उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को गधेरू नेता यूं ही नहीं कहा जाता है। उत्तराखंड में पहाड़ से पानी को नीचे बहाने के लिए जगह-जगह, छोटे-छोटे नाले बन जाते हैं जो गधेरू कहलाते है। उत्तराखंड में ऐसे गधेरू नेता कहे जाने वाले खाटी राजनीतिज्ञ भगत सिंह कोश्यारी ने अपनी राजनीति का अलग ही फिल्ड बनाया था। प्रदेश में उनकी पार्टी के किसी भी नेता की सरकार रही हो, लेकिन वहां फील्डिंग कोश्यारी की ही रही।
देवभूमि में वह अपने मुख्यमंत्रित्व का ज्यादा समय तो राजकाज नही चला पाएं। लेकिन उसके बाद जो भी उनकी पार्टी का नेता मुख्यमंत्री बना वह उनकी चौपडसार में शामिल हुए बिना सत्ता की सतरंज पर अपनी गोटियाँ फिट नही कर सका। वह उत्तराखंड की सत्ता में सतरंज रूपी घोड़े की तरह अपना स्थान बनाएं रहे। अगर कोई उनकी मर्जी के बिना आगे बढा तो उसे जब जी चाहा तब टंगड़ी मारकर गिरा दिया।
देवभूमि के बाद अब उनका सिक्का देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में जमकर चल रहा है। खासकर ऐसे समय में जब देश में कोरोना महामारी के बढते प्रकोप के चलते राजनीतिक गतिविधियां लगभग शून्य है वह छाए हुए हैं। महाराष्ट्र की मराठा राजनीति में एक ठेठ पहाड़ी ने अपना वर्चस्व इस कदर कायम किया हुआ है कि सत्ता की धुरी अभी भी उनके इर्द-गिर्द घूमती है।
भाजपा आलाकमान ने जब कोश्यारी को महाराष्ट्र का गवर्नर बनाया था तभी से राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं थी। नवंबर के पहले सप्ताह में जब महाराष्ट्र के चुनाव हुए तो वहां सत्तारूढ़ दल भाजपा के हाथ से सीट निकल कर उस शिवसेना के हाथ में आ गयी जो पांच साल तक उनके साथ ही सत्ता की मलाई खाती रही थी। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने। जो किसी भी सदन (विधान सभा या विधान परिषद) के सदस्य नहीं थे।
28 मई, 2019 को मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे के लिए तब सदन का सदस्य बनना बाएं हाथ का खेल कहा गया। जैसे-जैसे समय बीतता गया उद्धव ठाकरे के लिए सदन का सदस्य बनना चुनौतीपूर्ण होता चला गया। कोरोना काल ने उद्धव ठाकरे के लिए सदन खासकर विधान परिसद का सदस्य बनना मुश्किल में डाल दिया।
क्योंकि नियमानुसार एक मुख्यमंत्री सीट पर वही व्यक्ति रह सकता है जो विधानसभा या विधान परिषद में से किसी एक का सदस्य हो। नियम यह है कि सदन का सदस्य 6 माह के भीतर होना जरूरी है। ऐसे में ठाकरे की मुश्किलें बढने लगी। ज्यो-ज्यों उद्धव ठाकरे का 6 माह का समय पूर्ण होने के दिन नजदीक आने लगे उनकी बैचैनी बढने लगी।
ऐसे में ठाकरे के सामने सदन का सदस्य बनने के दो रास्ते थे। एक रास्ता वह था जिसमें वह गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के द्वारा विधान परिसद सदस्य के रूप में मनोनीत किए जाए। तो दूसरा रास्ता यह था कि वह विधानमंडल के चुनावों में चुनकर सदन का सदस्य बने।
इसमें पहले रास्ते से सदन पहुंचना बहुत टेढी खीर था। कारण यह कि विधानमंडल सदस्य का मनोनयय गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के द्वारा किया जाना था। जो पूरी तरह उनके विवेक पर निर्भर करता है। इसमें भी लोचा यह था कि जिसके कोटे में यह सीट पहले थी उस पार्टी (एनसीपी) ने उसपर मनोनयन के लिए गवर्नर के पास पहले से ही अपने दो व्यक्तियो के नाम भेज रखे थे।
क्योंकि यह सीट भी एनसीपी के उस नेता की खाली हुई थी जो विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी छोडकर भाजपा में चला गया था। हालांकि, इस मनोनयन पर मुख्यमंत्री का नाम शामिल करने के लिए उद्धव ठाकरे ने गवर्नर पर अपनी कैबिनेट के जरिए दवाब भी बनाया था।
