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इंसाफ के इंतजार में इशरत

वर्ष 2020 में दिल्ली में हुए धार्मिक दंगों के बाद गिरफ्तार की गईं कांग्रेस से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता इशरत जहां को अंततः दो बरस बाद जेल से रिहाई तो मिल गई है लेकिन इंसाफ अभी तक नहीं मिला है। दिल्ली पुलिस की मानें तो इशरत जहां दंगों के साजिशकर्ताओं में से एक हैं लेकिन न्यायालय ने उन्हें जमानत देते हुए पुलिस के तर्कों को न मानते हुए इशरत को जमानत पर रिहा कर दिया है

क्या राजनीतिक जुड़ाव होना गलत है? इस पर बहस होनी चाहिए कि यूएपीए का आखिर आधार क्या है? और इशरत जहां ने क्या गलत किया?

तीन वर्षों से जेल की लगातार यातना, तीन गंभीर आरोप पत्रों से सामना, साथी कैदियों द्वारा बर्बर पिटाई, शादी जैसा अहम फैसला, जानलेवा वायरस कोविड के सिम्पटम्स और इन सब के साथ-साथ, जेल में कैद रहने की लगातार बढ़ती अवधि, यह यात्रा है पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां की। इशरत जहां को फरवरी 2020 दिल्ली दंगों की साजिश रचने के मामले में दर्ज, एकएफआईआर के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।

हालांकि उस मामले में 21 मार्च 2020 को उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया था। लेकिन, उसी दिन उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और आरोप लगाया गया कि ‘दिल्ली में जो दंगे हुए वो एक पूर्व-नियोजित साजिश थे’ और ‘इन दंगों को फैलाने की
साजिश जेएनयू छात्र उमर खालिद और उसके सहयोगियों द्वारा रची गई थी और हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि इसमें इशरत जहां भी शामिल थीं।’

सितंबर 2020 को, इस मामले में 17,000 से अधिक पन्नों की एक चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस चार्जशीट में कहा गया कि इशरत जहां का अपने चुनाव क्षेत्र में एक व्यापक जनाधार है और इसी के चलते वो एक खास सामूहिक लामबंदी करने में कामयाब रहीं। आरोप लगे कि महिला चेहरा होने की आड़ में और कथित रूप से उन्होंने अपने ऊंचे पद का दुरूपयोग कर दंगों को अंजाम देने में मदद की। चलिए थोड़ा पीछे जाकर पहले मामले को समझने की कोशिश करते हैं।

क्या था पूरा मामला?

दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी। इशरत जहां के अलावा, कार्यकर्ता खालिद सैफी, उमर खालिद, जेएनयू के छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य पर भी न्।च्। कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में इशरत जहां को 26 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था। तब से इशरत जहां जेल में ही बंद थीं।

पहले भी मिल चुकी है जमानत
अदालत ने नवंबर 2020 में अपराध की गंभीरता को देखते हुए इशरत जहां को जमानत देने से इनकार कर दिया था। इनमें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत दर्ज मामले शामिल थे। इशरत जहां मंडोली जेल में कोविड-19 के प्रकोप और अन्य चिकित्सा संबंधी मुद्दों का हवाला देते हुए जमानत मांग रही थीं। इससे पहले उसे शादी के लिए 10 दिन की अंतरिम जमानत दी गई थी और गवाहों को प्रभावित नहीं करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने का निर्देश दिया गया था।

दंगे के पीछे की बहस
वर्ष 2019 में लाए गए नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना और बर्बरता के शिकार हुए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी लोगों को भारत की नागरिकता देने की बात की गई थी। सीएए (ब्।।) के तहत धर्म के आधार पर नागरिकता देने के खिलाफ पूरे देश में मोदी सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन हुए थे।

राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर पूरी क्षमता के साथ अपनी सियासी रोटियां सेकीं थीं। सीएए के विरोध में खड़े भारत के बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने पहले भी चेताया था कि इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनपीर) के साथ जोड़कर देश के अल्पसंख्यकों यानी मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जाएगा।

इस कानून के आने के बाद से हो भी यही रहा था, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में दंगे भड़क गए और इनमें कई लोगों की मौत हुई। इस आंच से देश की राजधानी दिल्ली तो कई दिनों तक धूं-धूं करती हुई जलती रही, दुकान जल रहे थे, घर जल रहे थे और कुछ केसों में तो इंसान का जिंदा मांस जल रहा था। फरवरी 2020 में जो शक्ल दिल्ली दंगे का रहा उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। उधर तथाकथित कुछ नेता यह आरोप लगाते रहे कि बुद्धिजीवी वर्ग को सीएए से ज्यादा समस्या भाजपा से है और यही कारण है उन्होंने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया।

