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क्या खत्म होने वाला है खालिस्तानियों का आतंक !

आज़ादी के बाद से सर उठाने वाला खालिस्तानी आंदोलन आज भी जारी है। जो पिछले कुछ महीनों से जोरों पर है। हाल ही में अपने एक साथी को पुलिस हिरासत से छुड़ाने के लिए खालिस्तानी संगठन ”वारिस पंजाब दे” के प्रमुख अमृतपाल सिंह की अध्यक्षता में उसके समर्थकों ने पंजाब के अजनाला पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया था।

 

इस हमले में कई पुलिस अधिकारी घायल हुए। जिसके बाद से पंजाब पुलिस ने अमृतपाल और उसके साथियों के खिलाफ तेजी से कार्यवाही शुरू कर दी। जिसमें उसके सैकड़ो साथियों  सहित उसके चाचा और ड्राइवर को भी गिरफ्तार किया जा चुका है लेकिन अमृतपाल अभी भी फरार है। पुलिस ने अमृतपाल सिंह के खिलाफ लुकआउट नोटिस और गैर जमानती वारंट जारी किया है। पुलिस ने अमृतपाल की अलग-अलग तस्वीरें साझा करते हुए लोगों को भगौड़े के बारे जानकारी देने की अपील की है। सूत्रों का मानना है कि अमृतपाल अपना हुलिया बदल- बदल कर एक जगह से दूसरी जगह भाग रहे हैं।  अमृतपाल के खिलाफ पंजाब पुलिस की कड़ी कार्यवाही के चलते गुस्साए खालिस्तानी समर्थकों ने कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में भारत के दूतावासों पर हिंसक रूप से हमला कर रहे हैं। बीते दिन 22 मार्च को कहलिस्तानी समर्थकों ने भारतीय दूतवास के के बहार खड़े होकर नारे लगाए। इससे पहले भी अमेरिका में भारतीय दूतावास पर खालिस्तानियों के प्रदर्शन हुए हैं।

 

अमेरिका में स्थित भारतीय दूतावास पर हमला 

 

19 मार्च को अमृतपाल का समर्थन करते हुए खालिस्तानियों ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला करके उसे क्षतिग्रस्त कर दिया। खालिस्तानी समर्थकों ने दूतावास की दीवार पर स्प्रे पेंट से फ्री अमृतपाल का नारा भी लिखा था। प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान के समर्थन में नारेबाजी भी की थी।  रिपोर्ट्स के अनुसार यह प्रदर्शन ‘वारिश पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह के समर्थन में ही किया गया था।

खालिस्तानियों द्वारा लंदन में किया प्रदर्शन

19 मार्च को अलगाववादियों द्वारा लंदन में स्थित भारतीय उच्चायोग से तिरंगे को उतारने की कोशिश की गई। साथ ही खालिस्तान के समर्थन में नारे भुई लगाए गए।  जिसके विरोध में भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी ने तिरंगा उतारने की कोशिश करने वाले खालिस्तानी के हाथों से  खालिस्तान का झंडा छीन कर फेंक दिया। साथ ही इसके विरोध में दोगुने आकर का तिरंगा अपने दूतावास पर फेहराया। इसके अगले दिन दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में ब्रिटिश उच्चायोग के बाहर सिख कम्युनिटी के लोगों ने प्रदर्शन किया। हाथों में तिरंगा और तख्तियां लिए सिखों ने ‘भारत हमारा स्वाभिमान है’ के नारे लगाए और कहा कि वे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे।

इससे पहले भी हुए हैं प्रदर्शन

1.  जनवरी 2023 : की शुरुआत से ही ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे थे।  खालिस्तानी समर्थकों ने ऑस्ट्रेलिया में स्थित हिंदुओं के मंदिर को निशाना बनाया और उसमें तोड़-फोड़ की। 17 जनवरी 2023 को खालिस्तान समर्थको ने ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में शिव विष्णु मंदिर में तोड़फोड़ की और तोड़-फोड़ के दौरान खालिस्तान समर्थकों ने मंदिर की दीवार पर हिंदू विरोधी और भारत- विरोधी नारे लिखे। इससे पहले 12 जनवरी को स्वामी नारायण मंदिर पर खालिस्तानी नारे लिखे मिले थे।

2 .29 जनवरी 2023:  इसके बाद भी ऑस्ट्रेलिया के कई हिन्दू मंदिरों में हिन्दू विरोधी और खालिस्तानी समर्थक नारे लिखे मिले। इसके बाद 29 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में खालिस्तान का झंडा लिये खालिस्तानी समर्थकों और तिरंगा लिये भारतीयों के बीच हिंसक टकराव हुआ। जिस दौरान खालिस्तानियों ने तिरंगा लहराने वाले भारतीयों की लाठियों और डंडों से पिटाई की और भारत विरोधी नारे भी लगाए।

