कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के गृह राज्य कर्नाटक में चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण और ‘चरम’ पर पहुंच गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार ‘दक्षिण का द्वार’ कहे जाने वाले कर्नाटक में कांग्रेस की जीत 2024 आम चुनाव में विपक्षी गठबंधन को पुख्ता करने का काम कर सकती है। यही कारण है कि कांग्रेस ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व आक्रामक प्रचार के जरिए भाजपा को बैकफुट में डालने का जी-तोड़ प्रयास कर रहा है तो दूसरी तरफ बोम्मई सरकार के खिलाफ जनआक्रोश को थामने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है। राजनीतिक रूप से रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस के लिए कर्नाटक में सत्ता वापसी संजीवनी का काम कर सकती है
कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों के नेता पूरा दमखम लगाए हुए हैं इसकी वजह यह है कि कर्नाटक को भारतीय राजनीति में ‘दक्षिण का द्वार’ कहा जाता है। इस राज्य में जीत दर्ज कर जहां वर्तमान में सत्ताधारी बीजेपी दक्षिण भारत के तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कमर कसकर तैयार होना चाहती है, तो वहीं कांग्रेस यहां सत्ता में वापसी कर बीजेपी को दक्षिण की राजनीति में पीछे धकेलने की पुरजोर कोशिश कर रही है। तीसरी दावेदार जनता दल (सेक्युलर) भाजपा और कांग्रेस में से किसी के लड़खड़ाने का इंतजार कर रही है ताकि वह किंग न सही, ‘किंगमेकर’ तो बन सके।
राज्य में मतदान होने में अब कुछ ही शेष हैं। राज्य की सत्ताधारी पार्टी भाजपा एक बार फिर से प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए जरूर ताल ठोंक रही है लेकिन अब तक के तमाम सर्वे भाजपा की चिंता बढ़ाने वाले हैं। मीडिया अनुमानों के अनुसार बीजेपी को सिर्फ 74 से 86 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। जो साल 2018 में पार्टी को मिली सीटों से 24 सीटें कम हैं। इस बार बीजेपी को 35 फीसदी वोट शेयर मिलने की बात इन चुनाव पूर्व सर्वे में कही जा रही है। साल 2018 में पार्टी का वोट शेयर 36 .35 प्रतिशत था। वहीं कांग्रेस को 40 फीसदी वोट शेयर के साथ 107 से 119 सीटें मिलने की संभावना है। जेडीएस को 17 फीसदी वोट शेयर के साथ 23-35 सीटें मिलने का अनुमान है। अन्य को 5 सीटें मिलने की उम्मीद है। इन आंकड़ों के अनुसार राज्य में कांग्रेस की वापसी से आसार बनते नजर आ रहे हैं।
राज्य में 10 मई को 224 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होना है। 13 मई को इसके नतीजे आएंगे। चुनाव आयोग के अनुसार, इस चुनाव में कुल पांच करोड़ 21 लाख 73 हजार 579 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 2 .59 करोड़ महिला, जबकि 2. 62 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। राज्य में कुल 9 .17 लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। इनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। अधिकांश चुनावी सर्वेक्षण मध्य कर्नाटक में कांग्रेस के लिए 5 प्रतिशत वोट शेयर बढ़ने तो बीजेपी के लिए 7 प्रतिशत का नुकसान होने की बात कह रहे हैं। जेडीएस के मोटे तौर पर वहीं रहने की संभावना है, जहां वह वर्तमान में है। मध्य कर्नाटक क्षेत्र में 35 सीटें हैं, इनमें से 21 सीटों पर कांग्रेस के जीतने की संभावना है। जो पिछले चुनाव की तुलना में 10 सीटें अधिक हैं। पिछली बार 24 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी के सिर्फ 14 सीटें जीतने का अनुमान है।
