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इसरो साइंटिस्ट ने कहा, कभी जहर देकर, तो कभी घर में सांप छोड़कर हुई हत्या की कोशिश

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के सीनियर एडवाइजर और शीर्ष वैज्ञानिक डाॅ. तपन मिश्रा ने आरोप लगाया है कि उन्हें तीन साल में तीन बार जहर देकर मारने की कोशिश की गई। डा  मिश्रा 31 जनवरी 2021 को रिटायर हो रहे हैं। इससे पहले 5 जनवरी को ‘सोशल मीडिया पोस्ट’ में उन्होंने खुलासा किया कि बाहरी लोग नहीं चाहते कि (इसरो), इसके वैज्ञानिक आगे बढ़ें और कम लागत में टिकाऊ सिस्टम बनाए जाएं। तपन मिश्रा ने इसे तंत्र की मदद से किया अंतरराष्ट्रीय जासूसी हमला कहा है। उन्होंने डाॅ विक्रम साराभाई की रहस्यमय मौत का हवाला देकर केंद्र सरकार से जांच की मांग की है। डाॅ  मिश्रा के मुताबिक, ‘बहुत दिन यह रहस्य छुपाया जा रहा था। लेकिन अब इसे सार्वजनिक करना पड़ रहा है। पहली बार 23 मई 2017 को बेंगलुरु मुख्यालय में प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान आर्सेनिक ट्राइआक्साइड दिया था। लंच के समय डोसे की चटनी में मिलाया गया था। ताकि लंच के बाद मेरे भरे पेट में रहे। फिर शरीर में फैलकर ब्लड क्लाटिंग का कारण बने और हार्ट अटैक से मौत हो जाए, लेकिन मुझे लंच अच्छा नहीं लगा। इसलिए चटनी के साथ थोड़ा सा डोसा खाया।

इस कारण केमिकल पेट में नहीं टिका। इसके असर से दो साल बहुत ब्लीडिंग हुई। वर्ष 2019 और 2020 में भी मारने की कोशिश की गई। सीनियर साइंटिस्ट के मुताबिक, दूसरा हमला चंद्रयान-2 की लाॅन्चिंग के दो दिन पहले हुआ था। 12 जुलाई 2019 को हाइड्रोजन साइनाइड से मारने की कोशिश हुई। हालांकि, (एनएसजी) अफसर की सजगता से जान बच गई। मेरे हाईसिक्योरिटी वाले घर में सुरंग बनाकर जहरीले सांप छोड़े गये। तीसरी बार सितंबर 2020 में आर्सेनिक देकर मारने की कोशिश हुई। इसके बाद मुझे सांस की गंभीर बीमारी, फुंसियां, चमड़ी निकलना, न्यूरोलाजिकल और फंगल इंफेक्शन समस्याएं होने लगीं।  एम्स दिल्ली के डाॅ सुधीर गुप्ता ने कहा कि उनके करियर में आर्सेसिनेशन ग्रेड मालिक्यूलर ‘एएस 203’ से बचने का यह पहला मामला है। जून 2017 में ही एक डायरेक्टर साथी और गृह मंत्रालय के अधिकारी ने जहर दिए जाने को लेकर आगाह किया था।

12 जुलाई 2019 को हाइड्रोजन साइनाइड से मारने की कोशिश हुई। हालांकि, (एनएसजी) अफसर की सजगता से जान बच गई। मेरे हाईसिक्योरिटी वाले घर में सुरंग बनाकर जहरीले सांप छोड़े गये। तीसरी बार सितंबर 2020 में आर्सेनिक देकर मारने की कोशिश हुई। इसके बाद मुझे सांस की गंभीर बीमारी, फुंसियां, चमड़ी निकलना, न्यूरोलाजिकल और फंगल इंफेक्शन समस्याएं होने लगीं।  एम्स दिल्ली के डाॅ सुधीर गुप्ता ने कहा कि उनके करियर में आर्सेसिनेशन ग्रेड मालिक्यूलर ‘एएस 203’ से बचने का यह पहला मामला है

