चुनाव के आखिरी दौर में यूपी की 13 लोकसभा सीटों पर भाजपा और गठबन्धन की प्रतिष्ठा दांव पर है। विगत लोकसभा चुनाव में इन समस्त सीटों पर मोदी लहर का असर नजर आ चुका है। समस्त 13 सीटें भाजपा एवं गठबन्धन के खाते में गयी थीं। इस बार की स्थिति वैसी नहीं है। इस बार न तो मोदी लहर का असर नजर आ रहा है और न ही कोई ऐसा मुद्दा जिसकी वजह से इन स्थानों की जनता को भाजपा में कोई विशेष रुचि हो। लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जो अभी से जीती मानी जा रही हैं लेकिन इन सीटों पर भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज करना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में पीएम नरेन्द्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर है। मोदी के सामने इस बार और अधिक मतों के अंतर से फतह हासिल करना एक चुनौती है तो दूसरी ओर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को दोबारा हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। योगी आदित्यनाथ की अजेय मानी जाने वाली सीट गोरखपुर उप चुनाव में उन्हें कड़वी हकीकत से रूबरु करवा चुकी है। उपचुनाव में सपा-बसपा गठबन्धन के मिलन ने ऐसा रंग दिखाया कि यूपी की सत्ता हाथ में होने और स्वयं मुख्यमंत्री होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ अपनी ही सीट को सपा के खाते में जाने से नहीं रोक पाए। इस बार आखिरी चरण के मतदान में इसी खोयी प्रतिष्ठा को वापस पाना उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं गोरखपुर की जनता से कई बार भेंट कर चुके हैं। गोरखपुर संसदीय सीट पर दोबारा कब्जा पाने की गरज से गोरखनाथ मन्दिर के संत-महंत तक ने पूरी जान लगा दी है। गठबन्धन दल के नेताओं और यहां तक कि स्थानीय निवासियों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि भाजपा ने गोरखपुर की सीट को दोबारा पाने के लिए स्थानीय प्रशासन पर दबाव बना रखा है। ऐसे में यदि मतदान के दौरान किसी प्रकार की गड़बड़ी नजर आती है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि जब उपचुनाव में गोरखपुर की सीट भाजपा की झोली से सपा की झोली में गयी, उस वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर उत्तर प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री तक ने इनके प्रभाव की खिल्ली उड़ायी थी। स्थिति यहां तक खराब हो चुकी थी कि एक वक्त ऐसा भी आया था जब योगी आदित्यनाथ अपने स्वभाव के अनुरूप रूष्ट होकर न सिर्फ मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने की मंशा जाहिर कर दी थी बल्कि भाजपा से ही किनारा करके की मंशा जाहिर कर दी थी। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री होते हुए भी योगी आदित्यनाथ अपनी संसदीय सीट को जाने से न बचा पाए हों लेकिन बात यदि गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की हो तो यहां आज भी योगी आदित्यनाथ का डंका बजता है।
भाजपा ने इस बार गोरखपुर से भोजपुरी फिल्म अभिनेता रवि किशन को मैदान में उतारा है जबकि सपा-बसपा गठबन्धन ने सपा के टिकट पर राम भुआल निषाद को टिकट दिया है। ज्ञात हो उपचुनाव में सपा के प्रवीण कुमार निषाद ने यहां से फतह हासिल की थी। चर्चा यह भी है कि जब उप चुनाव में प्रवीण कुमार निषाद विजयी हुए थे तो उन्हें इस बार प्रत्याशी क्यों नहीं बनाया गया? इस प्रश्न का उत्तर भी सुन लीजिए। सपा प्रवक्ता कहते हैं कि ये पार्टी की अन्दरूनी रणनीति है। उप चुनाव में प्रवीण कुमार को जो जीत मिली थी, वह उनके व्यक्तिगत छवि के कारण नहीं बल्कि गठबन्धन का प्रत्याशी होने के नाते मिली थी। उनकी इस जीत में जितना श्रेय सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को जाता है उतना ही श्रेय बसपा प्रमुख मायावती को भी जाता है। मायावती ने खुलकर दलित समुदाय से प्रवीण के पक्ष में मतदान करने की अपील की थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा। गठबन्धन के दोनों नेताओं ने भाजपा के प्रतिष्ठा वाली इस सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। जाहिर है सपा-बसपा गठबन्धन ने भी इस सीट को अपनी प्रतिष्ठा बना रखा है।
