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जुमलेबाजी हुई फेल

गत वर्ष कारोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया था तब भारतीय जनता पार्टी ने यह प्रचार जमकर किया कि समय रहते पूरे देश की तालाबंदी करके पीएम ने करोना को परास्त कर डाला है। विश्वभर में भारत सरकार की प्रशंसा की खबरें भी सोशल मीडिया में जमकर परोसी गई, अब लेकिन पासा पलट गया है। जहां ब्रिटेन ने अपने यहां इस महामारी को काफी हद तक संभालने में सफलता पा ली है, अमेरिका में भी इस बार हालात गत् वर्ष के मुकाबले बेहतर हैं। भारत में लेकिन स्थितियां खराब होती जा रही हैं। सच तो यह है कि अब भक्तों की नींद भी, खुमार भी कुुछ टूटने लगा है। प्रश्न पूछे तो जाने लगे हैं कि केंद्र सरकार ने पूरे एक बरस के दौरान इस महामारी से निपटने के क्या उपाय किए? उत्तर नदारत है। आॅक्सीजन की कमी के चलते रोज मौतें हो रही हैं। शमशान और कब्रिस्तान में शवों को जलाने-दफनाने में भी भारी दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे में भाजपा को जवाब देते नहीं बन रहा है। गत् वर्ष पीएम बिजली बंद करने, ताली और थाली बजवाने में व्यस्त रहे। इतनी अदूरदर्शिता की नए आॅक्सीजन प्लांट लगाने तक की केंद्र सरकार को सुझी नहीं। चुनावों में हर कीमत पर विजय हासिल करने की जिद्द के चलते कोविड नियमों को ताक में रख सभी राजनीतिक दलों ने बड़ी-बड़ी सभाएं की। इन सभाओं में बगैर फेस मास्क लगाए पीएम और गृहमंत्री भी उपस्थित रहे।

राजनेताओं का दोगलापन पूरे देश ने इस संक्रमणकाल में देखा। एक तरफ ‘दवाई भी, कड़ाई भी’ का जुमला उछाला गया। मीडिया के माध्यम से बड़ी-बड़ी बात जनता को समझाई गई तो दूसरी तरफ लाखों की संख्या वाली जनसभाओं को आयोजित किया जाता रहा। हरिद्वार में कुंभ को न करवाने की नसीहत नहीं सुनी गई। यहां तक कहने से राजनेता नहीं बाज आए कि कुंभ में स्नान करने से कोरोना भाग जाएगा। अब जबकि हालात काबू से बाहर हो चले हैं तो कुंभ को सांकेतिक रखने की अपील स्वयं पीएम करते नजर आ रहे हैं। चुनाव आयोग पूरी तरह से अपनी स्वतंत्रता को केंद्र सरकार के समक्ष समर्पित कर चुका है। जब भाजपा ने पं बंगाल में प्रचार पर रोकथाम लगाई तब चुनाव आयोग भी एक्शन में आया और सभी प्रकार के प्रचार को रोक डाला।

विश्व का गुरू बनने की बात करने वाले अब यूरोपीय देशों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। कहा जा रहा है कि हमें भी ब्रिटेन के माॅडल को लागू करना चाहिए। लेकिन सब कुछ केवल और केवल ‘बकैती’ तक सीमित है। हमारे डाॅक्ट्र्स, नर्सें आदि अब इस महामारी के चलते थकने लगे हैं। सरकार को चाहिए था कि बीते एक बरस में स्वास्थ का इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करती। अस्पतालों में आॅक्सीजन प्लांट लगवाती। डाॅक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की वाॅर स्केल पर भर्ती करती। ऐसा तो कुछ भी नहीं किया गया, सारा ध्यान ‘ताली-थाली’ सरीखी जुमलेबाजी करने में बीता डाला। समस्या लेकिन राजनेताओं और सरकारों से कहीं ज्यादा जनता के बीच है। इतना सब कुछ देखने-भोगने के बाद भी ‘भक्तों’ की ‘अंधभक्ति’ खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। अभी भी भक्तगण किसी चमत्कार की आस लगाए बैठे हैं। यदि अब भी जनता जनार्दन का मोह नहीं टूटा तो तय समझिए कि देश का भविष्य अंधकारमय ही रहेगा।

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