उत्तर प्रदेश सरकार फिलहाल कांवड़ यात्रा पर अपने हिंदू एजेंडे को लेकर पशोपेश में है। 3 दिन पूर्व उत्तराखंड सरकार द्वारा कावड़ यात्रा रद्द किए जाने के बाद उत्तर प्रदेश की तरफ सबकी नजर है क्योंकि हरिद्वार से गंगाजल उठाते समय अधिकतर श्रद्धालु पश्चिमी उत्तर प्रदेश के होते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा सुचारू रहेगी या नहीं यह चर्चाओं के केंद्र में है।इस मामले में उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार पहले ही यात्रा रद्द करने का फैसला ले चुकी है।
आज सुप्रीम कोर्ट ने भी योगी सरकार को 19 जुलाई का अल्टीमेटम दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह या तो खुद तय करें नहीं तो 3 दिन बाद कोर्ट ही तय करेगा कि कोरोना काल की तीसरी लहर के मद्देनजर कावड़ यात्रा शुरू होगी या रद्द होगी। इसी के साथ ही राजस्थान से भी खबर आ रही है कि वहां भी कावड़ यात्रा निरस्त कर दी गई है।
फिलहाल, उत्तर प्रदेश सरकार के सामने ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ जैसी स्थिति आ गई है। अगर उत्तर प्रदेश के कांवड़ भक्त हरिद्वार जल गंगाजल लेने जाते हैं तो उत्तराखंड सरकार उन पर न केवल एफ आई आर दर्ज करेगी बल्कि उन्हें 14 दिन क्वॉरेंटाइन भी कर देगी। जबकि दूसरी तरफ यूपी सरकार के पीछे सुप्रीम कोर्ट का डंडा भी है ।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही उत्तराखंड सरकार की इस मामले में तारीफ कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिन पहले अखबारों में खबरों के बाद संज्ञान लिया था। उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह कांवड़ यात्रा पर पुनर्विचार करें। इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांवड़ यात्री आरटी पीसीआर नेगेटिव रिपोर्ट के साथ ही इस यात्रा पर जा सकते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि यह यात्रा सांकेतिक होगी। मतलब यह कि जिस तरह पहले कावड़ यात्री डीजे आदि के साथ पूरे जलसे में यात्रा लेकर आते थे इस बार ऐसा नहीं होगा।

लेकिन सवाल यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भोले भक्त हरिद्वार और गंगोत्री से गंगाजल लेकर ही कांवड़ यात्रा शुरू करते हैं। ऐसे में उनकी यात्रा अगर उत्तर प्रदेश से शुरू होती है तो उत्तराखंड में नहीं पहुंचेगी। इसके चलते बॉर्डर पर संवेदनशील स्थिति बनने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है।
शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश सरकार अब गंगा के किनारे नया हरिद्वार तलाश नहीं रही है। उत्तर प्रदेश सरकार चाहती है कि उनके प्रदेश के कांवड़िये उत्तराखंड ना जाकर उत्तर प्रदेश के इलाकों में ही गंगा तट पर कावड़ यात्रा शुरू करने की औपचारिकताएं करें। इसके लिए गढ़मुक्तेश्वर के बृजघाट को प्रमुखता के आधार पर देखा जा रहा है।
वैसे भी बृजघाट को नया हरिद्वार कहा जाता है। यहां हरिद्वार की तर्ज पर ही घंटाघर सहित घाट आदि बनाए गए हैं । इसके अलावा अनूप शहर और आहार तथा नरोरा आदि गंगा के तट पर भी सरकार नया हरिद्वार बनाने की योजना बना रही है।
तीन साल पहले जब कोरोना कॉल शुरू भी नहीं हुआ था तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांवड़ यात्रा को लेकर खूब सियासत की थी। तब उन्होंने कांवड़ यात्रियों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए थे। इसकी पूरे देश में चर्चा हुई थी।
दरअसल, योगी कांवड़ यात्रा के जरिए अपने हिंदू एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए दिखते हैं। लेकिन पिछले 2 सालों से वह कांवड़ यात्रा रद्द होने के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। 2 साल से उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। ऐसे में योगी अपने मन की नहीं कर पा रहे हैं।
मजेदार बात यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में महज 6 माह का समय रह गया है। ऐसे में योगी को अपने हिंदू वोट बैंक की चिंता सताए जा रही है। तो स्वाभाविक है कि वह कावड़ यात्रा पर पीछे नहीं हटेंगे। वह दूसरी बात है कि 3 दिन बाद जब सुप्रीम कोर्ट खुद यह तय कर देगा कि उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा शुरू नहीं होगी तो योगी की यह मजबूरी होगी।
कांवड़ यात्रा पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद योगी अपने हिंदू वोट बैंक के बीच जाकर सहानुभूति अर्जित करने की राजनीति भी कर सकते हैं। वह इस मुद्दे पर कह सकते हैं कि उन्होंने कांवड़ यात्रा तो शुरू की लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वह यात्रा को सुचारू नहीं कर पाए । इस तरह योगी सरकार भोले भक्तों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए फिलहाल वेट एंड वॉच की स्थिति में है।
उधर, दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा है कि वह चाहते हैं कि हरिद्वार से टैंकरों में गंगाजल लाकर भोले भक्तों को दिया जाए । इससे कांवड़ यात्री उत्तराखंड में तो नहीं जा सकेंगे लेकिन उनका हर की पैड़ी से गंगाजल लाने का सपना भी पूरा हो सकता है।
हालांकि इस पर सुप्रीम कोर्ट का अभी कोई अंतिम फैसला नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अब 19 जुलाई को फैसला देगा। संभवतः सुप्रीम कोर्ट तब उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा को निरस्त करने का फैसला सुना सकता है।