- आयशा
इस बार अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में चौदह दिनों के भीतर 12 लाख लोगों ने भ्रमण किया। कोरोना महामारी के बाद बिना प्रतिबंध दिल्ली का सबसे बड़ा आयोजन पूरी तरह सफल रहा। वोकल फॉर लोकल और लोकल टू ग्लोबल की थीम पर आयोजित ट्रेड फेयर में देश के सभी राज्यों ने भागीदारी की। पहली बार केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख ने भी इसमें हिस्सा लिया। इसके अलावा 14 विदेशी सहयोगियों ने भी हिस्सा लिया। खास बात यह है कि इस 41वें ट्रेड फेयर के हेल्थ बोर्ड के एग्जीबिशन में भारत सरकार और उनसे जुड़ी एनजीओ के काफी स्टॉल्स देखने को मिले। इसमें भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कई अभियानों के स्टॉल्स लगाए गए थे। जिनमें टीबी मुक्त भारत अभियान, यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम, ईट राइट इंडिया आदि के विशेषज्ञों से हुई ‘दि संडे पोस्ट’ की बातचीत के मुख्य अंशः
हर साल की तरह इस वर्ष 41वां अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला 14 नवंबर से नई दिल्ली के प्रगति मैदान में शुरू हुआ। जिसका पिछले हफ्ते 27 नवंबर को समापन हो गया। 14 दिन तक चले अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में इस बार बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र को साझेदार के रूप में तथा केरल एवं उत्तर प्रदेश को फोकस राज्य के रूप में पुरुस्कार दिया गया। इस बार ट्रेड फेयर में चौदह दिनों के भीतर 12 लाख लोगों ने भ्रमण किया। कोरोना महामारी के बाद बिना प्रतिबंध दिल्ली का सबसे बड़ा आयोजन पूरी तरह सफल रहा। वोकल फॉर लोकल और लोकल टू ग्लोबल की थीम पर आयोजित ट्रेड फेयर में देश के सभी राज्यों ने भागीदारी की। पहली बार केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख ने भी इसमें हिस्सा लिया। इसके अलावा 14 विदेशी सहयोगियों ने भी इसमें हिस्सा लिया। इन दिनों लोगों ने जमकर मेले का लुत्फ उठाया, देश-विदेश के सामान खरीदे, व्यंजन और संगीत का आनंद उठाया।
मेले में बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र पार्टनर स्टेट थे, जबकि केरल, उत्तर प्रदेश फोकस स्टेट के रूप में शामिल थे। इन सभी राज्यों को गोल्ड मेडल दिया गया है। वहीं राज्यवार भी केरल राज्य का पवेलियन अपनी खूबसूरती और व्यवसाय के लिहाज से अव्वल रहा। केरल को राज्य की श्रेणी में भी गोल्ड मिला है। बिहार को सिल्वर, मध्य प्रदेश को ब्रॉन्ज और ओडिसा राज्य के पवेलियन को विशेष उपस्थिति के लिए अवार्ड दिया गया है।
यह पिछले 40 वर्षों में सबसे बड़ा मेला माना जा रहा है। इसमें कई तरह के नए-नए प्रोग्राम किए गए। इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अवसरों के साथ-साथ कई तरह के नाटक और खेल भी आयोजित हुए। हर वर्ष इस अंतरराष्ट्रीय मेले में अलग-अलग तरह के थीम दिए जाते हैं उसी तरह इस बार भी ‘वोकल फॉर लोकल, लोकल से ग्लोबल’ दी गई थी। इस 41वें ट्रेड फेयर के हेल्थ बोर्ड के एग्जीबिशन में भारत सरकार और उनसे जुड़ी एनजीओ के काफी स्टॉल देखने को मिले, इसमें भारत सरकार के द्वारा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कई अभियानों के स्टॉल्स लगाए गए थे। जिनमें टीबी मुक्त भारत अभियान, यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम, ईट राइट इंडिया मूवमेंट, डेंगू मुक्त भारत, सरकार की पहल अमृत फार्मेसी आदि शामिल थे। सबसे पहले हमारी टीम ने ‘प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान’ स्टॉल पर मौजूद टीबी चैंपियन और टीबी की सर्वाइवर अर्शी सैफी से बातचीत की। पेश है बातचीत के अंशः
इस स्टॉल को लगाने का उद्देश्य क्या है?
