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Country Uttarakhand

पीएम मोदी से पहले ही वोकल फॉर लोकल को जमीन पर उतार चुके पूर्व सीएम हरीश रावत

याद कीजिए वर्ष 2018 का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया” मन की बात” का उच्चारण। तब मन की बात में उन्होंने उत्तराखंड के जिला बागेश्वर का नाम लेकर सबको चौका दिया था। मोदी ने बागेश्वर जिले की एक समाज सेवी संस्था की सराहना करते हुए कहा था कि इस संस्था की महिलाएं पहाड़ के परंपरागत अनाज मडुवा के बिस्कुट बना रही हैं। बागेश्वर में बन रहे मडुवे के बिस्कुट पूरे देश में खाए जाते हैं। उनकी चर्चा कर प्रधानमंत्री मोदी ने सबका मन मोह लिया था। तब वोकल फॉर लोकल का कहीं तक भी जिक्र नहीं था।

वोकल फॉर लोकल कोरोना काल में चलन में आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में बेरोजगारी की संभावना बढ़ने के मद्देनजर वोकल फॉर लोकल की पहल की थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही बात करें तो वह वोकल फॉर लोकल के इस आइडिया को वर्ष 2018 में अपनी मन की बात के जरिए उजागर कर चुके थे।

 

उत्तराखंड का वोकल फॉर लोकल अभियान शुरू करने का श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को जाता है। हरीश रावत ने प्रदेश में मंडुवा ही नहीं बल्कि झंगुरा, गहत और भट्ट जैसे परंपरागत अनाज को उगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया। शायद यही वजह है कि हरीश रावत के कार्यकाल में मंडुवा-झंगुरा, गहत और भट्ट का उत्पादन बढ़ा। इसी के साथ ही परंपरागत फसलों का रकबा भी बढ़ा है।

 

इस दौरान मुख्यमंत्री हरीश रावत वोकल फॉर लोकल को लेकर चर्चाओं में है। कुछ लोग कह रहे हैं कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल कर रहे हैं। लेकिन यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि उनके कार्यकाल में वोकल फॉर लोकल जमीनी हकीकत ले चुका था। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि हरीश रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल कर रहे हैं या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरीश रावत की ?

गौरतलब है कि वर्ष 2016 में विधानसभा का चुनाव हारने के बाद हरीश रावत लगातार परंपरागत भोज करने के लिए भी चर्चा में रहे हैं। वह कभी काफल पार्टी देते हैं तो कभी निंबू, सन्नी पार्टी तो कभी ककड़ी, मुगरी (भुट्टा) पार्टी उनकी यह पार्टी चर्चा का विषय रहती है। 15 दिन पूर्व देहरादून में हरीश रावत ने भटके डूबके, भटवाणी, गहत की दाल, चौलाई की सब्जी, और लाल चावल का भात की दावत दी थी। हालांकि इसमें कोरोना काल के मद्देनजर ‘पहले आओ-पहले पाओ’ में 20 चुनिंदा लोगों को ही बुलाया गया था। लेकिन काफी बड़ी संख्या में लोग वहां पहुंचे।

 

उत्तराखंड के पूर्व दर्जा राज्य मंत्री राहुल यादव इस बाबत हरीश रावत की सराहना करते हैं। वह कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत में तुलना की जाए तो जमीन आसमान का फर्क होगा। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एडिडास और रीबॉक के जूते पहनते हैं जबकि अगर वह वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा दें तो उन्हें बाटा के जूते पहनने चाहिए। पूर्व दर्जा राज्य मंत्री राहुल यादव बताते हैं कि पिछले दिनों दीपावली के दिन जब मोदी सैनिकों से मिल रहे थे तो उन्होंने गुची का चश्मा पहन रखा था, जो विदेशी ब्रांड है। इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कहते हैं वह करते नहीं हैं। लेकिन हरीश रावत के मामले में इसका उलट है। वह कहते बाद में है करते पहले हैं।

 

उत्तराखंड में स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने की मुहिम चला रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने देहरादून में यह नया प्रयोग किया। अपने मित्र और परिजनों को उन्होंने चंपावत के मंडुवे की सोन पपड़ी, अल्मोड़ा की तांबे की गगरी, टिहरी के आगरा खाल के अरसे और चमोली फल के रूप में कीनू भेट किए। हरीश रावत कहते हैं कि यह प्रयास है अपने पहाड़ के मूल उत्पादकों को घर-घर तक पहुंचाने और जागरूकता लाने के लिए।

 

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बारे में कहा जाता है कि वह वैचारिक रूप से प्रधानमंत्री मोदी के घनघोर विरोधी हैं। इसके बावजूद वह वोकल फॉर लोकल को चर्चा में लाने के लिए भी चर्चित है। हालांकि हरीश रावत यह दावा करना नहीं भूलते हैं कि मूल रूप से वोकल फॉर लोकल कैंपेन उन्हीं का था। जिसे वर्तमान सरकार ने चुरा लिया है। वह कहते हैं कि उत्तराखंड में मडुवे को जहां उनकी सरकार के पहले लोग ₹5 किलो नहीं खरीदते थे यह उनकी सरकार में ₹50 किलो तक हो गया था। इसी गहत ₹200 किलो बिकी और झंगुरा डेड सो रुपए किलो तक बिका।

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