरी हो जाते। संपूर्ण क्रांति से सक्रिय राजनीति में आने में उन्हें कोई एक डेढ़ दशक लग गया। दो साल उन्होंने आपातकाल के दौरान जेल में भी बिताए।
विधायकी और सांसदी
जनता दल के टिकट पर वह पहली बार वर्ष 1990 में सहरसा के माहिषी से चुनाव जीते और विधायक बने। उसी दौरान पप्पू यादव से उनके हिंसक टकराव की कई घटनाएं भी देखी गईं। 1991 में उनकी शादी लवली आनंद से हुई. जो वह खुद भी
राजनीति में कदम रखकर विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचीं। आनंद मोहन द्वारा विधायक बनने के दो साल बाद ही अपनी एक नई पार्टी भी बनाई गई थी जिसका नाम था ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’। हालांकि उसके जरिए वह कुछ कर नहीं पाए। दो बार आनंद मोहन ने अपनी पार्टी बनाई लेकिन सफल नहीं हो पाए। पार्टी बनाने का ये प्रयोग पहली बार नहीं था इससे पहले भी उन्होंने आपातकाल हटने के बाद 1980 में एक पार्टी बनाई लेकिन तब भी वह लोकसभा चुनाव न जीत सके।
वर्ष 1994 में उनकी पत्नी लवली सिंह ने वैशाली लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीत हासिल की। आनंद मोहन 1996,1998 में दो बार शिवहर से सांसद रहे। समता पार्टी की टिकट पर 1996 का चुनाव उन्होंने जेल से ही लड़ा और जीता था।
किस मामले में उम्रकैद हुई
जिस मामले में उन्हें हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। वह बात 05 दिसंबर 1994 की है। मुजफ्फरपुर के गोपालगंज में आनंद मोहन के करीबी छोटन शुक्लाकी हत्या से गुस्साई भीड़ ने जिलाधिकारी कृष्णैया की बेरहमी से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। कृष्णैया 1985 बैच के एक ईमानदार आईएएस अधिकारी थे, जो तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। बताया जाता है कि वह बेहद मामूली दलित परिवार से ताल्लुक रखते थे। पढ़ाई के दौरान उन्होंने कुली का काम किया। वे अपनी प्रतिभा के दम पर आईएएस बने थे।
मौत की सजा को बदला उम्रकैद में
कृष्णैया की हत्या के पीछे यह पाया गया कि इसके लिए भीड़ को उकसाया गया था। इसका आरोप आनंद मोहन और उनकी पत्नी दोनों पर लगा था। तब इस मामले में कई लोगों को जेल हुई थी। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें इस मामले में साल 2007 में मौत की सजा सुनाई थी। इसके तुरंत बाद उन्हें पटना बऊर जेल से भागलपुर जेल भेज दिया गया। उन्होंने सजा के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में अपील की। पटना हाईकोर्ट ने इस सजा को उम्रकैद में बदल दिया। हालांकि आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की, लेकिन वहां केस खारिज हो गया। 2007 से वह जेल में अपनी सजा काट रहे हैं। इस दौरान वह कई बार पैरोल पर बाहर आए। हालांकि जेल जाने के बाद भी क्षेत्र में उनका प्रभाव बरकरार है। उनके बेटे चेतन आनंद शिवहर से राष्ट्रीय जनता दल के विधायक हैं। आनंद मोहन सिंह बिहार में राजपूतों के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं। रघुवंश प्रसाद सिंह और नरेंद्र सिंह की गैरमौजूदगी के बाद लगता है कि जदयू और राजद राजपूतों पर असर डालने के लिए उन्हें साथ रखना चाहते हैं।
रिहाई का विरोध
आनंद मोहन की रिहाई का जमकर विरोध किया जा रहा है। भारतीय जनता दल और आईएएस एसोसिएशन ने भी इसका विरोध किया है। जी कृष्णैया की विधवा और बेटी ने इसे चिंताजनक करार दिया है। आनंद मोहन की रिहाई ने नीतीश सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा गया है।