भाजपा का गढ़ माने जाने वाले तटीय कर्नाटक में जेडीएस को इस बार 10 प्रतिशत तक फायदा होने की संभावना है। लेकिन, यह जेडीएस के लिए किसी भी सीट में बदलाव नहीं करेगा। बीजेपी को 48 फीसदी वोट के साथ 17 सीटें मिलने का अनुमान है, जो साल 2018 के 51 फीसदी से कम है। यहां कांग्रेस को 4 सीटें मिलने की संभावना है। बेंगलुरू में बीजेपी को अपने आंकड़े बेहतर करने और 32 में से 13 सीटें जीतने की उम्मीद है। वहीं कांग्रेस को 17 सीटें जीतने की संभावना है। जेडीएस को 2 सीटें जीतने का अनुमान है। हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में 31 सीटें हैं। इस बार कांग्रेस का वोट शेयर 45 प्रतिशत बढ़ा है और यहां पार्टी को 21 सीटें मिलने की संभावना है वहीं बीजेपी को 10 सीटें मिलती दिख रही हैं जो पिछले चुनाव की तुलना में दो कम है। साल 2018 में 4 सीटें पाने वाली जेडीएस को इस बार जीरो सीट मिलने का अनुमान है। मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र में 50 सीटें हैं। इस इलाके से कांग्रेस को अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है। यहां कांग्रेस के 28 सीटें जीतने का अनुमान है। बीजेपी के खाते में सिर्फ 22 सीटें आ सकती हैं।
भाजपा-कांग्रेस के घोषणा पत्र में अंतर
भाजपा-कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कई बड़े वायदे किए हैं। एक-दूसरे के घोषणाओं पर सवाल भी उठाने लगे हैं। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को ‘प्रजा ध्वनि’ नाम दिया है। वहीं, कांग्रेस ने अपने चुनावी वायदों को ’संकल्प पत्र’ नाम दिया है।
भाजपा के घोषणा पत्र में गरीबों के लिए साल में तीन बार मुफ्त गैस सिलेंडर से लेकर किसानों, महिलाओं और बच्चों तक के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया गया है। वहीं, कांग्रेस के घोषणा में 200 यूनिट बिजली मुफ्त से लेकर परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2 हजार रुपए देने तक का वायदा किया गया है। इसके अलावा कांग्रेस ने नफरत फैलाने वाले संगठनों पर बैन लगाने का भी वायदा किया है। इसमें सबसे बड़ा नाम बजरंग दल का है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन लगाने का एलान क्यों किया? इसका चुनाव में पार्टी को कितना फायदा मिलेगा? भाजपा और कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्रों में कितना अंतर है? राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस जानती है कि अगर चुनाव जीतना है तो बड़े वायदे करने ही होंगे। यही कारण है कि इस बार पार्टी ने महिलाओं से लेकर युवाओं तक को लुभाने के लिए भत्ता का एलान किया है। 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का एलान भी काफी बढ़ा है। सबसे बड़ा दांव आरक्षण की सीमा को बढ़ाने का है। आरक्षण अगर 50 से 75 प्रतिशत तक हो जाता है तो यह बड़ा बदलाव होगा। वहीं, भाजपा ने गरीब वर्ग के लिए तो कई एलान किए हैं।
किसकी कितनी हिस्सेदारी
राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 14 फीसदी, वोक्कालिंगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागीदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिंगा समुदाय में जदएस की पकड़ मानी जाती है। हालांकि बीते चुनाव में भाजपा और कांग्रेस वोक्कालिंगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी। चुनाव में जीत के लिए
राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। सियासी उफान के बीच, कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो पूरे चुनाव पर हावी हैं।
कर्नाटक में सत्ता बदलने का मिथक
कर्नाटक में पिछली चुनावों को देखें तो यहां हमेशा से सत्ता में बदलाव होता आया है। पिछले 38 सालों के रिकॉर्ड को देखा जाए तो यहां सत्ताधारी दल दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर सकी है। जनता हर पांच साल में सरकार को बदल देती है। अब बीजेपी के लिए 2023 में सत्ता बचाने की बड़ी चुनौती है।
पिछले चुनाव में किसे कितनी सीटें मिली
2018 चुनाव में बीजेपी 104 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, तो कांग्रेस को केवल 80 सीटें ही हासिल हुई थीं। जबकि जनता दल (एस) को 37 सीटें मिली थी। शुरुआत में जेडीएस कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बनायी थी, लेकिन दोनों दलों के विधायकों की बगावत के बाद सरकार गिर गई थी उसके बाद बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला।