[gtranslate]
Country

एक दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहे हैं न्यायपालिका और विधायिका!

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 25 नवम्बर को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच कम होते सामंजस्य पर चिंता जताते हुए सांविधानिक संस्थाओं को सीमा नहीं लांघने की नसीहत दी।

उपराष्ट्रपति अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 80वें सम्मेलन में ‘विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण समन्वय-जीवंत लोकतंत्र की कुंजी’ विषय पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और विधायिका एक दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहे हैं। दिवाली में पटाखों पर अदालती आदेश और जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इनकार करने जैसे फैसलों से साफ है कि न्यायपालिका का हस्तक्षेप बढ़ा है।

 

उन्होंने कहा, ‘विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान के तहत परिभाषित अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत काम करने के लिए बाध्य हैं। तीनों अंगों के एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप किए बगैर काम करते रहने से सौहार्द बना रहता है।

 

 

इसमें आपसी सम्मान, जवाबदेही और धैर्य की जरूरत होती है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे कई उदाहरण हैं जब सीमाएं लांघी गईं। ऐसे कई फैसले सुनाए गए जिसमें हस्तक्षेप साफ दिखाई दिया।

लोकतंत्र की गरिमा के लिए तीन ‘डी’ जरूरी

 

विधायिका के कार्यों में आ रही बाधाओं पर चिंता जताते हुए नायडू ने कहा, लोकतंत्र के मंदिर की ‘शालीनता, गरिमा और शिष्टाचार’ को बरकरार रखने के लिए तीन ‘डी’ जरूरी हैं। ये तीन डी हैं- बहस (डिबेट), चर्चा (डिसकस) और फैसला करना (डिसाइड), इनका पालन किया जाना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘स्वतंत्रता के बाद से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने ऐसे कई फैसले दिए जिनका सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों पर दूरगामी असर हुआ। इसके अलावा कई बार हस्तक्षेप कर चीजें ठीक भी कीं। लेकिन यदा-कदा चिंताएं भी जताई गईं कि क्या न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही है।

 

नायडू ने उदाहरण देते हुए कहा, जैसे दिवाली पर पटाखों को लेकर फैसला देने वाली न्यायपालिका कॉलेजियम के माध्यम से जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका को भूमिका देने से इनकार कर देती है।

नायडू ने कहा, कुछ न्यायिक फैसलों से प्रतीत होता है कि संविधान की कुछ तय सीमाओं का उल्लंघन हुआ जिससे बचा जा सकता था। कई बार विधायिका ने भी सीमा रेखा लांघी है। इसे लेकर उन्होंने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के चुनाव को लेकर 1975 में किए गए 39वें सविधान संशोधन का जिक्र  किया।

बयान पर क्यों जताई जा रही है आपत्ति

 

ट्वीटर पर इस बयान को लेकर कुछ लोगों ने आपत्ति भी जताई है। एक यूजर डॉ  संजय सिंघल इस बयान पर तंज कसते हुए लिखतें हैं कि,’ न्यायपालिका धीरे-धीरे कार्यपालिका (विधायिका) के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही है , उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा -पति एम् वैंकेया नायडू जी तो यही कह रहे हैं। दीपावली के पटाखों पर रोक, वाहनों पर प्रतिबन्ध और जजों की नियुक्ति में  कार्यपालिका की भूमिका नकारना बहस का विषय है। ‘

You may also like

MERA DDDD DDD DD