‘टीबी मुक्त भारत योजना’ के तहत स्टॉल लगाने का हमारा उद्देश्य टीबी संबंधित जानकारी देना है। सरकार के इस अभियान के अंतर्गत एक स्कीम है जिसका नाम ‘निक्षय’ है। इसमें हम कुछ हॉस्पिटल्स एनजीओ और कुछ कंपनी को टीबी मरीजों को अडॉप्ट करके उनको न्यूट्रिशन सपोर्ट देते हैं। हमने लोगों को टीबी के बारे में जागरूकता फैलाने और इससे जुड़ी समस्याओं के बारे में बताने के लिए स्टॉल लगाया है। जिससे लोगों के बीच टीबी को लेकर जागरूकता बढे। इसके अलावा हम लोग फील्ड में जाकर भी लोगों को टीबी से संबंधित सभी जानकारी देते हैं।
क्या यह सुविधा निशुल्क है?
जी बिल्कुल निशुल्क है। जो पूरे देश में लागू है। इसके लिए अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में संपर्क करना होता है। वहां से टीबी मरीज को सब जानकारी मिल जाएगी। ‘निक्षय योजना’ इसी साल से शुरू हुई है। अभी तक कई कंपनियों ने टीबी के मरीजों को अडॉप्ट किया है। हमने उन्हें न्यूट्रिशन सपोर्ट दिया। इसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा है। लोगों में अब इसको लेकर जागरूकता फैल रही है।
टीबी चैंपियन कैसे बनते हैं?
जो लोग टीबी सर्वाइवर होते हैं वही टीबी चैंपियन बनते हैं। मैं उन्हीं में से एक हूं।
आपको टीबी चैंपियन बनने की प्रेरणा कहां से मिली?
जब मैं टीबी से ग्रसित हुई तो मुझे लगा ही नहीं कि शायद मुझे टीबी है। इसी कारण मैंने किसी को बताया भी नहीं। दवाइयां नहीं ली। मुझे बिल्कुल जानकारी नहीं थी कि इस बीमारी से मैं दूसरों को भी इफेक्ट कर सकती हूं। लेकिन जब टीबी से मेरी हालात गंभीर होने लगी तब मैं काफी घबरा गई। मुझे लगा कि मेरा अंत होने वाला है। मैं किस तरह सबको बताउंगी कि मुझे टीबी हो गई है। लोग मुझे समझेंगे कि नहीं, यह भी मालूम नहीं था, लेकिन मैंने इस बात को शेयर करना जरूरी समझा और सबसे पहले अपने परिवार को बताया कि मुझे टीबी के लक्षण हैं। जिसके बाद कुछ टेस्ट कराए और टीबी के बारे में जानना शुरू किया। मैंने अपना कोर्स भी शुरू कर हिम्मत जुटाई की मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊंगी। केवल मुझे अपनी दवाई और अपने आहार पर ध्यान देते हुए मैंने सोचा जब मैं ठीक हो जाऊंगी तब उन सभी के लिए जो इस बीमारी से ग्रसित हैं, उनके लिए एक उदाहरण बन जागरूकता फैलाऊंगी, और मैंने ऐसा ही किया जिस कारण मैं इस अभियान में एक सर्वाइवर और चैंपियन की भूमिका निभा रही हूं।
नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम को चलाने के पीछे आपका क्या मकसद है?
मलेरिया इंस्पेक्टर, विजयपाल सिंहः हम इस प्रोग्राम के द्वारा लोगों के बीच वेक्टर से संबंधित बिमारियों पर जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं। इसमें मच्छर से पैदा होने वाली बीमारी जो 6 प्रकार की होती हैं। जैसे कि डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, पीला बुखार, जीका वायरस, जापानी मस्तिष्ककोप लसीका फाइलेरिया जैसी बीमारियां और इनके उपायों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। मच्छरों के बचाव के लिए हमने विजुअल थ्री डी मूवी भी दिखाई जिसमें अपने घर और आस-पड़ोस को मच्छरों से बचाने के अलग-अलग उपायों के बारे में बताया गया। इन बीमारियों से लोगों को बचाने के लिए हमारी टीम घर-घर जाकर सर्वे और दिल्ली के इलाकों में मच्छर उत्पन्न होने वाले कारणों पर ध्यान देकर कम करने की कोशिश कर रही है। हमारा उद्देश्य भारत को इन बीमारियों से मुक्त् करना है। इतना ही नहीं भारत सरकार द्वारा इससे बचाव के लिए साल में एक बार मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में दवा वितरित की जाती है।
आपकी फार्मेसी कौन-कौन-से प्रोडक्ट प्रोवाइड कराती है?
