कानपुर के चमड़ा उद्योग की दुनियाभर में धाक रही है। लेकिन प्रयागराज कुंभ के चलते सरकार ने यहां की टेनरियों को बंद कराया तो पूरे चर्म उद्योग का ढांचा चरमरा गया है। अब ये टेनरियां खुलेंगी भी या नहीं, इस बारे में अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है। चमड़ा निर्माता और निर्यातक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अभी स्थिति यह है कि विदेशों से मिले हजारों करोड़ के आर्डर-कैंसिल कर कर दिए गए हैं
कभी एक राजा ने मात्र कुछ दिनों के लिए अपने राज्य में चमड़े के सिक्के चलवा दिये थे। लेकिन उत्तर प्रदेश के शीर्ष औद्योगिक शहर कानपुर में तैयार चमड़े का भी दुनिया भर के बाजार में सिक्का चलता है, पर अब ऐसा नहीं है। प्रयागराज कुंभ से काफी पहले ही सरकार ने यहां के चर्म कारखाने यानी टेनरियों को बंद करवा दिया था। यह सिलसिला आज भी जारी है। कानपुर चमड़ा कारोबार का विशाल ढांचा पूरी तरह से चरमरा कर औधेंमुंह गिर पड़ा है। कानपुर चमड़ा उद्योग की धमक पूरे विश्व में थी। कहा जाता है कि कानपुर की टेनरियां विश्व स्तर पर सबसे बेहतरीन चमड़े का उत्पादन करती हैं। यहां की कारीगरी का कमाल पारंपरिक है। यहां पर चमड़े के जिस कार्य से जो जुड़ा है वो अपने फन का माहिर है और पीढ़ी दर-पीढ़ी यही कार्य करता आ रहा है। यहां पर अधिकतर प्लांट जाजमऊ और गंगा पर उन्नाव इलाके में लगे हैं। कई टेनरी तो मेगा क्षमता वाली हैं। टेनरी में कार्य करने वालों के अलावा महानगर की काफी बड़ी आबादी इस कारोबारियों से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ कर रोजी-रोटी कमाती है। लेकिन अब लाखों लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। सालों से चमड़ा कार्य से जुड़े होने के कारण अन्य कोई व्यवसाय करने में अपने को असमर्थ पा रहे हैं। मेनचेस्टर सिटी की पहचान रखने वाले इस महानगर में जब स्वदेशी काॅटन मिल, एलनकू पर, जेके मिल, लाल इमली सहित तमाम भारी मझोली मिलें बंद होने के बाद चमड़ा उद्योग ने कानपुर की कारोबारी रफ्तार को बनाये रखा लेकिन आज चमड़ा कारोबार खुद ही घुटनों के बल नजर आ रहा है।
टेनरियों की गति थमने के बाद यहां के चमड़ा निर्यातकों को मिलने वाले आॅर्डर बंद हो चुके हैं। अब तक चमड़ा निर्माताओं को करीब चार हजार करोड़ के आॅर्डर कैंसिल हो चुके हैं। और नए आॅर्डर भी नहीं मिल रहे हैं। आगे भी मिलने की संभावना नहीं दिख रही है। इस सब के साथ कानपुर चमड़ा कारोबार की वैश्विक स्तर पर साख को भारी धक्का लगा है। साख व कार्य गंवा चुके उद्यमियों की समझ में नहीं आ रहा है कि उनका भविष्य कैसा होगा। चमड़ा निर्माताओं, निर्यातकों व बड़े स्तर से जुड़े लोगों ने सार्वजनिक गतिविधियों से भी किनारा कर लिया है।
वैसे भी कानपुर का लेदर बिजनस राजनीतिक दलों के लिए सोने लदी भेड़ रहा है। ये कारोबारी सभी प्रमुख दलों को गोपनीय ढंग से चंदे के रूप में भारी-भरकम रकम समय- समय पर भेंट करते रहते हैं। इतना ही नहीं चमड़ा आयातक देशों ने कानपुर से नाता तोड़ कर अन्य ठिकानों की ओर रुख कर लिया है। इस कारोबार से जुड़े एक दिग्गज ने बताया कि कानपुर से करीब सात हजार करोड़ का चमड़ा निर्यात होता है। इस वर्ष निर्यात की खटिया खड़ी हो गई है। सरकारी राजस्व को भी घाटा हो रहा है, क्योंकि तमाम शुल्कों/करो के नाम पर चमड़ा उद्योग सरकारी खजाने को भी मालामाल करता रहा है।
