मौजूदा समय में एक ओर जहाँ पूरा देश आजादी के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है वहीं दूसरी ओर जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किए चार साल होने को हैं। बावजूद इसके कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है।हाल ही मे एक कश्मीरी पंडित संजय शर्मा की हत्या कर दी गई। जिसके बाद से एक बार फिर कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
आतंकवाद से जुड़े हैं हत्या के मामले
आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमलों में तीन स्थानीय पंडितों, तीन अन्य हिंदुओं और आठ गैर-स्थानीय मजदूरों सहित 29 नागरिक मारे गए थे। तब घाटी में फैली अशांति को देखते हुए 5 हजार से अधिक कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी थी। कश्मीर में हत्या के ज्यादातर मामले आतंकवाद से जुड़े हैं। दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार जम्मू और घाटी में 2011 से 2016 के बीच करीब 562 कश्मीरी पंडितों व अन्य हिन्दु की हत्या की खबरें सामने आई। आंकड़े बताते हैं कि साल 2010 के बाद से हत्या के मामलों में 70 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखी गई है। जिसमें आम नागरिकों और कश्मीरी पंडितों सहित सुरक्षा बलों की हत्याएं भी शामिल हैं। साल 2018 के बाद से इनकी हत्याओं में कमी देखने को मिली लेकिन इस बीच घाटी से कश्मीरी पंडितों की हत्या की जो ख़बरें आ रही हैं उन्हें देख कहा जा रहा है कि ये मामले थम नहीं रहे हैं। ये सभी मौतें अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग की तरफ इशारा करती हैं।
क्या है टारगेट किलिंग
टारगेट किलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत आतंकी किसी एक व्यक्ति की पूर्ण गतिविधियों पर ध्यान रखकर उसके बारे में पूरी जानकारियां एकत्रित्त करते हैं और अंत में उसे मार देता है। इसमें आम जनता, मजदूर , पुलिस अधिकारी , स्कूल टीचर्स व कश्मीरी पंडित आदि की हत्या में शामिल हैं । टारगेट किलिंग का जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि, इस ऑपरेशन के पीछे आतंकवादी समूहों का हाथ है। राज्य पुलिस के अनुसार भारतीय सुरक्षा सेना बल की कड़ी निगरानी के कारण कई आतंकी जो सीमा पार से जम्मू कश्मीर में घुसने का प्रयास कर रहे है वो अपने प्रयासों में असफल सिद्ध हो रहें हैं जिसके कारण वे बौखला गए हैं और अपनी राह से भटके हुए स्थानीय युवकों को अपना हथियार बना रहे हैं। कहा जा राहा है कि ये आतंकी उन युवकों बिना प्रशिक्षण के पिस्तौल मुहैया करवा देते है फिर उन्हें एक टारगेट और उसका पता दे देते हैं। जिसे उन युवकों को पूरा करना होता है। महत्वपूर्ण बात यह है की सभी टारगेट भीड़ वाले स्थानों पर दिए जाते हैं जिसकी वजह से कश्मीर की आम जनता में दहशत का माहौल बना हुआ है।
इस पर यह भी टिप्पणी की जा रही है कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 तो हटा दिया गया लेकिन आज भी कश्मीर में कश्मीरी पंडित सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि अधिकतर उन्हें ही टारगेट किलिंग का शिकार बनाया जा रहा है। आज़ादी के बाद से ही जम्मू – कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के को प्रताड़ित करने उन्हें मारने की ख़बरें सामने आती रही हैं। जिसे रोकने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 जिसके तहत जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार प्राप्त थे , को हटाया जाना इसी प्रयास का परिणाम है। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को लेकर यह उम्मीद की जा रही थी कि इससे कश्मीरी पंडितों की स्थिति में सुधार आएगा। लेकिन बीते कुछ समय की घटनाओं को लेकर कहा जा रहा है कि कश्मीरी पंडितों स्थिति आज भी वैसी ही है उसमे कुछ सुधार नहीं आया है।
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