गोरखपुर संसदीय सीट से कांग्रेस ने एक डमी प्रत्याशी मधुसूदन तिवारी को मैदान में उतारा है। स्पष्ट है कि कांग्रेस ने दो दलों के बीच होने वाली जंग को मुश्किल में डालने से परहेज किया है। इन तीन प्रमुख दलों के साथ ही कई अन्य छोटे दलों के प्रत्याशी भी मैदान में हैं। जाहिर है ये प्रत्याशी वोट कटवा तो साबित होंगे लेकिन इनकी जीत की उम्मीदें दूर-दूर तक नजर नहीं आतीं।
अब इंतजार 19 मई का है, जिस दिन गोरखपुर की जनता भाजपा और गठबन्धन प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा पर अपनी मुहर लगायेगी। देखना रोचक होगा कि आखिरकार गोरखपुर की जनता किसकी प्रतिष्ठा को बरकरार रखेगी।
आखिरी चरण के मतदान में यूपी की वीवीआईपी सीट बनारस पर भी सबकी नजर रहेगी। हालांकि यहां कि स्थानीय निवासी से लेकर मीडिया समूह के लोग और अधिकारी वर्ग तक मोदी की भारी मतों से जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन बनारस की जनता के बीच एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो मोदी को लगभग अपना दुश्मन मान बैठा है। ऐसा इसलिए कि यहां पर काशी काॅरीडोर के नाम पर अब तक सैकड़ों घरों को उजाड़ा जा चुका है। हजारों की संख्या में वे लोग बेरोजगार हो गए जो छोटी दुकानों से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे हैं। नाराजगी उन लोगों में भी है जो यहां पर सैकड़ों वर्ष से निवास करते चले आ रहे थे और स्थानीय प्रशासन के एक आदेश पर उन्हें अपना पुश्तैनी मकान त्याग करना पड़ा। लोगों में नाराजगी इस बात की है कि सरकार ने छत के बदले छत देने की योजना तैयार किए बगैर ही सैकड़ों परिवारों को उजाड़ दिया।
बनारस में मोदी के खिलाफ एकजुट होने वाला वर्ग साधू-संतों का भी है। ऐसा इसलिए कि काशी काॅरीडोर के नाम पर सैकड़ों मन्दिरों को अपमानजनक तरीके से ऐसे तोड़ा गया मानो महमूद गजनवी ने बनारस के मन्दिरों पर आक्रमण कर दिया हो। मोदी और योगी के खिलाफ इस आग को जलाए रखने के लिए कुछ साधू-संत उन टूटी हुई शिव प्रतिमाओं को एक स्थान पर इकट्ठा करके रोजाना पूजा-अर्चना कर रहे हैं और भाजपा सरकारों की नीतियों को सोशल साइट के माध्यम से जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। जाहिर है कि धार्मिक नगरी में इस विरोध का असर जरूर दिखेगा। यह असर कितना गहरा होगा? यह तो 23 मई वाले दिन ही नजर आयेगा लेकिन चुनाव तैयारियों के बीच साधू संतों की नाराजगी से भाजपाई खेमें में चिंता की स्पष्ट नजर आ रही है। यह चिंता रिकाॅर्ड मतों से जीत दर्ज करवाने को लेकर है।
बनारस में बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर का नामांकन जिस तरीके से निरस्त किया गया, उससे भी यहां के लोगों में सरकार के प्रति बेहद नाराजगी देखी जा रही है। स्वयं तेज बहादुर आम जनता के बीच जा-जाकर सरकार की हिटलरशाही से अवगत करा रहे हैं। गौरतलब है कि तेज बहादुर गठबन्धन की तरफ से सपा प्रत्याशी शालिनी यादव के पक्ष में प्रचार भी कर रहे हैं। बताते चलें कि सपा ने शालिनी यादव के स्थान पर तेज बहादुर को गठबन्धन का प्रत्याशी बनाया था लेकिन उनका नामांकन रद्द कर दिया गया था।
फिलहाल अंतिम चरण के मतदान में यूपी की 13 सीटें दांव पर लगी हुई हैं। यदि विगत लोकसभा चुनाव को दरकिनार करते हुए आंकलन किया जाए तो यूपी के ये इलाके भाजपा के पक्ष में लहर कभी साबित नहीं हुए हैं लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में समस्त 13 सीटों पर भाजपा ने अपना कब्जा जमा लिया था। जनता के बीच मोदी की मृगतृष्णा का असर इस बार नजर नहीं आ रहा। जाहिर है बनारस को यदि छोड़ भी दें तो गोरखपुर सीट बचाना भी भाजपा के लिए मुश्किल हो जायेगा। बताते चलें कि जिन 13 स्थानों पर अंतिम जंग होनी है उनमें बनारस, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, घोसी, सलेमपुर, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज, महाराजगंज, बलिया और बांसगांव शामिल हैं।