भारत के प्रमुख शहर ठोस वेस्ट मैनेजमेंट में विफल हो रहे हैं। स्वच्छ भारत की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, ठोस कचरे के निपटान के लिए भारत को हर साल 1,250 हेक्टेयर से अधिक उपयोगी भूमि गंवानी पड़ती है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट ‘द डाउन टू अर्थ’ के अनुसार, देश में 10,000 हेक्टेयर से अधिक उपयोग योग्य शहरी भूमि पर 3,159 डंपिंग ग्राउंड हैं। वेस्ट मैनेजमेंट की इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए ‘बायोमिनिंग’ का विकल्प उपयोगी प्रतीत होता है। सरकार ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत बायोमाइनिंग को अनिवार्य कर दिया है।
‘बायोमाइनिंग’ क्या है?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार ‘बायोमाइनिंग’ एक वैज्ञानिक विधि है। इस पद्धति में उत्खनन, पृथक्करण, ठोस कचरे का पुनर्चक्रण और कचरे की प्रोसेसिंग शामिल है। हवा और सूरज की रोशनी जैसे प्राकृतिक तत्वों की मदद से बायोमाइनिंग के जरिए कचरे को प्रोसेस किया जाता है। समय के साथ यह जैविक कचरा विघटित हो जाता है। बाकी कचरे की योजना अलग तरह से बनाई गई है। चूंकि नॉन बायो डिग्रेबल कचरे में धातुएं होती हैं, इसलिए यह अपशिष्ट मूल्य प्राप्त कर लेता है। ‘ बायोमाइनिंग’ प्रक्रिया में ‘बायोलीचिंग’, ‘बायो ऑक्सीडेशन’, ‘डंप लीचिंग’ और ‘एग्जिटेड लीचिंग’ शामिल हैं।
भारत में कितना कचरा उत्पन्न होता है?
भारत के शहरी क्षेत्रों में हर साल 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है। यह कचरा हर साल चार प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। 2014 के योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, कुल 62 मिलियन टन कचरे में से 45 मिलियन टन कचरे का प्रबंधन नहीं किया जाता है। भारत के 60 बड़े शहरों में 3 हजार 500 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता और बैंगलोर प्रमुख शहर हैं जो सबसे ज्यादा कचरा पैदा करते हैं। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत बायोमिनिंग को अनिवार्य कर दिया गया है।
‘बायोमाइनिंग’ के क्या लाभ हैं?
बायोमाइनिंग से मिट्टी का प्रदूषण कम होता है। इससे भूजल को साफ रखने में मदद मिलती है। ‘ बायोमाइनिंग’ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है। इस प्रक्रिया में किसी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है। ‘बायोमाइनिंग’ द्वारा साफ की गई भूमि का उपयोग अन्य विकास गतिविधियों के लिए किया जा सकता है। बायोमाइनिंग एक पर्यावरण के अनुकूल तरीका है। यह वेस्ट से उपयोगी तत्वों धातुओं, उर्वरकों के संसाधनों को रीसाइकल्ड करने में मदद करता है।
‘बायोमाइनिंग’ प्रक्रिया में क्या चुनौतियां हैं?
इस प्रक्रिया का उपयोग केवल नॉन बायो डिग्रेबल तत्वों के लिए किया जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया के परिणामों में काफी समय लगता है। रोगाणुओं द्वारा उत्पादित रासायनिक पदार्थ का रिसाव पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। उचित प्रबंधन से इस जोखिम से बचा जा सकता है।