3. 30 अप्रैल 2022 : पंजाब के पटियाला में इस दिन दो समुदायों के बीच झड़प हो गई। जिसमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सहित तीन लोग घायल हो गए। इस दिन खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने खालिस्तान स्थापना दिवस मनाने का ऐलान किया था। इस पर शिवसेना बाल ठाकरे नामक स्थानीय हिंदू संगठन ने इसका विरोध किया था। पुलिस ने लोगों को शांत करने की कोशिश भी की। लेकिन मामला काफी बिगड़ गया। इस रैली के दौरान कुछ लोगों ने खालिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए। एक स्थानीय हिंदू संगठन ने पटियाला में खालिस्तानी मुर्दाबाद मार्च निकालने का ऐलान कर दिया था। जब हिंदू संगठन ने मार्च निकाला, तो दूसरी तरफ खालिस्तान समर्थकों ने जमकर इसका विरोध किया। जिससे दोनों गुटों में तनाव बढ़ गया। इसके बाद पत्थरबाजी और बवाल शुरू हो गया था। जिसमें कई लोग घायल हो गए थे।

4. 9 मई 2022 : पंजाब पुलिस के मोहाली स्थित खुफिया विभाग के मुख्यालय पर रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड से ब्लास्ट किया गया। हालांकि इस घटना में कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। लेकिन मुख्यालय के भवन के दूसरे फ्लोर के सामने धमाका हुआ। जिससे खिड़कियों से शीशे टूट गए। सूचना मिलते ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने डीजीपी से पूरे मामले की जानकारी ली। घटना के बाद पंजाब पुलिस ने आस-पास के इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। हमले के बाद मोहाली जिला प्रशासन की ओर से कहा गया कि यह आतंकवादी हमला नहीं है। लेकिन घटनास्थल पर गहन जांच के बाद जब मोहाली के एसपी (मुख्यालय) रविंदर पाल से पूछा गया कि क्या इसे आतंकवादी हमला माना जा सकता है या नहीं तो उन्होंने कहा कि इस हमले को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है, हम इसकी जांच कर रहे हैं।

5. 4 नवंबर, 2022: को अमृतसर में शिवसेना नेता सुधीर सूरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। जिस दौरान वे भगवन की मूर्ति कूड़े में मिलने के विरोध में  गोपाल मंदिर के बहार धरने पर बैठे थे। सुधीर खालिस्तान के कड़े विरोधी थे। जिसके कारण वे कई सालों से खालिस्तानियों की हिट लिस्ट में थे।

6. 10 दिसंबर 2022: खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस ने पंजाब के तरनतारन में आतंकी कर दिया। आतंकियों ने सरहाली थाने के सांझ केंद्र को निशाना बनाते हुए राकेट लॉन्चर से हमला किया। हालाँकि हमले से जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन आम जनता इससे घबरा गई।

7 .  26 जनवरी, 2022 : को खालिस्तान समर्थकों ने अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में भारतीय दूतावास के सामने लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा पर खालिस्तानी झंडा लगा दिया था।

 

क्या है खालिस्तान

 

