जॉर्ज फर्नांडीस का जन्म 3 जून, 1930 को हुआ था। उनकी मां जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। लिहाजा उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे का नाम जॉर्ज रखा। जॉर्ज अपने 6 बहन-भाई में सबसे बड़े थे। मंगलौर में पले- बढ़े जॉर्ज को 16 साल की उम्र में पादरी बनने की शिक्षा लेने के लिए एक क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा गया। लेकिन उन्हें तो कुछ और ही करना था। उनका मन इस शिक्षा में लगा नहीं और 18 साल की उम्र में वे चर्च छोड़ गए। इसके बाद रोजगार की तलाश में मुंबई पहुंचे। कहा जाता है कि यहां उन्हें जीवन का व्यवहारिक अनुभव हुआ। यहां वे चौपाटी पर सोया करते थे। अभावों में जीते हुए वे सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलनों के कार्यक्रम में भी लागतार भागीदारी करते थे। उस समय मुखर वक्ता डाक्टर राम मनोहर लोहिया उनके लिए प्रेरणा थे। श्रमिक आंदोलनों में भागीदारी करते हुए वर्ष 1950 के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस टैक्सी ड्राइवर यूनियन के अग्रणी नेता बन गए। उनके नेतृत्व में ऐतिहासिक मजदूर आंदोलन हुए। इन आंदोलनों की बदौलत वे गरीबों के हीरो कहे जाने लगे। 1967 में जॉर्ज पहली बार मुंबई से लोकसभा चुनाव में उतरे और उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेता एसके पाटिल को हरा दिया। आपातकाल के दौरान उन्होंने जेल की लंबी सजा काटी। मुजफ्फरनगर से सन् 1977 का लोकसभा चुनाव वे जेल में रहते हुए ही जीते। जॉर्ज वीपी सिंह सरकार में रेल मंत्री तो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री भी रहे। उनके रक्षा मंत्री रहते पोखरण में परमाणु परीक्षण हुआ। छोटी उम्र में ही जनआंदोलनों में सक्रिय रहने के कारण जॉर्ज बेशक कॉलेजों में नहीं पढ़ पाए हों, लेकिन वे बेहद प्रतिभावान थे। 10 भाषाओं के जानकार थे। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन भी बहुत अच्छी बोलते थे। जॉर्ज की क्षमताओं का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे एक समय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे। वाजपेयी के समय में एनडीए के संयोजक के तौर पर वे एनडीए के संकटमोचक माने जाते थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर समता पार्टी का भी गठन किया था। युवा अवस्था में एक हवाई यात्रा के दौरान जॉर्ज की मुलाकात लैला कबीर से हुई थी। दोनों इतने करीब आए कि शादी के बंधन में बंध गए। दोनों का एक बेटा शॉन भी है। जो न्यूयॉर्क में इंवेस्टमेंट बैंकर है।