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बिहार में ‘जय भीम-जय मीम’ बदल सकता है राजनीतिक समीकरण 

बिहार विधानसभा चुनाव में इस साल 243 सीटों पर चुनाव होने वाले है। ऐसे में सबकी नज़र मतदाताओं पर टिकी है। अभी से सभी पार्टियाँ मतदाताओं को अपनी और आकर्षित करने के लिए दूसरे राजनीतिक दलों के साथ गोटियाँ फिट करने में लगी हैं। इसी दौरान बिहार में ‘जय भीम-जय मीम’ का गठजोड़ किए जाने की चर्चा जोरो पर है। इसके लिए जीतन राम मांझी और असदुद्दीन ओवैसी का मेल मिलाप चर्चा में है।

‘जय भीम-जय मीम’ (दलित-मुस्लिम गठजोड़) ही वह फॉर्मूला है जिसके आधार पर असदुद्दीन ओवैसी बिहार में अपनी पकड़  मजबूत  करना चाहते हैं। अगर जीतन राम मांझी के साथ ओवैसी का गठबंधन होता है तो दलित और मुस्लिम का एक नया समीकरण होने कि सम्भावना है। गौरतलब है कि ओवैसी के एआईएमआईएम ने सीमांचल में मतदाताओं के बीच पैठ बना ली है।

ऐसे तो बिहार में ज्यादातर मुस्लिम आरजेडी के वोटर माने जाते  हैं, लेकिन ओवैसी के मजबूत होने से निश्चित तौर पर आरजेडी को झटका लग सकता है। यही बात जेडीयू के साथ भी मानी जा रही है क्योंकि हाल के दिनों में सीमांचल के इलाके में जेडीयू ने मुस्लिम वोटरों के बीच बहुत ज्यादा पैठ बनाई है। कहा जाने लगा है कि बिहार में दलित-मुस्लिम गठजोड़ बड़ा फैक्टर बन सकता है।

दरअसल, कांग्रेस के जमाने में मुस्लिम और दलित का समीकरण प्रभावी रहा है। लेकिन हाल के सालों में ऐसा कोई समीकरण सामने नहीं आया था। अब अगर यह गठबंधन हो गया तो महागठबंधन के साथ-साथ एनडीए को भी नुकसान पहुंच सकता है। चर्चा है कि इसके चलते बिहार के सियासी समीकरण बदल सकते है।

सीटों के समीकरण के लिहाज से भी देखें तो सीमांचल इलाके के तहत आने वाली 24 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की आबादी बड़ी है और उसका असर भी अधिक है। कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज जिलों में जिस तरह एआईएमआईएम ने अपना विस्तार किया है। ऐसे में दलित-मुस्लिम मतों को एकजुट करने में औवैसी और मांझी सफल रहते हैं तो बिहार के सियासी समीकरण बहुत ज्यादा हद तक बदल सकते हैं।

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