भारत में बनाई जा रही कोरोना वैक्सीन, कोवैक्सिन के पीछे वैज्ञानिकों की एक पूरी टीम लगी हुई है। इस वैक्सीन के मुख्य कर्ताधर्ता भारत बायोटेक के संस्थापक डॉ कृष्णा एला हैं जो जीव विज्ञान में अनुसंधान वैज्ञानिक हैं। वे इस वैक्सीन से पहले भी ‘जीका’ और ;चिकनगुनिया’ के टीके भी बना चुके हैं।
भारत बायोटेक ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर इस दवा को तैयार किया है। इस टीके को बनाने में मृत वायरस का उपयोग किया गया है। दावा किया जा रहा है कि यह बॉडी में जाते ही काम करना शुरू कर देगा और जब वायरस हमला करेगा तब बॉडी में एंटीबॉडीज जो पहले से होंगी वो संक्रमण से बचाएंगी।
इसके लिए सबसे पहले बायोटेक कंपनी ने कोरोना वायरस से जुड़े SARS-CoV-2 स्ट्रेन को पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में अलग करके भेजा। यहां से ये स्ट्रेन हैदराबाद की लैब भेजा गया। हैदराबाद की जिनोम वैली के बायोसेफ्टी लेवल- 3 लैब में इस कोरोना वायरस के स्ट्रेन से इनएक्टिवेटिड वैक्सीन बनाने का काम शुरू किया गया।
इस दौरान खतरा काफी ज्यादा था इसलिए हैदराबाद लैब जो काफी सुरक्षित लैब है, को ही इस वैक्सीन को बनाने के लिए चुना गया। साथ ही इस दौरान हर प्रोटोकॉल का भी पालन किया गया।
डॉ कृष्णा ने विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय से पीएचडी की है और 1996 में कंपनी शुरू करने से पहले, दक्षिण कैरोलिना के मेडिकल विश्वविद्यालय, चार्ल्सटन में रिसर्चर के रूप में काम किया है। उन्होंने बायोटेक शुरू की जिसमें अब एक हजार से अधिक कर्मचारी हैं।
बता दें, भारत बायोटेक ने पहले H1N1, रोटावायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस, रेबीज, चिकनगुनिया, जीका और टाइफाइड के लिए दुनिया के पहले टेटनस-टॉक्साइड संयुग्मित वैक्सीन के लिए टीके विकसित किए हैं। भारतीय कंपनी बायोटेक को वैक्सीन बनाने का काफी अनुभव है।
कोवैक्सीन को लेकर डॉ कृष्णा ने कहा, “आपातकालीन उपयोग के लिए कोवैक्सीन की मंजूरी भारत में मिलना इस तरह के उत्पादन के लिए बड़ी बात है। साथ ही यह राष्ट्र के लिए गर्व का क्षण है और भारत की वैज्ञानिक क्षमता में यह एक मील का पत्थर साबित होगा जो भारत में नए प्रयोगों के लिए किकस्टार्ट है।
भारत सरकार द्वारा कोरोना वैक्सीन COVAXIN को आपातकालीन उपयोग की अनुमति के बाद एक कंपनी है जो दुनियाभर की नजरों में आ गई है। कोरोना वायरस के खिलाफ ये वैक्सीन इम्यूनिटी पैदा करती है। ये कंपनी है भारत बायोटेक, इसके चेयरमैन और एमडी कृष्णा एला को भी पूरी दुनिया में सराहा जा रहा है।
आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित तिरुथानी के मध्यमवर्गीय किसान परिवार में जन्मे डॉ कृष्णा एला पारंपरिक खेती को अपने पेशे के रूप में अपनाना चाहते थे। लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वह दूसरे पेशे को चुनें। इसलिए पढ़ाई के बाद कृष्णा एला ने एक जर्मन केमिकल और फार्मास्युटिकल कंपनी के साथ काम करना शुरू कर दिया।
कंपनी में काम करते हुए डॉ एला ने अमेरिका में पढ़ने के लिए फेलोशिप अर्जित की। इससे पहले डॉ कृष्णा एला ने कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बैंगलोर से मेडिकल में स्नातक किया। इसके बाद हवाई विश्वविद्यालय अमेरिका से अपने एमएस के लिए गए और दक्षिण कैरोलिना विश्वविद्यालय-चार्ल्सटन में संकाय पद लेने से पहले उन्होंने विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय से पीएचडी की।
परदेस में काम करते हुए उन्होंने कभी अपने काम का आनंद नहीं लिया और इसलिए डॉ एला 1996 में अपनी पत्नी सुचित्रा के साथ भारत लौट आए और दंपति ने कुल 12.5 करोड़ की लागत से भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड की स्थापना की।
आज ये कंपनी 500 करोड़ से अधिक मूल्य की है और इसने यूनिसेफ, जीएवीआई और अन्य वितरण चैनलों के माध्यम से 150 से अधिक विकासशील देशों में 4 बिलियन से अधिक वैक्सीन की खुराक सबसे गरीब और सबसे अधिक लोगों तक पहुंचाई है।
भारत बायोटेक इंडिया एक वैश्विक कंपनी है जिसके 140 से अधिक पेटेंट के साथ, कंपनी के पास 16 से अधिक टीके, 4 जैव-चिकित्सा, 116 देशों में पंजीकृत हैं और WHO ने अपने पोर्टफोलियो में कंपनी के प्रीक्वालिफाइड टीके लगाए हैं। इससे पहले भारत बायोटेक ने रोटा वायरस प्रेरित डायरिया संक्रमण और मौत के खिलाफ दुनिया का सबसे किफायती टीका रोटावैक को सफलतापूर्वक डेवलेप किया है।भारत बायोटेक ही पहली कंपनी है जिसने 2018 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित ह्यूमन चैलेंज स्टडी के माध्यम से टाइफाइड कंजुगेट वैक्सीन की एफिसिएंशी साबित की है।