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अंतर्राज्यीय विवाद ने बढ़ाई आंतरिक कलह

देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सीमा विवाद को लेकर हिंसा होती रहती है। इन विवादों को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों की कई दौर की बैठकों के बावजूद कोई हल नहीं निकल पाया है। देश के अन्य राज्यों में भी सीमा विवाद के मुद्दे उठते रहते हैं। वर्तमान में हरियाणा-हिमाचल प्रदेश, लद्दाख-हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र- कर्नाटक के बीच सीमा विवाद है जो इन दिनों सुर्खियों में हैं। सबसे ज्यादा चर्चा महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच चल रहे सीमा विवाद को लेकर है। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद के चलते भाजपा फंसती नजर आ रही है

असम-मेघालय सीमा पर बीते दिनों हिंसा भड़कने से 6 लोगों की मौत हो गई थी। यह हिंसा लकड़ी की तस्करी को रोके जाने के दौरान हुई। हिंसा में एक वन रक्षक भी मारा गया। इन राज्यों में सीमा विवाद को लेकर भी हिंसा होती रहती है। सीमा विवाद को लेकर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की कई दौर की बैठकों के बावजूद अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया है। पूर्वोत्तर के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी सीमा विवाद के मुद्दे समय-समय पर उठते रहे हैं। वर्तमान में हरियाणा- हिमाचल प्रदेश, लद्दाख-हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद इन दिनों सुर्खियों में हैं। सबसे ज्यादा चर्चा महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच चल रहे सीमा विवाद को लेकर है। राज्यों के बीच सीमा विवाद के चलते भाजपा फंसती नजर आ रही है। वह न इधर की रह गई, न उधर की, क्योंकि कई राज्यों में उसकी ही सरकार है। ऐसे में जब महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और भाजपा के दिग्गज नेता देवेंद्र फडणवीस ने बयान दिया तो उस पर कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई का कटाक्ष भी आया है।

दरअसल, हाल ही में एक बयान में महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने आक्रामक बयान देते हुए कहा था कि राज्य सरकार बेलगाम, करवर, निपानी समेत मराठी भाषी गांवों को हासिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से लड़ेगी। इस विवाद पर राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र के किसी गांव को दूसरे किसी राज्य में शामिल नहीं होने दिया जाएगा। उनके इस बयान को काफी आक्रामक माना जा रहा है। शिंदे और फडणवीस के इन बयानों पर कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सांगली के जाट तहसील के गांव कर्नाटक का हिस्सा थे। उनके इन दावों को लेकर महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता अजित पवार ने सीएम और डिप्टी सीएम से सफाई मांगी थी जिसके चलते महाराष्ट्र में भी इस मुद्दे पर सियासत गर्म हो गई है। एक तरफ कर्नाटक के सीएम बी आर बोम्मई का कहना है कि बेलगांव हमारा अटूट अंग है तो महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि एक-एक इंच की हिफाजत करेंगे।


गौरतलब है कि बेलगाम जिला भारत में सबसे बड़े अंतर्राज्यीय सीमा विवादों में से एक है। इस जिले में एक बड़ी मराठी और कन्नड़ भाषी आबादी है। लंबे समय से यह क्षेत्र विवाद का केंद्र रहा है। इस विवाद के पीछे भाषा और संस्कृति के साथ-साथ दोनों राज्यों के राजनीतिक समीकरण हैं। कभी बॉम्बे प्रेसिडेंसी (अब महाराष्ट्र) का हिस्सा रहे बेलगाम क्षेत्र 1956 में राज्य पुनर्गठन के चलते कर्नाटक का हिस्सा बना था। इस जिले के कई गांव मराठी बाहुल्य जिस कारण महाराष्ट्र इन गांवों पर अपना दावा लंबे अर्से से जताता रहा है। इस मुद्दे पर दोनों राज्य सुप्रीम कोर्ट भी जा चुके हैं।

असम-मेघालय सीमा विवाद
हाल ही में असम और मेघालय की सीमा पर फिर खूनी टकराव में 6 लोगों की मृत्यु हो गई। मृतकों में असम का फॉरेस्ट गार्ड भी शामिल है वहीं मरने वालों में 5 लोग मेघालय के हैं, लिहाजा जैसे ही यह खबर फैली मेघालय के 7 जिलों में हिंसा फैल गई। यह मामला दोनों राज्यों के सीमा विवाद से भी जुड़ा है। जिसे लेकर अक्सर ऐसी वारदातों में दोनों राज्यों के बीच तनाव बढ़ जाता है।

दरअसल असम का पड़ोसी राज्यों से सीमा विवाद 150 सालों से ज्यादा पुराना है। असम और मेघालय के बीच 884.9 किमी. लंबी अंतर्राज्यीय सीमा के 12 इलाकों में लंबे समय से विवाद चल रहा है। दोनों राज्यों ने इनमें से छह इलाकों में विवाद को खत्म करते हुए इसी साल समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों ने बाकी के छह इलाकों में विवाद को हल करने के लिए बातचीत भी शुरू की है। लेकिन आए दिन सीमा विवाद को लेकर दोनों राज्यों के बीच खूनी हिंसा होती रहती है।

असम-मिजोरम सीमा विवाद
असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद 1875 और 1933 की ब्रिटिश काल की दो अधिसूचनाओं की विरासत है। ब्रिटिश काल के दौरान जब मिजोरम को असम का एक जिला लुशाई हिल्स कहा जाता था तब 1875 की अधिसूचना ने लुशाई पहाड़ियों को कछार के मैदानों से और लुशाई पहाड़ियों और मणिपुर के बीच अन्य सीमांकित सीमा से अलग कर दिया। जबकि मिजोरम विद्रोह के वर्षों के बाद 1987 में ही एक राज्य बन गया था, लेकिन अभी भी राज्य 1875 में तय की गई सीमा को अपना मानता है।

