दुनिया में जितनी तेजी से जनसँख्या बढ़ रही है उसकी दोगुनी तेजी से दुनिया भर का कबाड़ भी बढ़ता जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से धरती ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में भी कबाड़ निरंतर बढ़ता जा रहा जो धरती के लिए खतरा बन रहा है। अंतरिक्ष में मानव निर्मित कबाड़ के साथ ही उल्कापिंडों के रूप में निकलने वाला कूड़ा भी शामिल है। इस पर विज्ञान पत्रिका- साइंस में नासा के वैज्ञानिकों जे.सी. लिया और एन.एल. जानसन ने एक शोध रिपोर्ट में लिखा है, कि हमारे करीबी अंतरिक्ष में मानव निर्मित नौ हजार से ज्यादा ऐसे टुकड़े पृथ्वी की कक्ष में तैर रहे हैं जो आने वाले वक्त में भयावह रूप ले सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार यदि अब अंतरिक्ष अभियानों पर पूर्ण प्रतिबन्ध भी लगा दिया जाये तो अंतरिक्ष में इतने उपग्रह मौजूद हैं कि उनसे वहां कबाड़ की मात्रा में इजाफा होता ही रहेगा।
कहाँ से आता है अंतरिक्ष में कचरा
जिस प्रकार धरती पर बढ़ रहे कचरे का कारण मानव है उसी प्रकार अंतरिक्ष में बढ़ रहे कबाड़ का कारण भी मानव ही है। मानव अंतरिक्ष के बारे में जानकारी एकत्रित करने के लिए या विभ्भिन ग्रहों और उपग्रहों का अध्ययन करने के लिए कई मिशन के तहत मिसाइल्स व सेटेलाइट आदि भेजती रहती हैं। अंतरिक्ष यात्री भी किसी न किसी उद्देश्य से अंतरिक्ष में जाते रहते हैं जो अंतरिक्ष में फैलने वाले कबाड़ का कारण बनता है क्यूंकि कई बार इनके टूट कर अंतरिक्ष में ही रह जाते हैं या फि सैटलिट्स अपने कक्ष को छोड़ देती हैं. जिससे निरंतर यह कबाड़ बढ़ता जा रहा है। अंतरिक्ष पर रिसर्च करने वाली एक बड़ी संस्था “नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा)” कहती है कि अंतरिक्ष में लगभग 23 हज़ार से भी ज्यादा छोटे-बड़े टुकड़े मौजूद हैं जो पृथ्वी का चक्कर लगा रहे हैं. वहीं 1 सेंटीमीटर आकार के लगभग पांच लाख टुकड़े अंतरिक्ष में मौजूद हैं। ये टुकड़े सिर्फ़ धरती पर रहने वाले लोगों ही नहीं बल्कि पृथ्वी का चक्कर लगाने वाले सेटेलाइट और स्पेस स्टेशन के लिए भी बड़ा खतरा हैं। क्यूंकि मानव द्वारा फैलाया गया अंतरिक्ष का कूड़ा तेजी से धरती पर गिर जाता है जिससे काफी नुक्सान होता है और जिस स्थान पर ये गिरता है उस स्थान पर कई फिट गहरा गड्ढा हो जाता है। इससे मनुष्यों पर भी खतरा बना रहता है क्यूंकि अगर ये किसी व्यक्ति पर गिर जाता है तो व्यक्ति की मृत्यु होने में समय नहीं लगेगा।
अंतरिक्ष से कबाड़ को कम करने के लिए उठाये गए कदम
अंतरिक्ष से स्वच्छ बनाने में सबसे बड़ी भूमिका जापान निभा रहा है। जापान की एक कंपनी एस्ट्रोस्केल इस कार्य को सफल बनाने का प्रयास कर रही है। कंपनी के संस्थापक कहते हैं “अंतरिक्ष में मलबे की समस्या एक पर्यावरणीय समस्या है, सीओटू और समुद्र में फैले प्लास्टिक की तरह। इसलिए वह एक टिकाऊ अंतरिक्ष पर्यावरण को बनाए रखने के लिए योगदान देती रहेगी जिसका लक्ष्य इस प्रोजेक्ट के जरिए अंतरिक्ष के मलबे की समस्या को सुलझाना है। ” इस कंपनी द्वारा एक एक उपग्रह बनाया है जिसे ‘एल्सा- डी’ के नाम से जाना जाता है। यह 2 उपग्रहों से मिलकर बना है जिसमे से ऊपर वाले उपग्रह का भार 175 किलो ग्राम है तो वहीं दूसरे का भार 17 किलोग्राम है, जिसे क्लाइंट सर्विसर उपग्रह भी कहते हैं। इन्हे कुछ समय के लिए अलग भी किया जाता है।इनमे एक चुंबकीय शक्ति होती है जो बेकार सैटेलाइट आदि जैसे मानव निर्मित कबाड़ को इकठ्ठा करने का काम करते हैं। जब यह अपनी क्षमता के अनुसार कूड़े को एकत्रित कर लेती है तो धरती की ओर बढ़ने लगती है लेकिन यह वायुमंडल में पहुँचते यह खुद ही जलकर नष्ट हो जाते हैं।
इस कम्पनी के प्रमुख अध्यक्ष ओकाडा बताते हैं कि “अंतरिक्ष को स्वच्छ बनाने की इस प्रक्रिया में कई तकनिकी व अन्य चुनौतियां सामने आई लेकिन वह इसमें सफल रहे बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि “कुल मिलाकर, एल्सा-डी मिशन बहुत जटिल है, और इस तरह मलबे को खींचने का काम पहले कभी नहीं हुआ। लेकिन हमें उम्मीद है कि ये तकनीकी मुजाहिरे, ग्राहकों के रूप में वाणिज्य जगत और सरकारों को दिखाएंगे कि हमारे पास ये सेवा देने के लिए तकनीकी क्षमताएं हैं। “