भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिंदुत्व और माफिया के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के नाम पर वोट बटोरे वह पार्टी के लिए निर्णायक बने। भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा लाभार्थी योजना से हुआ। प्रदेश की जनता ने भावनाओं में बहकर नमक का कर्ज चुका दिया। इस चुनाव में सबसे ज्यादा अगर किसी ने चौंकाया तो वह यह कि यहां प्रदेश में किसान और आवारा पशु के साथ ही बेरोजगारी और महंगाई मुख्य मुद्दे थे लेकिन चुनाव के अंतिम समय में यह सभी मुद्दे गायब हो गए
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 10 मार्च को सुबह वोटों की गिनती होने से पहले एक ट्वीट किया। जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘इम्तिहान बाकी है हौसलों का, वक्त आ गया है फैसलों का’। साथ ही उन्होंने लिखा कि लोकतंत्र के सिपाही जीत का प्रमाण पत्र लेकर ही लौटेंगे। लेकिन शाम होते होते जीत के प्रमाण पत्र भाजपा की ओर जाते हुए दिखाई दिए। उत्तर प्रदेश में एक बार फिर डबल इंजन की सरकार ने मजबूती से सत्ता में वापसी कर ली है। जनता जनार्दन ने सपा की साइकिल के मुकाबले योगी के बुल्डोजर को ज्यादा अहमियत दी। समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के सपने आखिर धराशाई हुए।
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हिंदुत्व और माफिया के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के नाम पर वोट बटोरे वह पार्टी के लिए निर्णायक बने। भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा लाभार्थी योजना से हुआ। प्रदेश की जनता ने भावनाओं में बहकर नमक का कर्ज चुका दिया। इस चुनाव में सबसे ज्यादा अगर किसी ने चौंकाया तो वह यह कि यहां प्रदेश में किसान और आवारा पशु के साथ ही बेरोजगारी और महंगाई मुख्य मुद्दे थे। लेकिन चुनाव के अंतिम समय में यह सभी मुद्दे गोल हो गए।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन का जाट गणित भी गड़बड़ा गया। यह लगभग 60 फीसदी से अधिक वोट भाजपा ने लेकर सबको पीछे छोड़ दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश की 2 चरणों में 113 विधानसभा सीटों में से 91 पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। इस बार भी उत्तर प्रदेश के 22 जाट बाहुल्य सीटों में भाजपा ने जीत दर्ज कर सभी राजनीतिक विशेषज्ञों को चौंका दिया है। किसान बिल के मुद्दे पर पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों में भाजपा के प्रति सबसे ज्यादा आक्रोश था। लेकिन भाजपा ने यह बिल वापस करके उनका आक्रोश कम करने का काम किया। उत्तर प्रदेश में इस बार फिर से मोदी का जादू चला। इससे आंका जा सकता है कि मोदी ने लगभग 19 जनसभाएं कर करीब 192 सीटों को कवर किया था। जिनमें ज्यादातर सीटों में भाजपा जीती। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यूपी में आना और चुनाव के दूसरे, छठे तथा सातवें दौर में प्रचार करना भी समाजवादी पार्टी के लिए उपयोगी साबित नहीं हुआ।
कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी इस चुनाव में बहुत पीछे रह गई। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा सपा और भाजपा के साथ ही त्रिकोणीय मुकाबले में शामिल थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि बसपा का वोट बैंक रहा दलित भी इस बार भाजपा की ओर खिसक गया। भाजपा को बसपा का अघोषित साथ मिलना उसके लिए फायदेमंद साबित हुआ। बसपा ने भाजपा की जीत आसान करने के उद्देश्य से ही 156 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे। इनमें केवल 91 मुस्लिम बाहुल्य 15 यादव बाहुल्य सीटें थी। यह सीटें ऐसी थी जिसमें सपा की जीत की बहुत अधिक संभावनाएं थी। इन 156 सीटों में करीब 100 सीटों पर भाजपा आगे निकल गई।
कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में पिछले डेढ़ साल से पूरी ताकत झोंक दी थी। वह कोरोना काल से ही राज्य की राजनीति में सक्रिय हो गई थी। लेकिन चुनावों में कांग्रेस का वोट बैंक सिमट गया। कांग्रेस ने 30 साल बाद प्रियंका की अगुवाई में उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ प्रियंका गांधी ने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया। बीते डेढ़ दशक से कांग्रेस की राजनीति का बड़ा चेहरा रही प्रियंका गांधी 2019 में पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव बनाई गई। तब सभी को लगने लगा था कि कांग्रेस के डूबते हुए जहाज को प्रियंका किनारे तक ले आएगी। कांग्रेस के लिए प्रियंका वैसे भी तुरुप का पत्ता थी। लेकिन यह तुरुप का पत्ता पहले ही दांव में उत्तर प्रदेश में बेअसर साबित हुआ।
अगर 2017 के विधानसभा चुनावों से आकलन करें तो पिछले चुनाव के मुकाबले समाजवादी पार्टी इस बार बढ़त बना ली। लेकिन वह सत्ता में नहीं आ पाए। शुरू में जिस तरह से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की रैलियों में भीड़ उमड़ पड़ती थी, उससे लगता था कि इस बार यूपी में सत्ता परिवर्तन होगा। लेकिन सपा भीड़ को वोट में बदलने में सफल नहीं हो पाई। समाजवादी पार्टी अपने आप को मुस्लिम सरपरस्त पार्टी की छवि से बाहर नहीं निकाल पाई। जिससे हिंदू वोट उनसे कम जुड़ पाया। इसी के साथ ही बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी की वायरल हुई एक वीडियो से भी हिंदू वोट भाजपा की ओर जाता हुआ दिखाई दिया। इस वीडियो में अब्बास अंसारी जिस तरह से अफसरों को धमका रहे थे। भाजपा को इससे यह कहने का मौका मिल गया कि जब अभी से सपा नेता ऐसी गुंडई दिखा रहे हैं तो तब उनकी सरकार आ जाएगी तब क्या होगा।