टेनरी उद्योग का एक पक्ष जितना चमक- दमक भरा है इसका दूसरा पक्ष उतना ही भयावाह है। इसमें लगे मजदूरों को उनकी मेहनत का दसवां हिस्सा ही मजदूरी के नाम पर दिया जाता है। कच्चे चमड़े से तैयार माल की प्रक्रिया काफी जटिल मेहनतभरी व सड़ांध, गंदगी से भरपूर है। खासकर कच्चे चमड़े के भंडारण, रख-रखाव,
लोडिंग अनलोडिंग में लगे मजदूरों का जीवन नर्क से भी बदतर होता है। ये मजदूर, सांस, फेफड़ों तथा ऐसे चर्म रोगों की चपेट में आ जाते हैं जिसका आसानी से इलाज भी नहीं हो पाता है। कच्चे चमड़े में ऐसे खतरनाक रसायनों, तेजाबों का प्रयोग होता है जो कैंसर का कारण बनते हैं। किड़नी और फेफड़ा रोग का होना तो आम बात है। कच्चे माल के गोदाम सीलन, संड़ाध और अंधेरा भरे होते हैं।
नई सड़क के पास घनी आबादी में कच्चे चमड़े के गोदाम इस बात की गवाही हैं। इन नर्क जैसे गोदामों के अंदर रह कर कार्य करना हर किसी के वश की बात नहीं है। चमड़ा मिलों से निकलने वाली तेजाबी गंदगी ने गंगा नदी का बेड़ा गर्क कर रखा है। उद्यमी इस कारोबार से मोटा पैसा कमाने में तो माहिर हैं, लेकिन प्लाटों को मानक के हिसाब से चलाने के लिए राजी नहीं हैं। चमड़ा मिल वायु-प्रदूषण व
भूगर्भीय पानी को भी प्रदूषित करते हैं। इससे मानव आबादी पशु-पक्षियों का, हरियाली का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है।
टेनरी मालिकों के इस खतरनाक खेल में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, स्थानीय पुलिस, जिला प्रशासन, जल निगम आदि की मिली भगत रहती है। गंगा का हद से अधिक कानपुर में प्रदूषित होना इसी का नतीजा है। खास कर सबसे अधिक भूमिका नाकारा उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रहती है।
सरकारी दिशा-निर्देशों की जिम्मेदार अधिकारी ही अवहेलना करते हैं। इसे देख कर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज कुंभ से पहले 2018 दिसंबर माह के अंत में सख्ती बरतते हुए कानपुर की सभी टेनरियों को बंद करा दिया। ये टेनरियां खुलेंगी या नहीं तथा कब खुलेंगे या अन्य स्थान पर शिफ्ट होंगी इस सबके बारे में सरकार ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। मात्र पांच महीने में ही ये कारोबार औंधेमुंह धड़ाम से गिर पड़ा है। इतना तो तय माना जा रहा है जिस हाल में टेनरियां चल रहीं थीं। उसी तरह दोबारा चलाने की अनुमति योगी सरकार कतई नहीं देगी। मानवीय हित और गंगा की दुर्दशा को देखते हुए टेनरी
मालिकों को मनमर्जी की छूट देनी ही नहीं चाहिए।
भविष्य को लेकर चिंतित कारोबारी
काउंसिल फार लेदर एक्सपोर्ट के पूर्व चेयरमैन मुख्तारुल अमीन का कहना है टेनरियां बंद होने से अब तक तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। ये नुकसान आॅर्डर कैंसिल होने से हुआ है। अब कोई भी नया आर्डर नहीं मिल रहा है। हांगकांग में आयोजित फेयर में शामिल होने का निमंत्रण मिला, पर हम सीधे शामिल होना तो दूर सैंपल तक नहीं भेज सके। आॅर्डर तो मिलने से रहे कानपुर के एक्सपोर्टरों की साख को भी तगड़ा झटका लगा है। कानपुर में टेनरी कारोबार का भविष्य अंधकार में देख कर पश्चिम बंगाल सरकार की पहल पर करीब एक सैकड़ा उद्यमियों ने भूमि आवंटन करने का आवेदन भेजा है। चमड़ा उद्यमी अशरफ रिजवान के अनुसार एक दर्जन से अधिक लोगों को पश्चिम बंगाल सरकार औद्योगिक जमीन आवंटित कर चुकी है। वहां एक्सटेंशन यूनिट खोलने का प्लान है। लेकिन अभी हम लोगों को वहां भी जटिल व लंबी प्रक्रिया को पूरा करना है। यहां तो हमारा कारोबार चैपट ही समझो।