अमृत फार्मेसी के सेल्स रेप्रेजेंटेटिव, सौरभः हमारी कंपनी भारत सरकार के नेतृत्व में काम करती है जिसके 14 वेंचर हैं। इसमें एक वेंचर है कंस्यूमर बिजनेस डिवीजन यानी (सीबीडी)। हम कंट्रासेप्टिव पिल्स प्रोवाइड कराते हैं जो बाजार रेट से 50 फीसदी कम कीमत पर दी जाती है। हम निरोध भी बनाते हैं जो सरकारी अस्पतालों में फ्री में उपलब्ध हैं। उसी का एक पार्ट है अमृत फार्मेसी। जिसमें प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चलाए गए जनऔषधि केंद्रों और मेडिकल स्टोर में फ्री दवा दी जाती है। सरकार के अंदर आने वाले सभी प्रकार के फार्मा केमिस्टों पर नॉर्मल दवाइयां भी 50-90 प्रतिशत कम दामों में उपलब्ध कराई जाती है। हमारे यहां हर दवा भारी छूट पर दी जाती है। इस तरह की फार्मेसी 24ग्7 खुली रहती हैं। जितने भी एम्स बन रहे हैं वे भी ‘एचएलएल’ कंपनी बना रही है। गरीब लोगों के लिए ऐसी और भी योजनाएं सरकार चला रही है। इससे जुड़ा एक पार्ट है हमारा जिसमें जेनेरिक दवाइयां फ्री दी जाती हैं। इसके लिए आपके पास एम्स का प्रिक्रिप्शन होना चाहिए। अमृत से आप कोई भी दवा ले सकते हैं डिस्काउंट रेट पर मिलेगी और सरकारी हॉस्पिटल का प्रिस्क्रिप्शन हो तो दवा फ्री मिलेगी।
हम अभी तक पूरे देश में सेनेटरी पैड की 80 हजार वेंडिंग मशीन लगा चुके हैं। जिसमें हम सेनेटरी पैड भी उपलब्ध कराते हैं जो 10 रुपए के 3 मिलते हैं। इसे बनाने में गवर्नमेंट वर्जिन पल्प यूज की जाती है, जिससे महिलाओं को इंफेक्शन से बचाया जा सकता है और ज्यादा से ज्यादा समय तक आप इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के पिक टॉयलेट में ये आपको मिल जाएंगे। हमारी मुहिम अब शॉपिग मॉल्स, पुलिस स्टेशन और कॉलेज में भी उपलब्ध कराने की ओर अग्रसर है। हमारी एक दूसरी मशीन है जो 10 गंदे पैड्स को डिस्पोज कर सकती है। यह मशीन इको फ्रेंडली भी है इससे कोई हार्मफुल गैस नहीं निकलती।
भारत सरकार की टीकाकरण योजना का यह स्टॉल सरकारी है या गैर-सरकारी?
भूपेंद्र सिंह, विशेषज्ञः भारतीय स्वास्थ्य विभाग की ओर से यह स्टॉल लगा हुआ है। इस योजना के अंतर्गत कौन-कौन-से टीके लगाए जाते हैं? इस पर हम यूनिवर्सल अम्मुनिशन प्रोग्राम के तहत मुफ्त में गर्भवती महिलाओं और बच्चों को टीका लगाते हैं। हम लोगों को बता रहे हैं किस उम्र में कौन-से टीके लगते हैं और साथ ही यह मैसेज भी दे रहे हैं कि अपने बच्चे का संपूर्ण टीकाकरण कराएं। इसके लिए हम बता रहे हैं 5 साल में सात बार आपको आना है। सारे टीकाकरण कराने हैं। नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र और आंगनवाड़ी केंद्र पर ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं। 12 प्रकार की बीमारियों से बचाव के लिए ये टीके अहम हैं। इस
प्रोग्राम के जरिए लोग काफी जागरूक और सजग हुए हैं और इस ओर ध्यान दे रहे हैं।