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थम नहीं रहा ‘कावेरी नदी जल विवाद’

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‘कावेरी नदी जल विवाद’ को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच  शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन लगातार बढ़ता जा रहा है। जो कभी भी हिंसात्मक रूप ले सकता है। कावेरी जल बंटवारा विवाद को लेकर प्रदर्शनकारियों ने बंगलूरू, मैसूरू, मांड्या और चामराजनगर के कई सड़कों को ब्लॉक भी कर दिया।  जिसे देखते हुए कन्नड़ समर्थक संगठनों ने कर्नाटक बंद का आह्वान किया।

 

इस दौरान कई विमानों को रद्द कर दिया गया है बीएमटीसी और केएसआरटीसी बस टर्मिनल पर सन्नाटा पसरा है।  समाचार रिपोर्ट के अनुसार मामले में ट्रैफिक कंट्रोलर चंद्रशेखर ने कहा कि बसों के शेड्यूल और रूट में कोई बदलाव नहीं हुआ है, फिर भी लोग नहीं आ रहे हैं। बसें चालू हैं, लेकिन लोग नजर नहीं आ रहे हैं। कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम का कहना है कि राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में केवल 59.88 बसें ही संचालन में है। हालांकि, कर्नाटक बंद की वजह से उड़ाने रद्द और बस सेवाओं पर रोक लगने के कारण कई यात्रियों को परेशानी का सामना भी करना पड़ा है।

 

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इस बीच बेंगलुरु में प्रशासन ने शहर के सभी शैक्षणिक संस्थानों में छुट्टी की घोषणा कर दी है। जिला उपायुक्त केए दयानंद ने कहा है कि चूंकि विभिन्न संगठनों की ओर से कर्नाटक बंद की घोषणा की गई है, इसलिए छात्रों के हित में बेंगलुरु शहर के सभी स्कूलों और कॉलेजों में छुट्टी घोषित की गई है।

 

कावेरी जल विवाद का इतिहास

 

कावेरी नदी जल विभाजन का मामला कोई नया नहीं है। यह विवाद  कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच काफी लम्बे समय से चला आ रहा है। जिसकी शुरुआत वर्ष 1892 और वर्ष 1924 में मैसूर साम्राज्य और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच किए गए दो समझौतों से सम्बंधित है। जिसके तहत दोनों राज्यों में कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर सहमति बनी थी। लेकिन इसके बावजूद राज्यों के बीच होने वाले विवादों को देखते हुए दूर करने के लिए साल 1990 में भारत सरकार ने  कावेरी जल विवाद अधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) की स्थापना की।

सीडब्लूडीटी ने कर्नाटक को पानी छोड़ने का आदेश देते हुए कहा था कि 25 जून 199 कि कावेरी नदी का जल एक वर्ष में (एक जून से 31 मई) मासिक रूप से या साप्ताहिक आकलन के रूप में 205 मिलियन क्यूबिक फीट पानी  तमिलनाडु के मेटूर जलाशय में छोड़ा जायेगा। साथ ही जल शक्ति मंत्रालय के जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के अनुसार, महीने के हर सप्ताह चार बराबर किस्तों में चार बार पानी छोड़ा जाना होता है।  इसके बाद भी अगर किसी सप्ताह में पानी की काम छोड़ा जाता है तो उस कमी को पूरा करने के लिए अगले सप्ताह अधिक मात्रा में पानी छोड़ा जाएगा।

 

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लेकिन इसके बाद भी कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच जल विवाद शांत नहीं हुआ। जो साल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कर्नाटक राज्य को मई से जून के बीच सामान्य जल वर्ष में तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) पानी देना होगा। साथ ही जून से सितंबर के बीच कुल 123.14 टीएमसी पानी देना होगा।

न्यायालय के इस निर्णय के बाद इस साल अगस्त महीने में तमिलनाडु राज्य ने कर्नाटक से 15 दिनों के लिए 15 हजार क्यूसेक  (28.317 लीटर प्रति सेकंड पानी ) पानी की मांग की थी।  लेकिन सीडब्ल्यूडीटी द्वारा पानी की मात्रा कम कर के 10 हजार क्यूसेक कर दिया गया। इसके बाद से ही फिर एक बार दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर विरोध और तेज हो गया है।

 

अभी क्यों भड़का विरोध

 

यह विवाद एकदम से इस लिए भड़क उठा क्योंकि तमिलनाडु ने कर्नाटक से 15 हजार क्यूसेक और पानी छोड़ने की मांग की। लेकिन कर्नाटक के असहमति जाहिर करने के बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है।

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वहीं कर्नाटक का कहना है कि इस बार दक्षिण पश्चिम मानसून के कमजोर रहने के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों पानी की कमी आई है। इसलिए कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया। जिसकी वजह से एक और विवाद खड़ा हो गया जिसे देखते हुए 18 सितंबर 2023 को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया कि वह तमिलनाडु को 5 हजार क्युसेक पानी प्रदान करे।

लेकिन पानी कमी कारण कर्नाटक ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर  कर दी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का आदेश दिया। आदेश के बाद कर्नाटक के गुस्साए किसानों ने तमिलनाडु को पानी दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिया। जो  लगातार बढ़ता  जा  रहा है।

 

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