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तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटे केसीआर 

उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों के बीच लोकसभा चुनाव 2024 के लिए  राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने को लेकर ममता बनर्जी के बाद  अब तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव दूसरे राज्यों का दौरा कर अन्य पार्टियों के साथ बैठकें कर रहे हैं।

के. चंद्रशेखर राव ने हाल ही में  महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ मुलाकात की है। इस मुलाकात के बाद एक प्रेसकांफ्रेंस में उन्होंने कहा कि भाजपा के खिलाफ एक मोर्चा बनाने को लेकर सहमति बनी है ।  बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी आने वाले दिनों में केसीआर से मुलाकात करने वाली हैं। इसके अलावा तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन से भी उनकी पिछले दिनों बात हुई थी। एमके स्टालिन ने ट्विटर पर इसकी पुष्टि करते हुए कहा था कि ममता बनर्जी से मेरी बात हुई है और उन्होंने गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाने की बात कही है। दरअसल , बीस फरवरी को तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात की।  इसके बाद वो एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिले। दोनों ही बैठकों के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की गईं, उसमें ये साफ़ संदेश दिया गया कि ”नए मोर्चे” की तैयारी एक बार फिर शुरू हो गई है। केसीआर कहते नज़र आए कि जिस तरह से अभी देश चल रहा है, वो सही दिशा में नहीं है और ”देश को परिवर्तन की ज़रूरत है। ”

वहीं उद्धव ठाकरे भी इसी बदलाव की ज़रूरत बताते हुए कहा है कि मौजूदा राजनीतिक हालात में बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है।  शरद पवार से मुलाक़ात के बाद केसीआर ने कहा कि ज़ल्द ही देश के कुछ और नेताओं से बातचीत के बाद ”एजेंडा” पेश किया जाएगा। ”नई आशा के साथ, नया एजेंडा लेकर पूरे देश को साथ लेकर चलने का समय आ गया है।  शरद पवार ने मुझे आशीर्वाद दिया है।  देश में नए सिरे से काम करने की ज़रूरत है। हमारी सहमति हो गई है, जल्द से जल्द हम अन्य पक्षों से बात करेंगे।

शरद पवार का कहना है कि विकास की बात करने के लिए ये बैठक की गई है। देश में एक अलग माहौल बनाया जा सकता है, ऐसे ही माहौल बनाने की कोशिश होगी। केसीआर ने कहा है कि वो देश के अन्य नेताओं से भी मिलेंगे और ”महाराष्ट्र से जो मोर्चा निकलता है वो कामयाब होता है।

 

विपक्ष को एकजुट करने में क्यों लगे हैं केसीआर

 

एक वक्त ऐसा था जब केसीआर और ठाकरे दोनों ही एनडीए के साथ मंच पर नज़र आते थे. शिवसेना ने पिछले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपने लिए अलग रास्ता चुन लिया तो वहीं केसीआर भी आजकल केंद्र सरकार पर बरसते नज़र आते हैं।

सिर्फ़ फ़रवरी महीने की ही बात करें तो ऐसे कई मौके आए जब केसीआर और उनकी टीआरएस पार्टी और बीजेपी के बीच की तल्ख़ियां साफ़ नज़र आईं हैं। प्रधानमंत्री के तेलंगाना दौर पर उनके स्वागत के लिए मुख्यमंत्री का न पहुंचना, संसद में प्रधानमंत्री मोदी के बयान को ‘तेलंगाना बनने के विरोध से जोड़ना’ और फ़िर राहुल गांधी पर दिए गए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के बयान की निंदा कर सरमा के इस्तीफे की मांग करना, ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं। केसीआर जिस तरह का रुख़ अपनाए हुए हैं, अलग-अलग राज्यों के गैर-बीजेपी नेताओं का भी उन्हें समर्थन हासिल हो रहा  है।

नई ”शुरुआत” में कांग्रेस कहां है?

 

अब इस नई ‘शुरुआत’ में कांग्रेस कहां है? इस सवाल को लेकर  दोनों ही नेता बचते नज़र आए। उद्धव ठाकरे वैसे ही कांग्रेस के साथ गठबंधन वाली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।  शिवसेना कुछ भी ऐसा नहीं करेगी जिससे कांग्रेस नाराज़ हो। वहीं केसीआर भी हाल फिलहाल में कांग्रेस के प्रति नरम नज़र आए हैं, राज्य में कांग्रेस उनकी विपक्षी पार्टी है ,लेकिन वो बीजेपी पर ही हमलावर दिख रहे हैं।

इससे पहले जब ममता बनर्जी ने ऐसे ही मोर्चे की कोशिश की थी तो वो कांग्रेस की आलोचना कर रही थी।  इस लिहाज़ से केसीआर की कोशिश में कांग्रेस के लिए पॉजिटिव मैसेज  भी नज़र आ रहा है।  इस मोर्चे की पहुंच बढ़ाने के लिए कांग्रेस, टीएमसी, आप जैसी पार्टियों की ज़रूरत भी होगी।

 

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इस मुलाक़ात की टाइमिंग को भी देखना ज़रूरी है।  पांच  राज्यों में चुनाव का माहौल है तो दूसरी तरफ़ केसीआर नए मोर्च की शुरुआत के लिए जुटे है।  इस लिहाज से अगर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को भारी जीत मिलती है तो एक बार फिर केसीआर की कवायद की रफ़्तार धीमी होगी। वहीं अगर बीजेपी की सीटों में गिरावट होती है तो इस मोर्चे का उत्साह बढ़ेगा। साथ ही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव को भी देखना होगा। इस साल दोनों ही पदों पर चुनाव होंगे। विपक्षी पार्टियां अगर एक साथ आती हैं तो बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्ष का मजबूत उम्मीदवार उतारा जा सकेगा और उसके जीतने की भी संभावना बढ़ सकती है।

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