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कश्मीर में नहीं है हालात सामान्य, मीडिया पर रोक के बावजूद असल हालात आ रहे हैं बाहर

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और राज्य को दो केंद्र शासित देशों में बदलने का केंद्र सरकार का फैसला हुए आज 24वां दिन हैं। घाटी और राज्य के अन्य हिस्सों में कफ्र्यू है, संचार सेवाएं ठप्प हैं, विपक्षी नेता नजरबंद हैं लेकिन इतने बंदोबस्त के बाद भी हालात वैसे नहीं है जैसा सरकार बता रही है।  साप्ताहिक ‘शुक्रवार’ में जलीस अंद्राबी की एक रिपोर्ट कहती है कि नौ अगस्त के दिन जुमे की नमाज के बाद श्रीनगर के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में रफीक शगू के घर पर गिरे एक आंसू गोले के गोले ने उनकी पत्नी की जान ले ली। संकट यह कि पुलिस प्रशासन इसे मानने को तैयार नहीं। रफीक हताश हो पूछ रहे हैं कि उनकी पत्नी की हत्या को जिम्मेदार कौन हैं? ‘एसोसिएशन फ्री प्रेस’ से बात करते हुए रफीक कहते हैं कि पुलिस बलों की हिंसा उनकी पत्नी की मृत्यु का कारण बनी। एएफपी की माने तो एक अन्य व्यक्ति, 62 वर्षीय मोहम्मद आयूब खान की मौत भी पुलिस द्वारा भीड़ को तितर बितर करने के लिए दागे गए आंसू गोले के गोलों के चलते 15 अगस्त को हो गई। अंतिम संस्कार भी पुलिस ने अपनी निगरानी में जल्दीबाजी में करा डाला।
‘अल जजीरा’ चैनल के प्रकाशित एक रिपोर्ट का शीर्षक है श्व्अमत 150 ज्तमंजमक वित जमंत ए च्मससमज ळनद प्दरनतपमे पद उपतश् इस रिपोर्ट के मुताबिक घाटी के दो अस्पतालों के आंकड़े बता रहे हैं कि आंसू गैस और रबड़ की बुलेट से 150 लोग घायल हो अपना उपचार करा रहे हैं। ‘रयूटर’ न्यूज एजेंसी ने यह डाटा श्रीनगर के ‘शेर -ए -कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ और ‘श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल’ का होने की बात कही है। ‘अल जजीरा’ का दावा है कि तमाम प्रतिबंधों के बावजूद कश्मीर घाटी में लोग भारत सरकार के खिलाफ सड़कों में उतर रहे हैं। जाहिर है कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हैं। भले ही देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार घाटी की सड़कों में बिरयानी खाते नजर आएं, विपक्षी दलों के नेताओं को घाटी में न फंसने देने के पीछे एक बड़ा कारण यहां चल रहे धरने-प्रदर्शनों का होना है।

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