मकसद क्या :  डाॅ  मिश्रा कहते हैं कि ऐसे हमलों का उद्देश्य सैन्य और कमर्शियल महत्व के सिंथेटिक अपर्चर रडार बनाने वाले वैज्ञानिकों को निशाना बनाना या रास्ते से हटाना होता है। मैंने अपनी पीड़ा सीनियर्स से कही।  पूर्व चेयरमैन किरण कुमार ने सुना, लेकिन डाॅ कस्तूरीरंगन और माधवन नायर ने नहीं। इसके बाद भी हत्या की कोशिशें जारी रहीं। अहमदाबाद स्थित इसरो के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (सेक) में 3 मई 2018 को धमाका हुआ था, जिसमें मैं बच गया। धमाके में 100 करोड़ रुपए की लैब नष्ट हो गई। जुलाई 2019 में एक भारतीय-अमेरिकी प्रोफेसर मेरे आफिस आए। मुंह न खोलने के एवज में मेरे बेटे को अमेरिकी इंस्टीटयूूट में दाखिले का आफर दिया। मैंने इनकार किया तो मुझे सेक डायरेक्टर के पद से हाथ धोना पड़ा। डाॅ मिश्रा ने कहा है कि दो साल से घर में कोबरा, करैत अन्य जहरीले सांप मिल रहे हैं। इससे निपटने के लिए हर 10 फुट पर कार्बोलिक एसिड की सुरक्षा जाली है। इसके बावजूद सांप मिल रहे हैं। एक दिन घर में एल अक्षर के आकार की सुरंग मिली, जिससे सांप छोड़े जा रहे थे। ये लोग चाहते हैं कि मैं इससे पहले मर जाऊं या मारा जाऊं, तो सभी रहस्य दफन हो जाएंगे। देश मुझे और मेरे परिवार को बचा ले।

चार साल में मरे 11 परमाणु वैज्ञानिक :  देश में चार साल कै दौरान 2009 से 2013 तक तकरीबन 11 परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो चुकी है। विभाग की प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों में कार्यरत रहे। आठ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की विस्फोट में या समुद्र किनारे में डूबने या फांसी पर लटकने से मौत हो चुकी है। हरियाणा के रहने वाले राहुल सेहरावत के 21 सितंबर के आरटीआई आवेदन के जवाब में विभाग ने कहा कि परमाणु ऊर्जा निगम के भी तीन कर्मचारियों की इस अवधि में रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई। इसमें से दो ने कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी और एक की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। बार्क, ट्रांबे में कार्यरत सी-समूह के दो वैज्ञानिकों के शव 2010 में उनके घरों पर लटके हुए मिले। फिर रावतभाटा में इसी दर्जे का एक वैज्ञानिक 2012 में अपने आवास पर मृत मिला। बार्क के एक मामले में पुलिस का दावा है कि उन्होंने लंबी बीमारी की वजह से खुदकुशी कर ली और मामला बंद कर दिया गया। बाकी मामलों में अब भी जांच चल रही है। बार्क, ट्रांबे की रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला में 2010 में दो शोधार्थियों की रहस्यमयी तरीके से लगी आग में मृत्यु हो चुकी है। एफ-ग्रेड के एक वैज्ञानिक की मुंबई में उनके आवास पर हत्या कर दी गई।

सूचना मिला कि उनकी गला दबाकर हत्या हुई है। लेकिन अभी तक आरोपी का पता नहीं चला है। आरआरसीएटी के डी-ग्रेड के एक वैज्ञानिक ने भी कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी। पुलिस ने मामले को बंद कर दिया। वर्ष 2013 कलपक्कम में कार्यरत एक और वैज्ञानिक कथित तौर पर समुद्र में कूदकर जान दी थी। मुंबई के एक वैज्ञानिक ने भी अचानक फांसी पर लटककर अपनी आत्महत्या कर ली थी। पुलिस निजी कारणों को हवाला देकर मृत्यु घोषित कर दिया। वैज्ञानिक ने कथित तौर पर कर्नाटक के करवर में काली नदी में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। पुलिस ने जांच-पड़ताल कर अपनी निजी परेशानी के कारण बताई।

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