खैर, दंगों से पीड़ित मुस्लिम समुदाय के लोगों में डर जरूर भर दिया गया कि इस कानून के लागू होते ही अल्पसंख्यकों के तमाम के अधिकार छीनकर उन्हें डिटेंशन कैम्प में डाल दिया जाएगा। लोगों को देश से बाहर कर दिया जाएगा। हालांकि करीब पौने दो साल बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। लेकिन दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ शुरू हुए विरोधों का अंत दंगों की शक्ल में हुआ, जैसा एक लोकतांत्रिक देश में नहीं होना चाहिए था। जब यह सब हो रहा था तो उधर दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 के दंगों से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था। पुलिस का तर्क था कि कई जानकारियां ‘संवेदनशील’ हैं इसलिए उन्हें वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया जा सकता। दिल्ली पुलिस ने सीपीआई (एम) की नेता वृंदा करात की हाईकोर्ट में दायर याचिका के जवाब में 16 जून 2020 को ये बात कही थी।

ऐसे में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की जांच से जुड़ी जानकारियां जुटाना एक चुनौती रही है लेकिन कुछ मीडिया संस्थानों ने जांच से जुड़े कोर्ट के ऑर्डर और एफआईआर- चार्जशीट जैसे दस्तावेज जुटाकर जांच के तौर-तरीकों को समझने की कोशिश जरूर की। 23 फरवरी से 26 फरवरी 2020 के बीच हुए दंगों में लगभग 53 लोगों की मौत हो गई थी। 13 जुलाई को हाईकोर्ट में दायर दिल्ली पुलिस के हलफनामे के मुताबिक, मारे गए लोगों में से 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। जब सब कुछ धर्म और विशेष समुदाय के आधार पर हो रहा था तो मरने वाले लोगों के आंकड़े भी ऐसे ही आने थे। इस पूरी घटना में एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 751 एफआईआर दर्ज की। अब इशरत जहां पर फिर लौटते हैं। दिल्ली की एक अदालत ने वर्ष 2020 के दिल्ली दंगा मामले से जुड़े व्यापक साजिश मामले में 21 फरवरी 2022 को कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां को जमानत दे दी है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने जमानत आदेश पारित किया।
जमानत आदेश में, अदालत ने उल्लेख किया कि आरोप पत्र में विभिन्न समूहों और व्यक्तियों द्वारा एक ‘पूर्व नियोजित साजिश’ का आरोप लगाया गया है, जिन्होंने हिंसा भड़काने के लिए ‘चक्का-जाम और पूर्व-नियोजित विरोध प्रदर्शनों’ के माध्यम से व्यवधान पैदा किया। हालांकि अदालत ने कहा कि आरोप पत्र या गवाहों के बयान के अनुसार, इशरत जहां वह इंसान नहीं थी जिसने चक्का-जाम का विचार सामने रखा’ और न ही वह किसी भी व्हाट्सएप समूह या संगठन की सदस्य थी। अदालत ने इशरत जहां को बिना अनुमति के शहर नहीं छोड़ने, सबूतों से छेड़छाड़ या जांच को प्रभावित नहीं करने का निर्देश दिया। अदालत ने आरोपी को जांच में सहयोग करने और सुनवाई की हर तारीख पर अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में तनहा, नरवाल तथा कालिता को मामले में जमानत दी थी और कहा था कि सरकार ने असंतोष को दबाने की जल्दबाजी में प्रदर्शन के अधिकार तथा आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा को धूमिल कर दिया।

मुझे यकीन है कि इंसाफ मिलेगा
‘दि संडे पोस्ट’ से बात करते हुए, इशरत जहां ने कहा कि ‘उन्हें यकीन था कि एक दिन उन्हें न्याय मिलेगा। मेरे हाथों की मेंहदी भी नहीं छूटी थी कि मुझे फिर जेल जाना पड़ा। यह सब कितना कष्टदायी हो सकता है, खासकर जब मैं जेल के भीतर गई तो एक विशेष मानसिकता वाले कट्टर सोच लिए कैदियों ने मुझे पीटा। यह सब झेलते हुए मैं जानती थी इस वक्त भी कि कानून अंधा हो सकता है पर इंसाफ अंधा नहीं हो सकता। मुझे हर स्तर पर जाकर प्रताड़ित किया गया, मैं जेल से निकलने के बाद भी कैदी जैसा ही महसूस कर रही हूं क्योंकि मुझ पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद हैं और फिर भी मैंने अपने जीवन के तीन साल मानसिक और शारिरिक रूप से शोषित होकर बिताए। पर मैं अन्याय और इंसाफ के लिए लगातार अपना संघर्ष हमेशा जारी रखूंगी।

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