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क्या कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की मदद कर रहा है इसराइल?

कश्मीर पर मोदी सरकार की नीति को लेकर पाकिस्तान में इसराइल की चर्चा ख़ूब हो रही है।पाकिस्तान में कहा जा रहा है कि भारत की कश्मीर में आक्रामकता और आत्मविश्वास के पीछे इसराइल का बड़ा हाथ है।
पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने गुरुवार को अपनी संपादकीय में लिखा कि इसराइल के कारण और उसी के पैटर्न वो कश्मीर में भारत आक्रामकता दिखा रहा है।
पाकिस्तान ने आज तक इसराइल को मान्यता नहीं दी है। मुशर्रफ़ के वक़्त में पाकिस्तान ने इसराइल से राजनयिक संबंध बनाने की कोशिश की थी। उस वक़्त के पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख़ुर्शीद महमूद कसूरी और इसराली विदेश मंत्री की तुर्की में मुलाक़ात भी हुई थी।
हालांकि यह कोशिश भी नाकाम रही थी क्योंकि पाकिस्तान में इसे लेकर व्यापक विरोध होने लगा था। कश्मीर में हालिया संकट को लेकर पाकिस्तान में एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है कि इसराइल को लेकर फिर से सोचने की ज़रूरत है।
गुरुवार को इस मसले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तरफ़ से स्पष्टीकरण दिया गया। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता डॉ मोहम्मद फ़ैसल ने कहा, ”इसराइल के साथ हमारी नीति बिल्कुल स्पष्ट है और इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा।”
पाकिस्तान और इसराइल के बीत राजनयिक संबंध नहीं हैं।पाकिस्तान में इसकी मांग उठ रही थी कि कश्मीर पर अरब के मुस्लिम देशों से भारत के ख़िलाफ़ समर्थन नहीं मिल रहा है तो क्यों न इसराइल से राजनयिक संबंध बहाल कर लिया जाए।
दूसरी तरफ़ भारत के अरब देशों से भी अच्छे संबंध हैं और इसराइल से भी गहरी दोस्ती है।
उधर द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने संपादकीय में लिखा है, ”भारत और इसराइल के बीच आतंकवाद के ख़िलाफ़ और रक्षा सौदों को लेकर कई सहयोग हुए हैं। दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया सूचनाओं का आदान-प्रदान और आतंकवाद के ख़िलाफ़ दोनों देशों में साझा ट्रेनिंग को लेकर भी समझौते हैं। भारत को इसराइल ने अत्याधुनिक तकनीक भी मुहैया कराई है।”
अख़बार लिखता है, ”भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ और इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के बीच दशकों से अच्छे संबंध हैं।दोनों के पारस्परिक संबंधों हमेशा गोपनीय रहे क्योंकि भारत को डर रहता था कि मुस्लिम आबादी नाख़ुश न हो जाए।लेकिन बीजेपी सरकार के आने के बाद से स्थिति बदल गई है। पीएम मोदी और नेतन्याहू एक दूसरे को दोस्त कहते हैं।इसके साथ ही भारतीय कमांडो की इसराइली ज़मीन पर ट्रेनिंग भी हो रही है।
नई दिल्ली के रक्षा मंत्रालय से ढाई हज़ार मिल दूर तेल अवीव में स्थिति इसराइल का रक्षा मंत्रालय है लेकिन दोनों के क़रीब आने की कई वजहें हैं। इसराइल ने भारत की राष्ट्रवादी बीजेपी सरकार से नज़दीकी बनाई है। यह राजनीतिक रूप से ख़तरनाक है। इसराइल में बने हथियारों का भारत सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है।
 यह कोई संयोग नहीं है कि भारतीय प्रेस में बताया गया कि इसराइल में बने रफ़ायल स्पाइस-2000 स्मार्ट बम का इस्तेमाल भारतीय एयर फ़ोर्स ने पाकिस्तान के भीतर जैश-ए-मोहम्मद के ख़िलाफ़ हमले में किया।
नेतन्याहू ने 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में किया था और कहा था कि भारत और इसराइल दोनों ने आतंकवाद का दर्द झेला है। 9 सितंबर को नेतन्याहू भारत के दौरे पर जा रहे हैं और संभव है कि वो कश्मीर पर भी कुछ बोलेंगे।
इसराइल ने अब तक अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है लेकिन वहां की मीडिया रिपोर्ट में भारत का इसे साहसिक क़दम बताया गया है।
भारत और इसराइल की दोस्ती में इस्लाम को मुख्य प्रेरणा के तौर पर देखा जाता है।रॉबर्ट फिस्क इसे मुस्लिम विरोधी दोस्ती भी कहते हैं।
भारत की खाड़ी के इस्लामिक देशों से गहरी दोस्ती है। इसराइल से भी अच्छी दोस्ती है। अगर मजहब का मसला होता तो भारत की दोस्ती किसी एक से ही होती।यहां तक कि इसराइल की दोस्ती भी ईरान को छोड़कर बाक़ी के मुस्लिम देशों से बढ़ रही है।
पाकिस्तान इसराइल को लेकर द्वंद्व में रहता है कि वो इसराइल से संबंध बनाए या नहीं बनाए।  पाकिस्तान चाहता है कि वो इसराइल से क़रीब आकर भारत के दोस्ती कम करे लेकिन पाकिस्तान की जनता ऐसा होने नहीं देती है। इसराइल भी चाहता है कि इस्लामिक देशों में उसकी स्वीकार्यता बढ़े और वो पाकिस्तान के क़रीब भी आना चाहेगा

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