खालिस्तान का शाब्दिक अर्थ है ”खालसाओं का देश”। सिख समुदाय आज़ादी के पहले से ही खालिस्तान के रूप में एक अलग राष्ट्र की मांग कर रहा है। लेकिन आज़ादी के बाद से खालिस्तान की मांग और प्रबल हो गई। जब भारत को दो टुकड़ों भारत (हिन्दू बहुल क्षेत्र) और पाकिस्तान  (मुश्लिम बहुल क्षेत्र) में विभाजित कर दिया गया। इस विभाजन में पंजाब प्रान्त के भी दो टुकड़े हो गए। पंजाब का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया और दूसरा हिस्सा भारत के हिस्से में आया। विभाजन के बाद आम जनता को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान में फसे हिन्दुओं को मुस्लिमों द्वारा और भारत में उपस्थित मुस्लिमों को हिन्दुओं द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था। लेकिन इन सब के बीच पंजाब में रहने वाले सिक्ख समुदाय को अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि काफी मात्रा में पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू-सिक्खों को भागकर भारत आना पड़ा। जिसके बाद सिक्ख समुदाय को ऐसा एहसास हुआ कि धर्मों की बहुलता के आधार जिस प्रकार भारत और पाकिस्तान का बटवारा हुआ है उसी प्रकार सिक्खों के लिए एक अलग राष्ट्र ‘खालिस्तान’ बनाया जाना चाहिए। इसी के चलते पाकिस्तान से आईएसआई के समर्थन के साथ साल 1947 में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत हुई। जिसके परिणामस्वरूप साल 1950 में अकाली दल के नेतृत्व ‘सूबा’ आंदोलन चलाया जिसके द्वारा उन्होंने अलग प्रान्त की मांग की। लेकिन भारतीय सरकार ने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया। लेकिन आंदोलन फिर भी जारी रहा।
अतः साल 1966 में सरकार द्वारा सिक्खों की मांग को मान लिया गया और पंजाब को एक अलग राज्य बनाने का निर्णय देते हुए कहा गया कि पंजाब के अलग होने के बाद भी हिमाचल और हरियाणा भारत का हिस्सा रहेंगे। लेकिन अकालियों अर्थात खालिस्तानी समर्थकों ने इस फैसले को मानने से साफ़ इंकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे की चंडीगढ़ राज्य को भी पंजाब में शामिल कर दिया जाये और पंजाब से निकलने वाली नदियों पर उनके आलावा किसीका अधिकार नहीं होगा जिसका पानी हरियाणा और राजस्थान में भी जल आपूर्ति का साधन है। इस मांग को भारतीय सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। तब से आज तक यह आंदोलन शांत नहीं हो सका है।
साल 1967 में आंदोलन के संस्थापक जगजीत सिंह चौहान को विधानसभा के सदस्य के रूप में चुना गया लेकिन 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में वह हार गए। जिसके बाद उन्होंने खालिस्तान का प्रचार करना शुरू कर दिया और अपनी सरकार बनाने के लिए वे 1971 में पाकिस्तान गए जहाँ उन्हें सिक्ख नेता के रूप में चुन लिया गया। इसके बाद उन्होंने अपने समर्थक को जोड़ना शुरू किया और वर्ष1980 में, चौहान ने औपचारिक रूप से आनंदपुर साहिब में नेशनल काउंसिल ऑफ खालिस्तान के गठन की घोषणा की और खुद को इसका अध्यक्ष घोषित कर दिया।

 

आंदोलन में तेजी

 

नेशनल काउंसिल ऑफ खालिस्तान की घोषणा के बाद से ही खालिस्तान की मांग तेज होने लगी और आंदोलन धीरे- धीरे हिंसक होता गया और हमले भी बढ़ने लगे। क्योंकि अब बाहर देश में बैठे सिक्खों से भी इन्हे सहायता मिलने लगी थी। साल 1983 में आंदोलनकारियों द्वारा पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर पर कब्ज़ा कर लिया गया। जिसमें जरनैल सिंह भिंडरावाले ने प्रमुख भूमिका निभाई और उस समय पंजाब में बढ़ रही हिंसा को रोकने के लिए भिंडरवाला को पकड़ना सबसे ज्यादा जरूरी था। लेकिन स्वर्ण मंदिर में कब्ज़ा करने के बाद सिक्खों को मंदिर से हटाना मुश्किल हो गया था। इसलिए मजबूर होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को सेना की सहयता लेनी पड़ी। अकालियों मंदिर से निकालने के लिए मंदिर पर गोलियों आदि से हमला किया गया।सरकार द्वारा किये गए इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि ऑपरेशन के दौरान उसम वक्त वहां उपस्थित सबसे बड़ी भिंडरावाले को मार दिया गया, लेकिन इस ऑपरेशन में आम नागरिकों की भी जानें चली गई जिसे देखते हुए यह ऑपरेशन रोक दिया गया।

 

आंदोलन का ठहराव

 

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में किये गए हमले ने सिखों की धार्मिक भावना को आहत किया था। इसके साथ ऑपरेशन के दौरान निर्दोष आम जनता को हुए नुकसान के चलते सिख समुदाय के लोग नाराज थे। इसी नाराजगी के चलते 31 अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी के 2 सिख अंगरक्षकों द्वारा ही उनकी हत्या कर दी गई। ऑपरेशन ब्लू स्टार और भिंडरावाले की मौत का बदला लेते हुए अकालियों द्वारा 23 जून, साल 1985 में भारतीय विमान कनिष्क पर हमला कर दिया जिसने 329 लोगों की जान चली गई। साल 1989 में चौहान ने आनंदपुर साहिब गुरुद्वारे में  झंडा फहराया और धीरे-धीरे यह आंदोलन शांत होता चला गया। साल 2004 में  जगजीत सिंह चौहान की मृत्यु के बाद भारत में यह विद्रोह पूरी तरह समाप्त हो गया। लेकिन अन्य देशों खासकर कनाडा और पाकिस्तान में आज भी यह आंदोलन पूर्ण रूप से सक्रिय है जिसके परिणामस्वरूप पिछले कुछ वर्षों से भारत में फिर से खालिस्तान के समर्थन में मांग उठने लगी हैं।

 

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