एक नही बल्कि दो-दो बार मुख्यमंत्री की कैबिनेट ने गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के पास बकायदा प्रस्ताव भेजा था कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस सीट पर मनोनीत किया जाए। लेकिन कोश्यारी कुछ करने की बजाय मौन साध गए। उन्होंने मुख्यमंत्री को इस सीट पर मनोनीत करने की ना तो हाँ की और ना ही ना की। कोश्यारी के इस मामले पर स्थित हो जाने पर सत्तारूढ़ शिवसेना की धडकनें बढ़ने लगी थी।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के विधान परिषद में पहुंचने का एक रास्ता और था वह था इलेक्ट्रिक तरीका। यानी कि चुनाव होने के बाद वह जीतकर विधान परिषद सदस्य बन जाए। लेकिन इसके लिए कोरोना महामारी के चलते चुनाव कराना असंभव लग रहा था। विधान परिषद की कुल 9 सीटें हैं। जो अप्रैल को खाली हो चुकी है। इनके चुनाव कराने के लिए पहले भी प्रस्ताव भेजा गया था। लेकिन कोरोना महामारी के कारण इसे अस्वीकार कर दिया गया था।
उद्धव ठाकरे के विधान मंडल का सदस्य बनने की समय सीमा एक माह से भी कम रह गई है। ऐसे में मुख्यमंत्री की बैचैनी बढ़नी स्वाभाविक है। फलस्वरूप मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे दो दिन पूर्व यानी बुधवार को इस मामले में देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी से फोन पर बात की।
यही नहीं बल्कि इसी दिन महाराष्ट्र की कैबिनेट फिर से गवर्नर के दरबार में सजी। उधर मुख्यमंत्री ने मोदी से तो दूसरी तरफ कैबिनेट ने गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी से उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य बनाने की अपील की।
शिवसेना ने इस मामले में भी राजनीति कर डाली। एक तरफ तो प्रधानमंत्री और गवर्नर से अपील की तो दूसरी तरफ पार्टी के नेता संजय राऊत से बयानबाज़ी करा दी। शिवसेना के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने एक ट्वीट कर यह कहा कि राज्यपाल ने अभी तक कैबिनेट के फ़ैसले को स्वीकार नहीं किया है।
राउत ने अपने ट्वीट में यह भी कहा कि राजभवन (गवर्नर का आवास) सस्ती राजनीति का अड्डा नहीं बनना चाहिए। मुझे पता नहीं क्यों मौजूदा हालात रामलाल नाम के एक राज्यपाल की याद दिलाते हैं। समझदार को इशारा ही काफ़ी है।
यही नहीं बल्कि संजय राउत ने कहा कि विपक्षी पार्टी इस मसले पर राजनीति कर रही है। विपक्ष को अब भी उम्मीद है कि गवर्नर को उद्धव ठाकरे की सदस्यता पर नेगेटिव फ़ैसला लेना चाहिए। इसके बाद वे मेंढक की तरह से उछलकर सीएम की कुर्सी के लिए दावा करने लगेंगे।
पहले भी कई मंत्रियों को राज्यपाल ने विधान परिषद सदस्य के तौर पर मनोनीत किया है। राजनीति विज्ञान की हमें भी समझ है। ऐसे में विपक्ष के चीख-पुकार मचाने के बावजूद उद्धव ठाकरे 27 मई 2020 के बाद भी मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
इसके साथ ही राजनीतिक बयानबाज़ी का दौर शुरू हुआ तो भाजपा कहा रुकने वाली थी। भाजपा के एक पूर्व मंत्री और मुंबई के वरिष्ठ नेता आशीष शेलार ने संजय राउत के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि कुछ महीने पहले राज्यपाल ने ख़ाली हुई दो सीटों पर मनोनयन किए। लेकिन शिवसेना की सहयोगी पार्टी एनसीपी ने तब उद्धव ठाकरे का नाम क्यों नहीं भेजा? राज्यपाल पर आरोप लगाना राजनीतिक अपरिपक्वता की निशानी है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी अगर चाहते तो कोरोना काल की आड लेकर 27 मई तक का समय खींच सकते थे। इस दौरान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का सदन का सदस्य बनने का सपना भी पूरा नहीं होता और उनकी सीट ख़तरे में पड जाती। एक मनोनयन उनका था जो कोश्यारी के विवेक पर निर्भर करता है तो दूसरा विधान परिषद के चुनाव थे जो कोरोना काल के चलते स्थगित हो जाते।
लेकिन इसमें कोश्यारी ने अपना नैतिक धर्म मानते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को जीवनदान दे दिया। कोश्यारी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर एक बार फिर अपना सिक्का चला दिया। चुनाव आयोग ने गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर अब 27 मई से पहले चुनाव कराने की घोषणा कर दी है। हो सकता है महाराष्ट्र में 21 मई को विधान परिषद के चुनाव हो जाएं। इस तरह आज महाराष्ट्र दिवस के अवसर पर गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के द्वारा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को यह तोहफा भी कहा जा सकता है।