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सिंधिया की चुप्पी कहीं तूफान आने से पहले की शांति तो नहीं?

कमलनाथ के वो तीन शब्द जिसके चलते सिंधिया ने दिया कांग्रेस से इस्तीफा, प्रधानमंत्री से की मुलाकात

मध्यप्रदेश की राजनीति में इस समय ज्वार-भाटे की सी स्थिति है। पल-पल खबरें बदल रही है। कभी कांग्रेस का पलड़ा भारी तो कभी भाजपा का भारी चल रहा है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मध्य प्रदेश के सीएम की कुर्सी फिलहाल भूकंप के साए में। प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी कुर्सी को बचाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। कमलनाथ के बारे में राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चा है। जिनमें कहा जा रहा है कि जब भी कांग्रेस के विधायक घर से बाहर निकलते हैं तो कमलनाथ को बेचैनी हो जाती है। बेचैनी होना स्वाभाविक भी है। क्योंकि पिछले कई दिनों से उनकी कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है।

इस दौरान मध्यप्रदेश में कांग्रेस के तीनों दिग्गजों में से एक सीएम कमलनाथ जहां अपनी कुर्सी को बचाने की जद्दोजहद में है तो वहीं दूसरी तरफ दूसरे दिग्गज दिग्विजय सिंह सरकार को स्थिर करने की भाग-दौड़ में लगे हैं। लेकिन वहीं तीसरे दिग्गज ऐसे भी है जो बिल्कुल शांत है। वह है ज्योतिरादित्य सिंधिया। सिंधिया को जैसे ना किसी विधायक के जाने से फर्क पड़ रहा है और न किसी विधायक के आने से।

देखा जाए तो वह मध्य प्रदेश की राजनीति के इस खेल में ‘न्यूट्रल’ की भूमिका में है। मध्यप्रदेश में कुछ दिनों बाद राज्यसभा की 3 सीट खाली होने वाली है। जिनमें एक सीट दिग्विजय सिंह की है। बताया जा रहा है कि दिग्विजय सिंह तो अपनी राज्यसभा की सदस्यता को बरकरार करने के लिए ‘पॉलिटिकल रेस’ में व्यस्त है। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की यह शांति बहुत कुछ संदेश देती नजर आ रही है। लोग कह रहे हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की यह शांति तुफान से पहले की शांति साबित हो सकती है। मध्यप्रदेश की राजनीति में देखा जाए तो कहा नहीं जा सकता कि कब सुनामी आ जाए। राजनीतिक समुद्र की लहरें कभी ऊपर कभी नीचे गिरती प्रतीत हो रही है। ऐसे में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।

ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति की गहराई में जाने के लिए आपको थोड़ा फ्लैश बैक में ले चलते हैं । 13 फरवरी, 2020 का दिन था जब मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में कांग्रेस के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान जनसभा से अचानक ही कुछ अध्यापक आ खड़े हुए। और उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया। अध्यापक बहुत नाराज थे। खासकर सरकार से। ऐसे में नाराज विधायकों को अध्यापकों को शांत करने के उद्देश्य से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि आप की मांगों को मैंने चुनाव से पहले भी सुना था। यही नहीं बल्कि आपकी आवाज भी मैंने उठाई थी। मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूं कि आपकी जो मांग है वह हमारी सरकार के मेनिफेस्टो में दर्ज है। वह मेनिफेस्टो हमारे लिए ग्रंथ बनता है। सब्र रखना और अगर उस मेनिफेस्टो का एक-एक अंक पूरा न हुआ तो आपके साथ सड़क पर हम भी होंगे। आप अकेले मत समझना। आपके साथ सड़क पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उतरेगा।

सिंधिया के इस बयान से मध्य प्रदेश की राजनीति में सियासी तूफान खड़ा हो गया था। लोकसभा चुनाव हारने के बाद सियासी वनवास भुगत रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की यह हुंकार प्रदेश में चर्चा का विषय बन गई। हर किसी की जुबान पर सिंधिया के बोल गूंजने लगे। इन बयानों को सुनते हुए हर किसी को महसूस होने लगा कि जैसे कोई विपक्ष का नेता सरकार के खिलाफ हुंकार भर रहा है।

वैसे देखा जाए तो यह बयान विपक्ष का ही होता है कि अगर सरकार आपका काम नहीं करेगी तो हमें भी आपके साथ सड़कों पर उतरना पड़ेगा। जब सरकार आप हैं आप की पार्टी है और सीएम आपकी ही पार्टी का है, तो ऐसे में सड़कों पर उतरने का संदेश देना बहुत कुछ कह जाता है। राजनीतिक हलकों में सिंधिया के इस संदेश को गंभीरता से लिया जा रहा है। ऐसे में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार हिचकोले खा रही है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का चुप्पी साध लेना कई सवाल खड़े करता है। हालांकि, इन सवालों के जवाब तो भविष्य के गर्भ में छुपे हैं।

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