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जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ होंगे देश के चीफ जस्टिस

 भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया है। वह देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश होंगे।

 

दरअसल,न्यायमूर्ति यूयू ललित की सेवानिवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कार्यभार संभालेंगे। जिसको  बड़ी उम्मीद के साथ देखा जा रहा है क्योंकि न्यायाधीश चंद्रचूड़ को नागरिकों के मौलिक अधिकारों, संविधान और कानून के शासन के प्रति दृढ़ता से खड़े होने के लिए जाना जाता है। उनके कार्यकाल में 18 जजों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय में होनी है।इसके अलावा अनेक जजों की नियुक्ति उच्च न्यायालयों में होगी, जिसमें न्यायपालिका के नारंगीकरण को रोकने और बार एवं बेंच से योग्य लोगों को न्यायाधीश बनाने की चुनौती होगी। इससे पहले भारत के न्यायमूर्ति  यूयू ललित ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की सिफारिश की थी। क्योंकि न्यायमूर्ति यूयू ललित इस साल 8 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।इसकी जानकारी खुद कानून मंत्री किरण रिजिजू ने दी है। न्यायाधीश चंद्रचूड़ का कार्यकाल 2 साल का होने वाला है। इसके बाद वह नवंबर, 2024 में रिटायर होंगे।

दिल्ली के सेंट कोलंबिया स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई करने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इकोनॉमिक्स और मैथमेटिक्स में ऑनर्स किया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी करने के बाद हावर्ड यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री ली है। इसके अलावा जस्टिस चंद्रचूड़ साल 1998 से लेकर साल 2000 तक भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रहे हैं। इतना ही नहीं वह साल 1998 से लेकर साल 2000 तक मुंबई उच्च न्यायालय  में सीनियर एडवोकेट रहे हैं। इस दौरान साल 2000 से अक्टूबर 2013 तकवह बॉम्बे उच्च न्यायालय में जज रहे भी रहे है। साल 2013 से मई 2016 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस रहे। जीके बाद साल 2016 में वह उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बने।

इनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ देश के 16वें चीफ जस्टिस थे। उनका कार्यकाल 22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक रहा है। इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने आपने पिता के 2 फैसले को उच्चतम न्यायालय में पलट भी चुके हैं। उनकी यह चर्चा इसलिए महत्वपूर्ण भी है कि उन्होंने पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के एडल्टरी लॉ व शिवकांत शुक्ला बनाम एडीएम जबलपुर मामले में दिये गये फैसलों को बदला था। न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ की पीठ ने पुरुष समलैंगिकता को खारिज किया था। वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ वाली पीठ ने यौन स्वायत्तता को महत्व दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक,एडीएम जबलपुर वाले केस में तब न्यायालय ने निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी थी। वहीं जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ ने साल 2017 में अपने फैसले में व्यक्ति की निजता को उनके मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है। इस दौरान उन्होंने मन कि व्यक्ति का जीवन व व्यक्तिगत आजादी सरकार द्वारा खारिज नहीं की जा सकती है।

इन्हीं सब फैसले के वजह से वो  हमेशा सुर्खियों में रखते रहे हैं। केरल उच्च न्यायालय द्वारा अशोकन यानी हादिया के शफीन नामक मुस्लिम युवक की शादी को नकारे जाने के बाद मामला जब उच्चतम न्यायालय में पहुंचा तो जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ ने विवाह को वैध ठहराया था। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने तब धर्म के मामले में निर्णय लेने को वयस्कों का अधिकार बताया था। हाल में एक महत्वपूर्ण फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ वाली पीठ ने एक अविवाहित महिला को 24वें हफ्ते में गर्भपात का अधिकार भी दिया है।जो खासा चर्चाओं में रहा है। इस पर उनका मानना था कि एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात की अनुमति न मिलने पर उसकी अस्मिता व आजादी का अतिक्रमण होगा। इसके साथ उन्होंने बच्चे को जन्म देने व न देने के फैसले को संविधान प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ही हिस्सा बताया है। इसकी अनुमति न देना कानून के मकसद के विरुद्ध होगा। इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट का विस्तार भी बताया है।

इसके अलावा कई मामलों में जस्टिस चंद्रचूड़ ने निजता को संवैधानिक अधिकार की संज्ञा दी है। जो कि अनुच्छेद 21 की भावना के ही अनुरूप है। यही वजह है कि जस्टिस चंद्रचूड़ के दिये फैसले  चर्चाओं में रहते है। अब चाहे वो अभिव्यक्ति की आजादी का मामला हो, एलजीबीटीक्यू वर्ग के अधिकारों का मसला हो या अन्य संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मामले- जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक मिसाल पेश किए है।  जस्टिस चंद्रचूड़ की भागीदारी एक अन्य मामले में भी रहा है। उस दौरान समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने पीठ में भागीदारी का रहा है। जिसे उन्होंने औपनिवेशिक सोच का कानून बताया था। इसके अलावा आधार को अधिकांश सुविधाओं के लिये जरूरी बनाने के फैसले पर उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष को निजता के अधिकार के अतिक्रमण का अधिकार नहीं है। इसी तरह सबरीमाला मंदिर में एक आयु विशेष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को खारिज करते हुए उन्होंने इसे छुआछूत की मानसिकता के साथ संवैधानिक नैतिकता का अतिक्रमण करने वाली सोच बताया था। वहीं दिल्ली सरकार व केंद्र के बीच अधिकारों के टकराव में कार्यपालिका का अधिकार राज्यपाल के बजाय चुनी सरकार को दिया। एक गिरफ्तारी के मामले में उन्होंने कहा कि जब तक पर्याप्त प्रमाण न हो, व्यक्ति को हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।

इसके अलावा नोएडा ट्विन टावर गिराने का फैसला जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ ने ही दिया था। नोएडा में सुपरटेक के दोनों टावर 28 अगस्त को गिराया गया। 31 अगस्त को उच्त्तम न्यायालय ने टावरों को तोड़ने का आदेश दिया था। ट्विन टावर के निर्माण में नेशनल बिल्डिंग कोड के नियमों का उल्लंघन किया था। अन्य महत्वपूर्ण फैसले भी किए है। इसलिए विशेषज्ञ कहते है कि देश की मौजूदा हालात में नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी तथा सत्ता के निरंकुश व्यवहार पर अंकुश को लेकर उनसे बड़ी उम्मीदें हैं।

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