मुम्बई के नजदीक मुम्ब्रा की रहने वाली 19 वर्षीय इशरत जहां और उसके साथी जावेद शेख उर्फ प्रनेश पिल्लई, अमजदली अकबरली राणा, जीशान जौहर 15 जून 2004 को गुजरात पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए थे।
पुलिस का दावा था कि मुठभेड़ में मारे गए चारो लोग आतंकवादी थे और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की योजना बना रहे थे। हालांकि, हाईकोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची की मुठभेड़ फर्जी था,जिसके बाद सीबीआई ने कई पुलिस कर्मियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे।
हाल की बात करें तो बुधवार,31 मार्च 2021 को इसरत जहां एनकाउंटर मामले में सीबीआई अदालत ने तीन पुलिस अधिकारियों को बरी कर दिया है। अदालत ने क्राइम ब्रांच के तीन अधिकारी गिरिश सिंघल, तरुण बारोट और अंजु चौधरी (अब सेवानिवृत्त) को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। सीबीआई अदालत ने कहा कि इशरत जहां लश्कर-ए-तैयबा की आंतकी थी, इस खुफिया रिपोर्ट को नकारा नहीं जा सकता, इसलिए तीनों अधिकारियों को निर्दोष बताते हुए बरी किया जाता है। यह अंतिम तीन पुलिसकर्मी थे जिन पर हत्या, आपराधिक साजिश, अपहरण और 19 साल की लड़की को अवैध हिरासत में रखने का आरोप लगा था।
अधिकारियों ने किया अपने कर्तव्य का पालन : अदालत
सीबीआई विशेष अदालत ने कहा, अधिकारियों ने अपने कर्तव्य का पालन किया है।सीबीआई ने 20 मार्च को अदालत को सूचित किया था कि राज्य सरकार ने तीनों आरोपियों के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अक्तूबर, 2020 के आदेश में टिप्पणी की थी उन्होंने (आरोपी पुलिस कर्मियों) ‘आधिकारिक कर्तव्य के तहत कार्य’ किया था, इसलिए एजेंसी को अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत है।
इसरत जहां के कथित मुठभेड़ मामले में ये तीनों सेवानिवृत्त अधिकारी आरोपी थे। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि राज्य सरकार ने उनके खिलाफ अभियोजन चलाने की सीबीआई को मंजूरी नहीं दी है, जो सीआरपीसी की धारा 197 के तहत जरूरी है। लिहाजा उनके खिलाफ मामले की सुनवाई को बंद किया जा सकता था।
सीआरपीसी की धारा 197 के तहत ड्यूटी के दौरान की गई कार्रवाई के लिए लोक सेवक पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी लेना जरूरी है। अदालत ने पहले इसी मामले में आरोप मुक्त करने का अनुरोध करने वाली उनकी अर्जियों को खारिज कर दिया था।
इस केस में थे कुल आठ आरोपी
इसरत जहां मुठभेड़ मामला एक सत्र अदालत में आठ आरोपियों के खिलाफ किया गया था। अभियुक्त पुलिस और शिकायतकर्ता में से एक, जेजी परमार की मामले की कार्रवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी। सीबीआई द्वारा आरोप पत्र दायर किए जाने तक एक कमांडो मोहन कलासवा का भी निधन हो गया था।
राज्य सरकार द्वारा अभियोजन स्वीकृति से इनकार करने के बाद 2019 में सेवानिवृत्त डीआईजी डीजी वंजारा और एसपी एनके अमीन को मामले में बरी किया था। इससे पहले अदालत ने इस मामले में पूर्व प्रभारी डीजीपी पीपी पांडे को बरी कर दिया था।