समाजवादी पार्टी का गणित गड़बड़ाने का कारण भाजपा द्वारा हिंदुत्व को फिर से उठाना भी रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर मुद्दे को हिंदुत्व से जोड़कर इसकी शुरुआत की। गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में हुए पहले चरण के चुनाव में ही इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा दिया था। उन्होंने कैराना में हुए पलायन और मुजफ्फरनगर के दंगों को प्रमुखता से उठाया। इसी तरह आखिरी चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी में 3 दिन रुक कर हिंदू वोटों को एकजुट किया। कहा गया कि काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनरुद्धार कर भाजपा हिंदुत्व का चेहरा और मजबूत करने वाली साबित हुई। विश्वनाथ मंदिर का असर पूरे पूर्वांचल में दिखाई दिया।
कांग्रेस का गढ़ रही रायबरेली सीट से अदिति सिंह चुनाव जीत गई हैं। अदिति सिंह पहले कांग्रेस की ही विधायक थीं। लेकिन चुनाव से कुछ दिन पहले ही वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गई थीं। अमेठी से भाजपा के संजय सिंह चुनाव हार गए। वहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की जीत हुई है। सबसे चौंकाने वाला परिणाम कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से आया। यहां स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए। स्वामी प्रसाद मौर्य अपने दल बल के साथ चुनाव से कुछ दिन पहले ही भाजपा छोड़
समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। समाजवादी पार्टी के टिकट पर चरथावल से चुनाव लड़े पंकज मलिक ने तीसरी बार जीत हासिल की। मलिक कुछ दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। पंकज मलिक पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक के बेटे हैं। वह कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे।
देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह नोएडा से दूसरी बार चुनाव जीत गए। यही नहीं बल्कि पंकज सिंह ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की। पंकज सिंह ने सबसे ज्यादा मत हासिल करने वाले अजित पवार का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया। अजित पवार 1 लाख 65000 वोट लेकर अब तक सबसे ज्यादा वोट लेकर जीतने वालों में शामिल थे। लेकिन पंकज सिंह ने 1लाख 69000 वोटों से जीत दर्ज करा कर यह रिकॉर्ड अपने नाम करा लिया। लोनी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के नंदकिशोर गुर्जर की जीत हुई। नंदकिशोर गुर्जर पिछले साल गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन के दौरान चर्चा में आए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चर्चित विधायक और मंत्री रहे संगीत सोम की हार जरूर भाजपा के लिए बड़ा सदमा है। यहां से सरधना सीट पर समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान ने जीत दर्ज कराई।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले प्रख्यात शायर मुनव्वर राणा चर्चा में थे। चर्चा में वे इसलिए थे कि उन्होंने कहा था कि अगर दोबारा योगी मुख्यमंत्री बने तो वह यूपी छोड़ देंगे। इस चुनाव में उनकी बेटी उरुसा उन्नाव जिले की पूरवा सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार थी। उन्हें नोटा से भी कम 607 वोट मिले, जबकि इस विधानसभा में नोटा को 812 वोट मिले। मुनव्वर राणा की पुत्री और उरुसा पुरवा सीट से पांचवें नंबर पर रही। यहां से भाजपा के अनिल कुमार सिंह चुनाव जीते।
पार्टियों का घोषणा पत्र
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 16 पेज का संकल्प पत्र जारी किया जिसमें पेज नंबर 5 से 12 वर्ष तक घोषणा शामिल है। इन सातों पन्नों पर 10 मुद्दों पर करीब 130 घोषणाएं की गई जिनमें लड़कियों को मुफ्त स्कूटी, महिलाओं को दो एलपीजी सिलेंडर, मुफ्त बिजली और लव जिहाद पर लगाम लगाने जैसे वादे किए गए। वर्ष 2017 की बात करें तो भाजपा के पिछले विधानसभा चुनाव में घोषणा पत्र में 10 मुद्दों शामिल किए गए थे जिनमें करीब 100 वादे किए गए थे। इन वादों पर भाजपा का दावा था कि सभी घोषणाएं पूरी हो गई।
समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कई लोक-लुभावने वायदे किए थे। इन घोषणाओं में समाजवादी पार्टी ने सवा करोड़ लैपटॉप देने का वादा किया। सपा ने कहा था कि जब उनकी सरकार थी तब छह लाख लैपटॉप बांटे गए थे। इसके अलावा 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा तथा स्कूलों को टेबल- कुर्सी से लैस करने की बात कही। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कोरोना प्रभावित परिवारों को 25000 रुपए की मदद देने का वादा किया था, जबकि योगी सरकार 50000 रुपए की मदद पहले से ही कर रही है। इसके अलावा कांग्रेस ने वृद्धा और विधवा पेंशन 1000 करने की बात कही। जबकि योगी सरकार ने पेंशन को दिसंबर 2021 से ही 1000 कर दिया है। इसके अलावा कांग्रेस ने 2 लाख शिक्षकों की भर्ती का वादा किया। जबकि अभी जो पद खाली है वह महज 73000 है।
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