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Country Uttarakhand

जस्टिस सुधांशु धूलिया ने उत्तराखंड के जनहित में लिए महत्वपूर्ण फैसले 

  1 नवंबर 2008 को सुधांशु धूलिया को नैनीताल हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया था। एक दशक से ज्यादा समय तक देवभूमि उत्तराखंड में जनहितकारी फैसले देने के लिए चर्चित रहे सुधांशु धूलिया को दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा गुवाहाटी हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। उनकी मजबूत पैरवी करने के चलते ही रामपुर कांड की सीबीआई जाँच हो सकी थी। इसके साथ ही उत्तराखंड में पर्यावरण सरंक्षक के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाने का श्रेय भी जस्टिस धूलिया को ही जाता है।
मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल  के लैंसडाउन के समीप बदलपुर निवासी  महान स्वतंत्रता सेनानी व विधायक रहे भैरव दत्त धूलिया के तीन पुत्रों में एक जस्टिस धूलिया की पहचान उत्तराखंड हाईकोर्ट में ईमानदार व हिंदी भाषी अधिवक्ताओं को प्रोत्साहन देने वाले जज के रूप में रही है । जस्टिस धूलिया के पिता भैरब दत्त धूलिया 1967 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में लैंसडाउन सीट से विधायक रहे हैं। उनकी माता सुमित्रा धूलिया इलाहाबाद में शिक्षिका रही हैं। जस्टिस धूलिया के पिता भी इलाहाबाद में नामी वकील रहे हैं। उनके एक भाई तिग्मांशु धूलिया बॉलीवुड के प्रसिद्ध निर्देशक हैं।
हाईकोर्ट नैनीताल के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली के अनुसार जस्टिस धूलिया को बचपन से ही थियेटर से लगाव रहा है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड मुजफ्फरनगर में आंदोलनकारियों के साथ जुल्म के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में लड़ी गई  कानूनी जंग में जस्टिस धूलिया बतौर अधिवक्ता अग्रणी पंक्ति में थे।  धूलिया की मजबूत पैरवी की बजह से इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रवि धवन द्वारा रामपुर तिराहा कांड की सीबीआई जांच के आदेश होने के साथ ही पीड़ितों को मुआवजा देने के आदेश पारित हुए थे। जस्टिस धूलिया ने कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहे राजीव शर्मा के साथ सितारगंज जेल में सुधार को  लेकर ऐतिहासिक फैसला देने के साथ महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए। वह हाईकोर्ट में पर्यावरण से संबंधित मामलों की बेंच के चेयरमैन भी रहे हैं। उन्होंने उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों में महत्वपूर्ण आदेश पारित किये, जो नजीर  बने हैं। उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को क्षतिज आरक्षण के खिलाफ जो फैसला दिया, वही अब तक प्रभावी है।  उत्तराखंड हाईकोर्ट के हर पैनल में शामिल रहे।
उनके पिता स्वर्गीय केशव चंद्र धूलिया भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर रह चुके हैं। देहरादून, इलाहाबाद व लखनऊ में पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1981 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक, एवं 1983 में आधुनिक इतिहास से स्नातकोत्तर की डिग्री ली एवं 1986 में एलएलबी की। 1986 में ही उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में अपने न्यायिक कॅरियर की शुरूआत की और उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अपने मूल प्रदेश उत्तराखंड आकर नैनीताल उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने लगे थे। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वह मुख्य स्थायी अधिवक्ता सहित विभिन्न पदों पर रहे, तथा एक नवम्बर, 2008 में वह उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।
हाईकोर्ट नैनीताल के सीनियर एडवोकेट दिनेश तिवारी की माने तो राज्य के मामलों में बारीक नजर रखने वाले अधिवक्ता होने की वजह से राज्य की पहली निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने उन्हें हर महत्वपूर्ण मामले में विशेष काउंसिल नियुक्त किया। जस्टिस धूलिया ने लॉकडाउन के दौरान अधिवक्ताओं की दिक्कतों को दूर करने के लिए निजी तौर पर भी प्रयास किये। एक दशक से चल रहे विरोध और समर्थन के बावजूद अब तक आईं चार सरकारें इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं कर पाईं। 17 सितंबर, 2012 को उत्तराखंड हाइकोर्ट के न्यायाधीश सुधांशु धूलिया की एकल पीठ ने मूल निवास और जाति प्रमाण के मामले में दायर आधा दर्जन से अधिक व्यक्तिगत याचिकाओं पर निर्णय देते हुए कहा कि राज्य गठन के समय तक स्थायी रूप रह से रहे लोगों को यहां का मूल निवासी माना जाएगा।
आदेश में साफ  किया गया है कि संवैधानिक आदेश 1950 के तहत जिन जातियों को एससी/एसटी/ओबीसी की श्रेणी में रखा गया है, अगर वे राज्य गठन से पूर्व उत्तराखंड में बसे हैं तो उन्हें राज्य की किसी भी सुविधा से वंचित नहीं किया जा सकता।  मूल निवासी का अर्थ यह नहीं है कि जिसके पूर्वज भौगोलिक क्षेत्र उत्तराखंड में रहते हों, वही यहां का मूल निवासी होगा, बल्कि इसका आशय प्रथम प्रेसिडेंशियल आदेश के समय 1950 में समस्त उत्तर प्रदेश में बसे लोगों से है।

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