देश में आए दिन जाति भेदभाव से सम्बन्धित मामले आते रहते हैं। कभी – कभी तो ये भेदभाव किसी निर्दोष की जान तक ले लेते हैं । पिछले दिनों राजस्थान में एक दलित बच्चे की मौत हो गई। कारण यह था कि उसने शिक्षक के घड़े से पानी पी लिया था। गुस्से से शिक्षक ने दलित छात्र को इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। हिन्दू धर्म अपने आप में ही कई जातियों में बटा हुआ है। कही न कही इसी वजह से शोषण और हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रहीं हैं। इस बीच अकसर विवादों में रहने वाली जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू ) के कुलपति ‘शाँतिश्री धुलिपुड़ी पंडित’ द्वारा एक विवादित बयान है। जिस पर देशभर में बबाल शरू हो गया है।
जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के कुलपति के मुताबिक ‘देवी देवताओं की उत्पत्ति को मनुष्य जाति के विज्ञान के हिसाब से लोगों को जानना और समझना चाहिए। मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शूद्र हैं, इसलिए कोई भी महिला यह दावा नहीं कर सकती कि वह ब्राह्मण है या कुछ और ” औरतों को जाति अपने पिता या पति से ही मिली होती है ,उनके अनुसार यह कुछ ऐसा है जो है असाधारण रूप से प्रतिगामी है।
कुलपति के मुताबिक भगवान ब्राह्मण या पंडित नहीं है, बल्कि सबसे ऊंचे दर्जे का क्षत्रिय है ,भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से होने चाहिए, क्योंकि वे श्मशान में बैठते हैं,उनके साथ सांप रहते हैं और वे बहुत कम कपड़े पहनते हैं। उन्होंने कहा कि ‘मुझे नहीं लगता कि ब्राह्मण श्मशान में बैठ सकते हैं।
हिन्दू देवी देवता को लेकर उन्होंने कहा कि ‘माता लक्ष्मी ,शक्ति यहां तक कि भगवान जगन्नाथ भी मनुष्य जाति के विज्ञान के हिसाब से देखा जाए तो उच्च जाति से नहीं आते हैं। कुलपति के कहने अनुसार असल में भगवान जगन्नाथ भी वास्तव में आदिवासी मूल से है । लेकिन अभी भी इस भेदभाव को क्यों जारी रखे हुए हैं। उन्होंने समाज में हो रहे भेदभाव को अमानवीय ठहराया है।
ये व्याख्यान उन्होंने डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के विचारों को याद करते हुए कहा ‘ यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम बाबासाहेब के विचारों पर पुनर्विचार कर रहे हैं, कुलपति के मुताबिक आधुनिक भारत का कोई भी ऐसा नेता नहीं रहा है जो इतना महान विचारक हो । उन्होंने हिन्दू धर्म को लेकर कहा कि ‘हिंदू धर्म एक धर्म न होकर जीवन का एक तरीका है। अगर यह जीवन का तरीका है तो हमें इसकी आलोचना से नहीं डरना चाहिए। वहीं समाज में अंतर्निहित, संरचित भेदभाव पर हमें जगाने वाले पहले इंसान में से एक गौतमबुद्ध भी रहे है।
कुलपति नहीं कुलगुरु शब्द का किया जाए प्रोयग
कुछ दिनों पहले लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द का प्रयोग किया था। तब विवाद खड़ा हो गया था। जिसके बाद चौधरी ने सफाई देते हुए कहा था कि उनकी जुबान फिसल गयी थी। इसके बाद इस विवाद ने संवैधानिक पदों के लिए लैंगिक रूप से और अधिक तटस्थ शब्दों के इस्तेमाल को लेकर बहस शुरू कर दिया गया है।
जातियों में होने वाले भेद भावों के साथ जेंडर इक्वैलिटी को तटस्थ करने वाले शब्दों पर भी जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की कुलपति ने जोर दिया है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में कुलपति की जगह कुलगुरु शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। उनके कहने अनुसार अधिक लैंगिक तटस्थता लाने के लिए उन्होंने यह प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव पर आने वाले 14 सितम्बर को कार्य परिषद में विचार विमर्श किया जा सकता है ।
केवल जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में ही नहीं बल्कि अधिकतर यूनिवर्सिटी में कुलपति शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। चाहे उस पद पर रहने वाला पुरुष हो या स्त्री।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू ) की कुलपति ‘शंतिश्री धुलिपुड़ी पंडित’ ने भीम राव अम्बेडकर स्मारक के सामने होने वाले व्याख्यानमाला के दौरान कहा कि जब वो विश्वविद्यालय में आई थी तो हर जगह उनके लिए “ही” का इस्तेमाल किया जा रहा था। जो की अंग्रेजी में पुरुषों के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है।लेकिन उन्होंने इसे ‘शी’ कर दिया है। तब से दस्तावेजों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन बावजूद इसके लोग उनके बारे में बात करते थे तो भी ‘ही’ लिखते थे। इसलिए वो कुलपति की जगह कुलगुरु करना चाहती हैं ।