जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) एक बार फिर विवादों में है। इस बार विवाद का कारण छात्रों के लिए तैयार कोर्स के कंटेंट को लेकर है। जिसमें कहा गया है। ‘कट्टरपंथी धार्मिक आतंकवाद’ का एक मात्र रूप ‘इस्लामी जिहादी आतंकवाद’ है।
आतंकवाद निरोधक से जुड़ा ये कंटेंट इंजीनियरिंग में 5वें वर्ष के एमएस के छात्रों के कोर्स का हिस्सा है। इंजीनियरिंग में बीटेक के बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेषज्ञता के साथ एमएस करने वाले छात्र ये कोर्स पढ़ सकते हैं। लेकिन ये कोर्स ऑप्शनल होगा। इस कोर्स के माध्यम से छात्रों को ये पढ़ाया जायेगा कि आतंकवाद से कैसे निबटा जाये। इसमें विश्व की भूमिका क्या है? इसमें विवाद जो हुआ है वह एक कंटेंट को लेकर हुआ है? इसमें एक धर्म विशेष को आतंकवाद से जोड़ा गया है। कट्टरपंथी धार्मिक आतंकवाद को ‘जिहादी आतंकवाद’ बताया गया है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार इस कोर्स के शीर्षक वाले एक चैप्टर ‘कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद और उसके प्रभाव’ में लिखा है कि कट्टरपंथी -धार्मिक आतंकवाद ने 21वीं सदी की शुरूआत में आतंकवादी हिंसा को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई: कुरान की गलत व्यख्या की। इस वजह से जिहादी हिंसा का तेजी से प्रसार हुआ। ये विचार आत्मघाती घटना का महिमामंडन करता है।
इसी कंटेंट में आगे लिखा गया है कि कट्टरपंथी इस्लामी मौलवियों द्वारा साइबरस्पेस के शोषण के परिणामस्वरूप दुनिया भर में जिहादी आतंकवाद का इलेक्ट्रॉनिक प्रसार हुआ है। जिहादी आतंकवाद के ऑनलाइन प्रसार की वजह से धर्म निरपेक्ष गैर इस्लामिक समाजों में भी हिंसा में तेजी आई है। इस पाठ्यक्रम को देखने वाली यूनिवसिर्टी की बॉडी एकेडमिक काउंसिल की बैठक 17 अगस्त को हुई थी। इसी दिन Countering Terrorism, asymmetric Conflict and Strategies for Cooperation among major powers इस शीर्षक वाले एक ऑपशल पेपर को मंजूरी दी गई। इस पर जेएनयू शिक्षक संघ का आरोप है कि जिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में इस विषय की रूपरेखा तैयार हुई है उसके डीन को इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी। जिस बैठक में इस कोर्स को पारित किया गया उसमें चर्चा करने की अनुमति ही नहीं दी गई थी। इंजीनियरिंग के डीन कह रहे हैं चूंकि ये विषय उनके क्षेत्र से बाहर का है इसलिए उन्होंने इसे मंजूरी दे दी।