दिल्ली कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्दारा एक महिला पत्रकार प्रिया रमानी के ख़िलाफ़ दायर आपराधिक मानहानि के मामले में प्रिया रमानी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं को दशकों के बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि यह देखा गया कि सामाजिक स्थिति का व्यक्ति भी यौन उत्पीड़न कर सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि यौन शोषण गरिमा और आत्मविश्वास खत्म कर देता है। ‘किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा किसी के सम्मान की क़ीमत पर नहीं की जा सकती है। समाज को यौन शोषण और उसके पीड़ितों पर उत्पीड़न के प्रभाव को समझना चाहिए।
एडिशनल चीफ़ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट रवींद्र कुमार पांडे ने दोनों पक्षों की मौजूदगी में एक ओपन कोर्ट में यह फ़ैसला सुनाया। 10 फरवरी को दोनों पक्षों के बयान सुनने के बाद कोर्ट ने मामला 17 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया था। प्रिया रमानी ने दावा किया था कि 1993 में मुंबई के ओबरॉय होटल में इंटरव्यू के दौरान उनका यौन उत्पीड़न किया था। पंरतु एमजे अकबर ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था, और प्रिया रमानी के खिलाफ अपराधिक मानहानि केस किया था। लेकिन अब दिल्ली कोर्ट ने प्रिया रमानी को इस मामले में बरी कर दिया है।
क्या था मामला?
प्रिया रमानी ने मी टू अभियान के तहत बीजेपी सरकार में विदेश राज्य मंत्री रह चुके एमजे अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। ऐसा करने वाली वो पहली महिला थी। इसके बाद मी टू अभियान के तहत ही 20 अन्य महिलाओं ने भी उन पर आरोप लगाए थे। आरोप लगाने वाली महिलाओं ने बताया था कि एशियन एज और अन्य अखबारों के संपादक रहते हुए अकबर ने उनका यौन उत्पीड़न किया था। अपने ऊपर लगे आरोपों के बाद एमजे अकबर ने केंद्रीय मंत्रिमड़ल से इस्तीफा दे दिया था। उनके ऊपर आरोप लगाने वाली प्रिया रमानी ने इस्तीफे के बाद अपनी खुशी जाहिर की थी, और ट्वीट कर कहा था कि “अकबर के इस्तीफ़े से हमारे आरोप सही साबित हुए हैं। हमें अब उस दिन का इंतज़ार है, जब हमें कोर्ट में न्याय मिलेगा।”
बता दें सबसे पहले एमजे अकबर का नाम प्रिया रमानी ने ही लिया था। उन्होंने वोग इंडिया पत्रिका के लिए ‘टू द हार्वी वाइन्सटीन ऑफ़ द वर्ल्ड’ नाम से लिखे अपने लेख को री-ट्वीट करते हुए ऑफ़िस में हुए उत्पीड़न के पहले अनुभव को साझा किया था। रमानी ने आरोप लगाया था कि अकबर ने उनके साथ न्यूज के अंदर और बाहर अश्लील हरकतें की थी।