[gtranslate]
Country

जाबेदा बेगम जिसने 15 दस्तावेज दिए मगर नहीं माना गया देश का नागरिक, कहा उम्मीद खत्म मौत करीब

जाबेदा बेगम जिसने 15 दस्तावेज दिए मगर नहीं माना गया देश का नागरिक, कहा उम्मीद खत्म मौत करीब

नागरिकता संशोधन कानून के लागू होने पर पूरे देश में प्रदर्शन हो रहा है। खासकर असम में हुए एनआरसी को मिसाल बताकर देश भर में विरोध हो रहे हैं। जबकि गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की एनआरसी मामले इन दोनों के बोल अलग-अलग हैं। एनआरसी पर एक ने कहा कि इस बारे में अभी सोचा नहीं गया है। और एक कहते हैं कि एक इंच भी इस बात से पीछे नहीं हटेंगे। फिर प्रधानमंत्री ने ये कहा कि हमारी सरकार के किसी भी मंच पर एनआरसी पर बात नहीं हुई। उन्होंने इसे नहीं लाने को लेकर कुछ भी नहीं कहा। फिर अमित शाह ने कहा कि फ़िलहाल हम इसे नहीं लाएंगे। लेकिन इस ‘फ़िलहाल नहीं’ का मतलब क्या लिया जाए। फिलहाल नहीं तो कभी न कभी तो लाई ही जाएगी। तब क्या होगा, कैसा होगा।

लोग प्रदर्शन इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये क़ानून धर्म के आधार पर बना है और संविधान के समानता के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है। असम में एनआरसी लागू किए जाने पर वहां के लोगों की स्थिति का हवाला देकर एकजुट खड़े हैं। असम में लोग नागरिकता साबित नहीं कर पाए। उन्हें डिटेन्शन सेंटरों में जाना पड़ा रहा है। जिसे सरकार खारिज करते आ रही है। इसी बीच असम से एक ऐसा मामला सामने आया जिसके बारे में सुनकर हर कोई दंग है।

50 वर्षीय जाबेदा बेगम अपनी और अपने पति की नागरिकता साबित नहीं कर पाई है। उन्होंने 15 तरह के दस्तावेज़ पेश किए। लेकिन वो फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में हार गईं। इसके बाद उन्होंने हाइकोर्ट में अपील की। वहां भी केस हार गई। हाई कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि बैंक खातों का विवरण, पैन कार्ड और भूमि राजस्व रसीद जैसे दस्तावेजों का इस्तेमाल नागरिकता साबित करने के लिए नहीं किया जा सकता है। जबकि असम में प्रशासन द्वारा स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में भूमि और बैंक खातों से जुड़े दस्तावेजों को रखा गया है।

जबेदा बेगम गुवाहाटी से लगभग 100 किलोमीटर दूर बक्सा जिले में रहती है। अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली सदस्य हैं। उनके पति काफी समये से बीमार हैं। इनकी तीन बेटियां थीं। जिनमें से एक की हादसे में मौत हो चुकी है। एक बेटी लापता हो गई है। जिसकी अब तक कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। सबसे छोटी बेटी का नाम अस्मिना है। वो पांचवीं कक्षा में पढ़ती है। जाबेद अपनी छोटी बेटी के भविष्य को लेकर ज्यादा परेशान रहती है।

जावेदा ने कहा कि उसकी कमाई का लगभग पूरा हिस्सा कानूनी लड़ाई में खर्च हो गया है, ऐसे में उसकी बेटी को कई बार भूखे ही सोना पड़ रहा है। मुझे चिंता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा? मैं खुद के लिए उम्मीद खो चुकी हूं। डेढ़ सौ रुपए दिहाड़ी में कैसे चलेगा। ऊपर से नागरिकता चली गई है। जाबेदा रोती हैं और कहती हैं, “मेरे पास जो था, वह मैं खर्च कर चुकी हूं। अब मेरे पास कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए संसाधन नहीं बचे हैं।”

जावेदा बेगम को ट्रिब्यूनल ने 2018 में विदेशी घोषित कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने पिछले आदेशों में से एक का हवाला देते हुए कहा था कि उनके द्वारा जमा किए गए कागजात – भूमि राजस्व रसीद, बैंक दस्तावेज और पैन कार्ड को नागरिकता का सबूत मानने से इंकार कर दिया।

जाबेदा बेगम ने ट्रिब्यूनल के सामने अपने पिता जाबेद अली के साल 1966, 1970, 1971 की मतदाता सूचियों सहित 15 दस्तावेज जमा किए थे। लेकिन ट्रिब्यूनल का कहना है कि वह अपने पिता के साथ उसके लिंक के संतोषजनक सबूत पेश नहीं कर पाई हैं। जन्म प्रमाण पत्र की जगह उसने अपने गांव के प्रधान से एक प्रमाण पत्र बनवाया था । वह भी पेश किया। इस प्रमाण पत्र में उसके परिजनों का नाम और जन्म का स्थान था। लेकिन ट्रिब्यूनल ने इसे मानने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने इन कागजों को खारिज कर दिया।

जबकि जाबेदा ने गांव के प्रधान गोलक कालिता को गवाह के तौर पर ले कर गई। जहां गोलक कलिता ने गवाही दी और कहा कि मैं उसे जानता हूं। क़ानूनी तौर पर उनकी रिहाइश की पुष्टि भी की। हम गांव के लोगों के स्थायी निवास के तौर पर उन्हें सर्टिफिकेट देते हैं। ख़ासतौर पर लड़कियों को जो शादी के बाद दूसरी जगह चली जाती हैं। पति-पत्नी का एक-एक पल डर में बीत रहा है। जाबेदा के पति का कहना है, जो भी था हमने खर्च कर दिया। कुछ काम नहीं आया। एनआरसी में भी नाम नहीं आया। उम्मीद ख़त्म हो रही है, मौत क़रीब आ रही है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD