देश के प्रमुख रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में थे। वह कांग्रेस में जाकर प्लान पीके लाने का दावा कर रहे थे। इसके तहत कांग्रेस 2024 का लोकसभा चुनाव बड़े जोर शोर से लड़ने का दावा भी करने लगी थी। तब कहा जाने लगा था कि प्रशांत किशोर कांग्रेस के तारणहार बनेंगे। लेकिन ऐन वक्त पर पीके बैक गियर में दिखाई दिए।
कांग्रेस से बात नहीं बनने के बाद अब पीके बिहार पर ध्यान लगाते दिख रहे है। बिहार में वर्षो से अपनी राजनीतिक तलाश करने में जुटे पीके अब नया कार्यक्रम लेकर सामने आए है। जिसमे वह बिहार में 3000 किलोमीटर तक पदयात्रा निकालेंगे। यह यात्रा 2 अक्टूबर को पश्चिमी चंपारण से गांधी आश्रम से शुरू होगी। इस यात्रा के तहत पीके बिहार के लोगो के मन को टटोलने के लिए पैदल यात्रा पर होंगे। इस दौरान वह समस्याए सुनेंगे। इसके साथ ही बिहार के लोगो की क्या अपेक्षाएं है इनपर अभी तक कोई सरकार खरी नहीं उत्तरी है ऐसी अपेक्षाओं से भी वह रूबरू होंगे। यह पदयात्रा गांव गांव जाएगी। जिसमे 8 महीने से एक साल तक का समय लग सकता है।
बिहार में प्रशांत किशोर कोई पहली बार ऐसा दांव नहीं लगा रहे हैं। बल्कि इससे ठीक दो साल पहले उन्होंने एक कार्यक्रम शुरू किया था। यह कार्यक्रम उन्होंने नीतीश कुमार से अलग होने के बाद शुरू किया था। इस कार्यक्रम को लेकर प्रशांत किशोर ने पटना में पुरे लाव लश्कर के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और दावा किया कि वो बिहार में युवाओं की एक बड़ी फौज तैयार करेंगे जो सियासी तौर पर राज्य की किस्मत बदलेगी। कार्यक्रम का नाम रखा गया था “बात बिहार की”।
बात बिहार की’ की कार्यक्रम शुरू करते समय प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि वह राज्य की की 8800 पंचायतों में लोगों को उनकी बात सुनने के लिए चुनेंगे। इसमें खासतौर पर युवाओं पर फोकस किया जायेगा । साथ ही उन्होंने बिहार की किस्मत बदलने का भी दावा किया था। लेकिन 2 साल पहले की बात और आज का समय देखा जा सकता है। प्रशांत किशोर आज ‘बात बिहार की’ पर कोई चर्चा ही नहीं करना चाहते है । यह तक की बात बिहार की शुरू करने के ठीक बाद लापता हो गए।
इसके बाद प्रशांत किशोर दिल्ली और बंगाल चुनावों में व्यस्त हो गए । इस तरह से उनकी ‘बात बिहार की’ कार्यक्रम का पता ही नहीं चला कि वह किस डिब्बे में बंद हो गया। बिहार की राजनीति में 2014 का दौर वो दौर था जब भाजपा में प्रशांत किशोर की एंट्री हुई थी। तब दावा किया गया था कि प्रशांत किशोर ने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए चाय पर चर्चा और मन की बात को पर कार्यक्रम चलाया था। उसके बाद 2015 में प्रशांत किशोर नीतीश के साथ जुड़े।
तब उन्हें नितीश ने अपनी पार्टी जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया था। उस दौरान बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी थी । इसके बाद जब नीतीश फिर से भाजपा के साथ हुए तो प्रशांत किशोर उनसे अलग हो गए । इसके बाद कांग्रेस से पॉलिटिकल डील शुरू की गई। यह डील फेल होने के बाद प्रशांत किशोर ने एक बार फिर अपने गृह राज्य बिहार का रुख किया है। अब देखना यह है कि वह पैदल यात्रा के बहाने किस तरफ अपना राजनीतिक तीर चला रहे है ?