कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही दिनों का समय बचा है। इसको देखते हुए राजनीतिक दलों ने अपना चुनाव प्रचार भी तेज कर दिया है। इस बीच कई नेताओं के जातिगत बयानों ने राज्य की सियासत को गरम कर दिया है। एक ओर जहां पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की मांग की है तो पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायतों को लेकर ऐसा कुछ कहा है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है।
दरअसल कोलार, भालकी और हुमनाबाद में अपने भाषणों में राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की मांग की। कोलार में राहुल ने मोदी सरकार पर 2011 के सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना के आंकड़ों को छिपाने का आरोप लगाते हुए मांग की कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोटा उनकी जनसंख्या के अनुपात में होना चाहिए। साथ ही उन्होंने आरक्षण पर 50 फीसदी वाली कैप हटाने की भी मांग कर डाली। उन्होंने यह भी कहा कि सचिव रैंक के केवल सात प्रतिशत सिविल सेवक ओबीसी, एससी या एसटी समुदायों के हैं। दूसरी तरफ कर्नाटक में कांग्रेस पर पिछड़ों की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने इसे पाखंड करार दिया। भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि जब वे सरकार में थे, तब उन्होंने ओबीसी के लिए कुछ नहीं किया। प्रधानमंत्री और कर्नाटक में डबल इंजन सरकार के तहत समुदाय के लिए किए गए सभी कार्यों को देखें। वायदे करना और गायब होना कांग्रेस की शैली है।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी एक ऐसा बयान दिया, जिससे राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया। सिद्धारमैया ने लिंगायतों को लेकर ऐसा कुछ कहा है, जिस पर विवाद बढ़ता जा रहा है। भाजपा ने इसे पूरे लिंगायत समुदाय से जोड़ दिया है और इसे पूरे समुदाय का अपमान बताया है। दरअसल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिद्धारमैया से पूछा गया था कि क्या लिंगायत समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री बनना चाहिए। इस पर सिद्धारमैया ने कहा कि पहले से ही लिंगायत मुख्यमंत्री है, लेकिन वह सारे भ्रष्टाचार की जड़ है।
सिद्धारमैया के इस बयान पर कर्नाटक भाजपा ने उन्हें घेर लिया। भाजपा ने एक ट्वीट में लिखा कि यह अक्षम्य है कि एक व्यक्ति जो समुदाय को बांटने की कोशिश कर रहा है, अब वह कह रहा है कि समुदाय भ्रष्ट है। इस बीच मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि एक पूर्व सीएम का इस तरह बयान देना ठीक नहीं है। अतीत में भी ब्राह्मण समुदाय का मजाक उड़ाया गया था। इससे पहले जब वे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने लिंगायत-वीरशैव समुदाय को तोड़ने की कोशिश की थी।
इस मामले ने तूल पकड़ी तो सिद्धारमैया को अपने बयान पर सफाई देनी पड़ी है। उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री को भ्रष्ट बता रहे थे, जो भ्रष्टाचार में विश्वास रखते हैं। मेरे मन में लिंगायत के लिए बहुत सम्मान है और हमने लिंगायतों को 50 से ज्यादा टिकट दिए हैं। भाजपा उनके बयान को तोड़- मरोड़कर पेश कर विवाद पैदा करना चाहती है। राज्य में दलितों की आबादी 19.5 फीसदी है। ये वोट आम तौर पर सभी दलों में विभाजित होते हैं, हालांकि कांग्रेस इन वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में कामयाब होती है। दूसरी ओर मुसलमानों की आबादी 16 प्रतिशत है। ये वोट आमतौर पर कांग्रेस और जेडीएस के बीच बंटते हैं।
लिंगायतों की जनसंख्या का 14 प्रतिशत हिस्सा है और यह समुदाय कई वर्षों से भाजपा को वोट देता रहा है। 14 फीसदी वोक्कालिगा वोट शेयर आमतौर पर कांग्रेस और जेडीएस के बीच विभाजित होता है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कर्नाटक की आबादी का 20 प्रतिशत है और इसमें से सात प्रतिशत अकेले कुरुबा हैं। कर्नाटक में जाति की राजनीति राज्यों की तरह ही है और हर पार्टी जाति के गणित को ठीक करने की कोशिश करती है। यहां लिंगायत, वोक्कालिगा दो प्रमुख जातियां हैं, जिन्हें इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस दोनों अपनी ओर साधने में लगे हैं। भाजपा को लिंगायतों का पसंदीदा माना जाता है जो इस बार वोक्कालिगा वोट हासिल करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। अभी तक 15 फीसदी समाज का अधिकतर वोट जेडीएस के पक्ष में और कुछ तबकों में कांग्रेस की पैठ है।
इस चुनाव में भाजपा ने 2018 में 34 की तुलना में 47 वोक्कालिगा को टिकट दिया है। उधर कांग्रेस समुदाय के वोटों के लिए वोक्कालिगा से आने वाले प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार पर भरोसा कर रही है। उसने 43 वोक्कालिगा को भी टिकट दिया है, जो 2018 के मुकाबले दो ज्यादा है। वोक्कालिगा पार्टी मानी जाने वाली जेडीएस ने 45 वोक्कालिगा को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में जेडीएस के पास 24 वोक्कालिगा विधायक थे।