दूसरी ओर असम 1933 की अधिसूचना के आधार पर 1986 में उसकी सीमा से आजाद हुए क्षेत्र को वापस चाहता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि वे ब्रिटिश काल के आदेश को स्वीकार नहीं करेंगे। वहीं मिजोरम का कहना है कि 1986 का समझौता स्वीकार्य नहीं है क्योंकि उस समय मिजो नागरिक समाज से कोई परामर्श नहीं लिया गया था। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद पर तीसरे दौर की वार्ता 17 दिसंबर को होने की संभावना है। कहा जा रहा है कि यह बैठक गुवाहाटी में हो सकती है।

दरअसल मिजोरम के तीन जिले आइजोल, ममित और कोलासिब असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांडी जिलों के साथ 164.6 किलोमीटर लंबी अंतर-राज्यीय सीमा साझा करते हैं। दो पड़ोसी राज्यों के बीच सीमा विवाद एक लंबे समय से लंबित और उलझा हुआ मुद्दा है जो 1875 और 1933 के दो औपनिवेशिक सीमांकन से उपजा है।

असम-अरुणाचल प्रदेश विवाद

अरुणाचल-असम में वन क्षेत्रों को लेकर विवाद है। अरुणाचल का कहना है कि उत्तर पूर्वी राज्यों के पुनर्गठन ने एकतरफा रूप से मैदानी इलाकों में कई वन क्षेत्रों को स्थानांतरित कर दिया जो पारंपरिक रूप से असम के पहाड़ी आदिवासी प्रमुखों और समुदायों से संबंधित थे। वर्ष 1987 में अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिलने के बाद, एक त्रिपक्षीय समिति नियुक्त की गई जिसने सिफारिश की कि कुछ क्षेत्रों को असम से अरुणाचल में स्थानांतरित किया जाए। हालांकि असम ने इसका विरोध किया और यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है।

असम बनाम नागालैंड
उत्तर पूर्व में सबसे लंबे समय तक चलने वाला सीमा विवाद असम और नागालैंड के बीच है, जो वर्ष 1963 में नागालैंड के राज्य बनने के तुरंत बाद शुरू हुआ था। 1962 के नागालैंड राज्य अधिनियम ने 1925 की अधिसूचना के अनुसार राज्य की सीमाओं को परिभाषित किया था जब नागा हिल्स और त्युएनसांग क्षेत्र (एनएचटीए) को एक नई प्रशासनिक इकाई में एकीकृत किया गया। हालांकि नागालैंड इस सीमा रेखांकन को स्वीकार नहीं करता है और उसने मांग की है कि नए राज्य में उत्तरी कछार और नागांव जिलों में सभी नागा बहुल क्षेत्र भी होने चाहिए। नागालैंड ने अपनी अधिसूचित सीमाओं को स्वीकार नहीं किया, इसलिए दोनों राज्यों के बीच तनाव पैदा होता है।

6 राज्यों से सटी है असम की सीमा
असम की सीमा 06 राज्यों से सटी है और इन सभी से उसके सीमा विवाद हैं। इसमें कोई शक नहीं कि एक जमाने में असम पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य था। इसका पुनर्गठन भी हुआ। कुछ समझौते भी हुए लेकिन इसके बाद भी ये विवाद थमे नहीं हैं। इन 06 राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड शामिल हैं।

हरियाणा-हिमाचल प्रदेश
दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को लेकर परवाणू क्षेत्र सुर्खियों में रहा है। यह हरियाणा के पंचकुला जिले के साथ लगता है और इसी के चलते राज्य ने हिमाचल प्रदेश में भूमि के कुछ हिस्सों पर अपना दावा ठोका है।

लद्दाख-हिमाचल प्रदेश
हिमाचल और लद्दाख लेह और मनाली के बीच के मार्ग पर एक क्षेत्र सरचू पर अपना-अपना दावा करते हैं। यह विवाद का एक प्रमुख भाग माना जाता है जहां यात्री दो शहरों के बीच यात्रा करते समय रुकते हैं। सरचू हिमाचल के लाहुल और स्पीति जिले और लद्दाख के लेह जिले के बीच में है।

अंतर्राज्यीय परिषद का गठन
ऐसे ही मसलों से निपटने के लिए तीन दशक पहले अंतर राज्य परिषद का गठन किया गया था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसकी बैठकों की निरंतरता बनाए नहीं रखी जा सकी। पिछले 16 वर्षों में इसकी सिर्फ दो बैठकें हुई हैं। जोनल स्तर पर बैठकें जरूर होती रही हैं, लेकिन कई वजहों से वे कारगर नहीं हुईं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक और महाराष्ट्र अलग-अलग जोन में आते हैं। इसके अलावा पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अलग कानून है। इसमें दो राय नहीं कि ये विवाद खासे जटिल हैं और स्थानीय आबादी की भावनाओं से जुड़े हैं। इन्हें हल करना आसान नहीं है। मगर जब ये हिंसात्मक मोड़ ले लेते हैं तो इन्हें हल करना नामुमकिन-सा हो जाता है। ऐसे में अंतरराज्य परिषद जैसे मंचों पर संबंधित पक्षों के बीच निरंतर संवाद भावनात्मक उबाल को काबू में रखने के लिहाज से भी उपयोगी हो सकता है।

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