भारत में पिछले हफ्ते से किसान आंदोलन जारी है। इस किसान आंदोलन में स्पेशल फ़ोर्स, पुलिस और किसानों के बीच दिल्ली और यूपी के तमाम बॉर्डर जंग का मैदान बने हुए हैं। इन बॉर्डर में सबसे बुरे हालात शम्भू बॉर्डर पर बने हुए हैं। यहां किसानों को दिल्ली में आने से रोकने के लिए पुलिस द्वारा ड्रोन, आंसू गैस और अन्य चीज़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन हालातों के बीच भी किसान दिल्ली की तरह कूच करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। दरअसल, यह आंदोलन सरकार द्वारा बनाये गए तीन कृषि कानूनों को लेकर किया जा रहा है। किसानों का कहना है जब तक सरकार हमारी मांगों को पूरा नहीं करेगी हम पीछे नहीं हटेंगे। इन्ही टक्करों के बीच घमासान जारी है।
इस घमासान को शुरू हुए अभी एक हफ्ता ही हुआ है, लेकिन यह आंदोलन पिछले साल दिसंबर से चल रहा है। अपने-अपने स्थानों पर किये गए इन आंदोलन पर जब सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो इन किसानों ने बीते साल आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था जिसे करीब दो दर्जन विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न किसान संगठनों का समर्थन मिला था। इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड में मीटिंग की गई, लेकिन इसका हल नहीं निकल पाया है। इन मीटिंग के अलावा भी किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह ने भी बात की, लेकिन इस आंदोलन का कोई भी मसला हल नहीं हो पाया है। दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसान तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन के लिए तैयार है। हालांकि सरकार के इस प्रस्ताव पर अभी किसानों का कोई भी निर्णय नहीं आया है।
प्रदर्शन क्यों ?
दरअसल, 20 व 22 सितंबर 2020 को संसद में तीन कृषि विधेयक को पारित किया गया। इसके तुरंत बाद 27 सितंबर को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इन विधेयकों को मंजूरी भी दे दी गई। जिसके बाद यह कानून बन गए, इन्ही बने कानूनों के खिलाफ पिछले साल 2022 में प्रदर्शन किया गया। यह प्रदर्शन भी एक साल चला फिर सरकार के आश्वासन देने के बाद किसान अपने-अपने घर लौट गए, लेकिन एक साल गुजरे और अभी तक भी इन कानूनों को लेकर सरकार के द्वारा आश्वासन के अलावा कुछ नहीं किया गया है। इसलिए यह आंदोलन दोबारा गर्माता जा रहा है। इस बार किसानों का कहना है कि जब तक सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेगी तब तक किसान वापस नहीं लौटेंगे और कूच की तैयारी करते रहेंगे।
इन कानूनों में मौजूदा एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) की मंडियों के साथ साथ निजी कंपनियों को भी किसानों के साथ अनुबंधीय खेती, खाद्यान्नों की खरीद और भंडारण के अलावा बिक्री करने का अधिकार दिया गया है। जिसके चलते किसानों को आशंका है कि सरकार किसानों से गेहूं और धान जैसी फसलों की ख़रीद को कम करते हुए बंद कर सकती है, जिसके बाद वह पूरी तरह बाजार पर निर्भर हो जायेंगे। जिसका निजी कंपनियां फायदा उठा सकती हैं। और क्योंकि सरकार के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून नहीं बनाया गया इसलिए इससे किसानों को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
कब से हो रहा प्रदर्शन
वर्ष 2019-20 में केंद्र सरकार के द्वारा पंजाब और हरियाणा में 80 हज़ार करोड़ रुपये के गेहूं और धान की खरीद की गई थी, इस खरीद-फरोख्त में अधिकांश छोटे और सीमांत किसान थे, लेक्किन निजी कोम्पनियाँ आएँगी तो सरकार किसानों से अन्न नहीं लेगी और किसानों को मजबूरन निजी कंपनियों और दलालों को अनाज बेचना पड़ेगा जिसका वह भरपूर फायदा उठा सकते हैं। इस आशंका के चलते ही पंजाब के किसानों ने इन कानूनों के विरोध में जून-जुलाई से ही प्रदर्शन शुरू कर दिया था, जिसमे हरियाणा के किसान विरोध प्रदर्शन में सितंबर में शामिल हुए थे। इस आंदोलन में पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश के किसान शामिल हैं।
किन कानूनों का विरोध
विरोध किये जा रहे तीन कानूनों में पहला कानून है- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020, दूसरा कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून-2020, तीसरा आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून-2020 है।
इन कानूनों के तहत किसान अपने कृषि उत्पादों की ख़रीद बिक्री एपीएमसी मंडी से अलग खुले बाजार में भी कर सकते हैं। किसान इसी मुद्दे पर सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वे एपएमसी की मंडियों से बाहर बाज़ार दर पर अपना फसल बेचते हैं तो हो सकता है कि उन्हें थोड़े समय तक फायदा हो लेकिन बाद में एमएसपी की तरह निश्चित दर पर भुगतान की कोई गारंटी नहीं होगी। इन कानूनों के रहते हुए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाएगा। वह थोड़े समय के मुनाफे के लिए अपना लम्बे समय तक नुक्सान नहीं चाहते हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि ‘कृषि क़ानून एमएसपी सिस्टम और एपीएमसी मंडियों को प्रभावित नहीं करते हैं।’ लेकिन किसान इस बात से सहमत नहीं हैं। किसान इन मांगों के साथ-साथ सरकार से एपीएमसी मंडियों के नहीं रहने पर आढ़तियों और कमीशन एजेंटों के मंडियों में मौजूद होने के बारे में भी सरकार से सवाल कर रहे हैं। सरकार दावा कर रही है कि इस प्रावधान से किसानों को पूरा मुनाफ़ा होगा, बिचौलियों को कोई हिस्सा नहीं देना होगा। लेकिन किसान इसको लेकर काफी चिंतित है।
किसानों की पहली चिंता तो यही है कि क्या ग्रामीण किसान निजी कंपनियों से अपने फसल की उचित कीमत के लिए मोलभाव करने की स्थिति में होगा? दूसरी, उन्हें आशंका है कि निजी कंपनियां गुणवत्ता के आधार पर उनके फसल की कीमत कम कर सकते हैं, या खरीद बंद कर सकते हैं। नए कानूनों की मदद से सरकार ने दलहन, तिलहन, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा चुकी है। सरकार का कहना है कि इससे इन उत्पादों के भंडारण पर कोई रोक नहीं होगी, इससे निजी निवेश आएगा और कीमतें स्थिर ही रहेगी।